रामचरित मानस में भ्रष्टाचार और आतंकवाद का निवारण

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चौथी किश्त:-
चित्रकूट में रहते हुये श्रीराम को बहुत समय हो गया था। लोग आने जाने लगे थे। इसके अलावा रावण के गुप्तचर भी पीछे लगे थे। व दण्डकारण्ड में ऋषि मुनियों पर अत्याचार बढ़ गये थे। श्रीराम, सीता, लक्ष्मण सहित दण्डकारक के वन प्रदेश में आत्रि आदि ऋषियों से मिलते हुये व निशाचरों के कृत्यों का जायजा लेते हुये तथा ऋषि मुनियों को आश्वासन देते हुये महर्षि अगस्त के आश्रम पर पहुंच गये। तत्कालीन सरकार के मंत्रिमण्डल में वशिष्ठ, विश्वामित्र, जावलि व अगस्त आदि ऋषि शामिल थे। उनसे राय ली जाती थी श्रीराम ने महर्षि अगस्त से मुनि द्रोही राक्षसों को समाप्त करने की सलाह की और मुनि ने उन्हें पंचवटी नामक स्थान में निवास करा दिया। महर्षि अगस्त ने जो दिव्य धनुष बाण, आश्रय तुणीर देवताओं से प्राप्त किये थे वे सब श्रीराम को देते हुये कहा कि आप इन आयुधों से राक्षसों पर विजय प्राप्त कीजिये। इसी से लगा हुआ रावण का जन्म स्थान था जिसमें चौदह हजार सैनिक रहते थे जो भारत में आतंकी गतिविधियां करते हुये भारत को क्षति पहुंचाते थे। श्रीराम लक्ष्मण ने खरदूषण सहित सभी निशाचरों को मार दिया एक भी स्वदेश वापिस नहीं जा सका। केवल सूरपनखा ने रावण को खबर दी व बताया कि जनस्थान के सारे निशाचर मारे गये। अब राक्षसों का कब्जा हट गया है।
अकम्पन जो लंका सरकार का गुप्तचर था उसके सुझाव देने पर रावण ने सीता हरण का निश्चय कर मारीच की सहायता से सीता हरण कर लिया। लेकिन यह रावण की बहुत बड़ी राजनीतिक भूल थी। उसे समझना चाहिये था कि कोई भी शत्रु कमजोर नहीं होता, फिर खरदूषण आदि का वद्य कर देने वाले श्रीराम तो कमजोर हो ही नहीं सकते हैं।
जब श्रीराम, लक्षण को पता चला तो वे दोनों जानकी जी को खोजने निकल पड़े व दक्षिण की ओर चल दिये। यद्यपि उन्हें सब जानकारी थी व होती जाती थी परन्तु सीता जी की खोज औपचारिकता थी उन्हें यह भी पता लगाना था कि राक्षस किस रास्ते से आते हैं उन्हें कौन संरक्षण देता है। जब तक आतंकवादियों के आने के रास्तों व संरक्षण दाताओं को समाप्त न किया जायेगा आतंकवाद समाप्त नहीं होगा।
रावण के गुप्तचर अकम्पन ने कहा था कि-
रामो नाम महातेजा: श्रेष्ठ: सर्वधनुष्मलाम।
दिव्यास्त गुण सम्पन्न: परं धर्म गतो युवि।। 21.15
इसलिये उनसे युद्ध करना तो ठीक नहीं है लेकिन उनके मारने का एक उपाय है और वह उपाय है कि उनके साथ जो अत्यन्त सुन्दर स्त्री है जिसका नाम सीता है उसका हरण आप छल बल से कर लीजिये। फिर तो वे उसके वियोग में अपने आप ही मर जायेंगे और आपको उनसे युद्ध करने का कष्ट नहीं उठाना पड़ेगा। उसकी बहिन सूरपनखा ने बातचीत में भय और लोभ की उत्पत्ति करते हुये रावण की सबसे कमजोर नस पकड़ी और उसके सामने सीता की सुन्दरता का ऐसा चित्र खींचा कि वह ललचा गया। उसने सोचा कि यदि में सीता का हरण करके यहां ले आऊंगा तो राम लक्ष्मण यहां पहुंच नहीं पायेंगे और उनकी सीता का पता नहीं चलेगा। और वे अकम्पन के कथनानुसार मर मिट जायेंगे।
अत: रावण ने सीता का हरण कर लंका की अशोक वाटिका में कड़े पहरे में सुरक्षित कर निश्चिंत हो गया था। उसने श्रीराम की गतिविधियां जानने के लिये आठ राक्षसों को नियुक्त कर दिया था।
श्रीराम लक्ष्मण खोज करते चले रास्ते में जटायु आदि से पता लगाते व राक्षसों को मारते हुये शबरी से मंतंग वन में मिले इसके बाद वह दोनों खोजते हुये पम्पासुर पहुंचे। तदुपरान्त ऋष्षयभूक पर्वक के पास पहुंचे जहां हनुमान जी मिले उनके द्वारा सुग्रीव से मित्रता हो गयी। यह भी जानकारी हुई कि किष्कन्द्यापति वाली और लंकापति रावण दोनों मित्र हैं इनकी संधि है तथा रावण वाली को कर देता था तथा कर के रूप में रावण जो भी भेजता था वह अपने चुनिन्दा राक्षसों द्वारा भेजता था तथा वे निशाचर लंका वापिस नहीं जाते थे बल्कि उत्तरी भारत की ओर चले जाते थे और भारत में आतंक बरसाते थे। अब यह स्पष्ट पता चल गया कि आतंकवादी निशाचर किस मार्ग से आते थे व उनको संरक्षण कहां मिलता है पता चल गया। अत: राजनैतिक दृष्टि से वाली वध उचित था। वाली का वध हुआ किष्कन्धा (मद्रास का विल्लारी जिला) का अधिपति सुग्रीव व युवराज अंगद हो गये। श्रीराम को सैन्य बल भी मिल गया। सुग्रीव ने वानर सेना की एक टुकड़ी युवराज अंगद के नेतृत्व में दक्षिण दिशा में भेजी। जो सीता की खोज करती हुयी जा रही थी साथ में जो निश्चर मिलते थे उन्हें भी मारते जाते थे। गोस्वामी जी ने लिखा है कि-
कतंहु हो इनिसिचर से भेंटा। प्रान लेहिं एक-एक चपेटा।।
यह वानर सेना समुद्र किनारे पहुंची जिसे पार करना मुश्किल था। विचार विमर्श के बाद लंका में हनुमान जी को भेजा वे आकाश मार्ग से लंका में सीता की खोज को जा रहे थे। रावण की एक चुम्बकीय शक्ति राक्षस, जिसका नाम सिंहका था, रहती थी जो परछांई पकड़ कर आकशमार्ग से आने वाले को समुद्र में पलट देती थी। आजकल चुम्बकीय शक्ति का नाम राडार है। अर्थात् लंका सरकार का राडार समुद्र में लगा था जिसे हनुमान जी ने तो तोड़ दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि लंका सरकार को लंका में किसी बाहरी के आने के संकेत मिलना बन्द हो गये। तब हनुमान जी लंका में प्रवेश कर गये तथा सीता का पता लगाया और अशोक वाटिका में सीता जी से मिले उन्हें सांत्वना दी। इसके बाद उन्होंने लंका सरकार की शक्ति की जानकारी की, उन अखाड़ों की जानकारी की जहां आतंकवादी शिक्षण केंद्र थे। तत्पश्चात् महाबली ने उन सबको ध्वस्त कर दिया जिससे लंका सरकार को करारा झटका लगा व वह अपने बनाये हुये जाल में स्वयं फंस गयी। महाबली हनुमान भारत वापिस आ गये।
परिणाम यह हुआ कि भारत में खड़ाऊओं का शासन चलता रहा और आतंकवाद का पर्याय रावण आंख उठाकर न देख सका। परन्तु यह काम सरकार के भरोसे पर नहीं होना चाहिये बल्कि प्रत्येक नागरिक का, भाई बहिन का देशवासी का कर्तव्य है कि वह सब प्रकार दलीय, जातीय, ऊंच-नीच के भेदभावों को भुला कर प्रीति की एकता स्थापित कर देश को शरीर माने।
स्वामी राम तीर्थ ने कहा था कि-
‘मैं यहां का शहंशाह हूँ तन है यह हिन्दोस्तान।
सर हिमालय है मेरा, अरू कुमारी चरण जान।
मशरिकी मजरिब है बाजू, कटि तू विन्ध्या चल को जान।
जिस तरफ मैं घूमता हूं, घूमता है हिन्दोस्तान।।
ऐसी स्थिति में भ्रष्टाचार व आतंकवाद का पता नहीं चलेगा।
– नर्बदा प्रसाद वर्मा, रामायणी, ललितपुर