मेरे आत्मस्वरूप प्रिय महानुभाव,
आप हम सभी जानते हैं कि श्री राम ब्रह्म हैं ईश्वर हैं उन्होंने अवतार लेकर मानवीय चरित्र की लीला की है। प्रस्तुत लेख केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से लिखा गया है। हमारे ग्रंथ वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण आदि किसी कालीनी इतिहास नहीं है बल्कि वर्तमान का शाश्वत सत्य भी है अत: पुराण रामायण आदि वर्तमान के मार्ग दर्शक भी हैं।
आज सारा विश्व भ्रष्टाचार व आतंक की चपेट में है। जिस देश की ओर दृष्टि जाती है समाचार पत्रों में पढ़ते हैं तो उनमें भ्रष्टाचार व आतंकवाद पढऩे को मिलता है। इस भ्रष्टाचार व आतंक का निवारण कैसे हो रामचरित मानस के आधार पर लिखा जा रहा है। आप रामायण कालीन स्थिति व देश और समाज की दशा का वर्णन मानस में पढ़ें-यथा-
अस भ्रष्टाचारा भा संसारा, धर्म सुनिअ नहिं काना।
तेहि वहु विधि त्रासहिं देश निकासाहूं जो कह वेद पुराना।। (मानस)
तथा- बाढ़े खल बहु चोर जुआरा। जे लंपट पर धन पर दारा।।
मानहिं मातु पिता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा।। (1-183.1-2)
जो आतंक वादी पहले करते थे वहीं आज हो रहा है:-
करहिं उपद्रव असुर निकाया। नाना रूप धरङ्क्षह करि माया।
जेहिं विधि होई धर्म निरमूला। सो सब करङ्क्षहं वेद प्रतिकूला।।
जेहिं जेहिं देस धेनु निरमूला। सोसब करहिं वेद प्रति कूला।।
जेहिं विधि होई धेनु हिज पावहिं। नगर गाँवपुर आग लगावहिं।।
सुभ आचरन कतंहु नहिं होई। देव विप्र गुरू मान न कोई।। मानस
तात्पर्य यह है कि जो कृत्य आतंकवादियों द्वारा आज हो रहे है वह रामायण कालीन भारतवर्ष में हो रहे थे। तत्कालीन समय में भ्रष्टाचार व आतंकवाद को समाप्त करने के लिये जो उपाय किये गये वही अब करना है आतंकियों की क्रिया में समानता है केवल दिशा भेद है पहले आतंकवाद की दिशा दक्षिण थी तथा आतंकवाद का पर्याय रावण था। आज आतंकवाद की दिशा पश्चिम है अर्थ की दृष्टि से देखे तो रावण का अर्थ होता है ‘रावणश्प लोक रावण: Ó अर्थात् जो संसार को रूलाय-
सो रावण। यही आतंकवाद है जो संसार को रूला रहा है। अत: भ्रष्टाचार व आतंकवाद को मिटाने के लिये जो उपाय हैं उस पर विचार करना है। ऐसे लगता है मानो रावण व उसके अनुचर रूप बदल कर आ गये हों। आतंकवाद के पर्याय रावण ने अपने अनुचरों को आज्ञा दी थी कि-
छुधा हीन बल हीन सुर सहजेहि मिलिहहिं आई।
तब मारहहु कि छाँडि़ं हऊ, भली भांति अपनाई। मानस
उसकी आज्ञा थी कि जगह-जगह भुखमरी फैलाओ, हिंसा करो जब अन्न की कमी होगी तब हमसे लोग सहायता मांगेंगे तब हम भली भांति अपनायें या छोड़ेंगे। गोस्वामी जी ने लिखा है-
सो. वरनि न जाय अनीति, घोर निशाचर जो करहिं।
हिंसा पर अति प्रीति तिन्ह के पा पहिं कवनि मिति।। (मानस)
लंका सरकार की नीति थी कि उसके राज में आतंक न हो उसके आतंकवादी ट्रेनिंग सेन्टर लंका में थे वे आतंकी घटनायें दूसरे देशों में करते थे इसमें भारत अछूता नहीं था। लगता है कि दशरथ जी केवल नाम के चक्रवर्ती थे उन पर भी लंकेश के आतंक का भय व्याप्त था। भारत में बिहार के बक्सर जिले में जहां विश्वामित्र जी का आश्रम था वहां रावण के उपनुच्छ मारीच सुबाहु की कम्पनी थी जिसकी संरक्षिका ताड़का थी जिसने भारत के मलय और कामद प्रदेशों को उजाड़ दिया था। इसके अलावा वर्तमान नासिक जो पंचवटी के नाम से जाना जाता था वहां रावण का जनस्थान था जिसमें चौदह हजार सैनिक थे तथा खरदूषण सैनिक गवर्नर थे। यहां में संरक्षिका के रूप में रावण की बहिन सूर्पनखा थी। रावण को भली भांति जानकारी थी कि भारतीय नीति में स्त्री व गाय अवध्य है। इसलिये उसके दोनों जगह स्त्रियों को रखा था। इतिहास साक्षी है कि मुगल सेनाओं ने गायों को आगे करके भारत को जीत कर गुलाम बनाकर शासन किया था।
आज हमारे देश में भ्रष्टाचार व आतंकवाद व्याप्त है जिसे शासन समाप्त करने में प्रयासरत हैं पर सफलता न के बराबर है। इन दोनों को मिटाने के लिये प्रत्येक नागरिक भाई बहिन को सहयोग करना होगा केवल सरकार के भरोसे से समाप्त नहीं होगा। अब विचार यह करना है कि पहिले भ्रष्टाचार को मिटायें या आतंकवाद को मिटायें। इस पर विचार करने से स्पष्ट होता है कि पहले भ्रष्टाचार को मिटाना होगा क्योंकि ज्यों-ज्यों भ्रष्टाचार मिटेगा त्यों-त्यों सुन्दर समाज का निर्माण होगा तथा आतंकवाद स्वयं समाप्त होता जायेगा।
अब प्रश्र होता है कि भ्रष्टाचार क्या है तो कहना होगा कि मानवता की जो आचार संहिता है जिसे सदाचार कहते हैं के विपरीत आचरण करने का नाम भ्रष्टाचार है। सीधा कहें कि चरित्र हीनता का नाम ही भ्रष्टाचार है तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। सच्चरित्रता का नाम ही सदाचार है। अगर यह प्रश्र किया जाये कि विकार और विकार के कारण होते हुये हमें विकार उत्पन्न न हो इसका नाम चरित्र है मानस में चरित्रों का वर्णन है ये रामायण में पढें़ केवल उदाहरण के तौर पर हनुमान का चरित्र लिख रहा हूँ, हनुमान जी सीता जी को खोजने लंका में गये तथा मध्यरात्रि के बीच में जब रावण के शयनकक्ष में गये तो वाल्मीकि जी ने लिखा है कि रावण नारियों के बीच में ऐसा नग्न सो रहा है मानो कमल की पंखडिय़ों के बीच में कोई नग्न भौंरा सो रहा हो। बात सही है गोस्वामी ने वही मर्यादा में लिखा –
गयऊ दसानन मन्दिर माहीं। अति विचित कहि जात सो नाहिं।।
इस परिस्थिति में हनुमान जी के मन में विकार नहीं हुआ इसका नाम चरित्र है। ऐसे ही अन्य चरित्र देखें आप अपने चरित्र निर्माण में स्वतंत्र है। क्रमश: – नर्बदा प्रसाद वर्मा, रामायणी, ललितपुर