दिलीप साहब से बहुत सीखा – नक़ी

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भोपाल में जन्मे और मुम्बई को अपनी कर्मस्थली बनाने वाले नकी अहमद विगत दिनों अपने एक धार्मिक एलबम की शूटिंग करने भोपाल आये थे। इस अवसर पर उनसे रईसा मलिक से हुई बातचीत के संक्षिप्त अंश-
प्र. क्या आपका जन्म कहां हुआ था?
उ. मेरा जन्म भोपाल में हुआ था।
प्र. आप दिलीप कुमार (यूसुफ खान) साहब के संपर्क में कैसे आये?
उ. मैं अपने छात्र जीवन से भोपाल के सैफिया कॉलेज में होने वाले नाटकों में हिस्सा लिया करता था। सायरा बानो की नानी की बहन हमारी दूर की रिश्तेदार थीं। वो अक्सर भोपाल आया करती थीं। उन्होंने मेरे काम को देखा और मुझे बाम्बे चलने के लिए कहा मैं उन्हीं के साथ बाम्बे चला गया।
दिलीप साहब के साथ मेरा पहला जुड़ाव फिल्म ‘सगीना महतोÓ के समय हुआ उस समय मैं उनके साथ उनके सहयोगी के रूप में दार्जिलिंग गया था। सन्ï 1980 से मैंने अपना स्वयं का काम प्रारंभ किया। लेकिन आज भी मैं दिलीप साहब के साथ जुड़ा हुआ हूँ।
प्र. आपने ने कौन-कौन सी फिल्में लिखी हैं?
उ. मैंने सायरा बानो की भोजपुरी फिल्म ‘अब तो बन जा सजनवा हमारÓ से अपने लेखन की शुरूआत की। इसके बाद मैंने अनेक फिल्में एवं टी.वी. सीरियलों का लेखन किया है।
प्र. क्या आपको फिल्में, सीरियल लिखने एवं नाटक खेलने का शौक बचपन से था?
उ. नहीं ये मैं नहीं कह सकता कि मुझे फिल्मों, सीरियल एवं नाटक का शौक बचपन से था, क्योंकि मेरे घरवाले तो मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे। मैं डॉक्टर तो नहीं बन पाया किन्तु आज मैं डायरेक्टर जरूर हूँ।

प्र. फिल्में सीरियल लिखने का शौक आपको कैसे हुआ?
उ. जी हां मैंने यूसुफ भाई (दिलीप कुमार सा.) को लिखते हुए देखा वे जब भी किसी स्क्रिप्ट को लिखने बैठते उसको तब तक लिखते और फाड़ते रहते जब तक वो खुद उससे संतुष्टï नहीं होते थे। मैें उनके द्वारा फाड़कर फेंके पेजों को उठाता और पढ़ता कि आखिर ये लिखते कैसे हैं? उनके फाड़कर फैंके हुए हर पन्ने में कुछ अलग ही लिखा होता था। उसे पढ़-पढ़ कर मैं भी लिखने लगा और जब मैं लिखने लगा तो यूसुफ भाई (दिलीप साहब) भी मुझसे कहते लिखकर लाओ। किन्तु संक्षेप सिर्फ दो पेज की ही कहानी होना चाहिए। मैं कुछ भी लिखकर देता वो लेने के बाद कोई जवाब नहीं देते कि यह कैसी लिखी थी, जब दस-बारह बार देने के बाद भी वो कुछ नहीं बोले तो आखिर मैंने उनसे पूछ ही लिया कि आपने बताया नहीं कि कैसा लिखा है तब उन्होंने कहा कि तुम लिखो और तुम्हारी लिखी हुई चीज यदि तुम्हारे ऊपर वालों को पसंद नहीं आती है तो तुम उसे रद्दी ही मान लेना वर्ना तुम दिलीप कुमार बन जाओगे।
प्र. दिलीप साहब पर आपके द्वारा लिखी जाने वाली किताब का काम कहां तक पहुंच गया है?
उ. मेरी किताब का काम लगभग 90 प्रतिशत तक पूरा हो गया है। इस किताब को मैं हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू तीनों भाषाओं में प्रकाशित करने की तैयारी कर रहा हूं।
प्र. आपने अपने काम की शुरूआत कैसे की?
उ. सबसे पहले मैंने एक फिल्म ‘शैतान मुजरिमÓ के नाम से बनाई जो खूब चली। और बहुत अच्छा बिजनेस दिया। मैंने ‘गूंजÓ फिल्म जलाल आ$गा के साथ की थी। निर्वाण लिखी, अनाड़ी-खिलाड़ी, मस्तान भाई के लिए भी एक फिल्म लिखी।
सबसे पहला सीरिलय था शिकस्त, डीडीवन में मिस्टर और मिसेज, कर्तव्य, खिलाड़ी फारूख शेख के साथ, बांगो, गुमराह, आदि सीरियल मैंने लिखे। मसीहा सीरियल भी मैंने लिखा था जो रिली$ज नहीं हो पाया उसमें मैेंने गंगा-जमुनी तह$जीब को दर्शाते हुए पंडित के मुंह से कुरान की बातें कहलवाई हैं।
प्र. आपने $ग$जलें भी लिखी हैं?ï
उ. हां मैं $ग$जलें भी लिखता हूँ, सबसे पहली $ग$जलें मैंने पंकज उद्घास का एक कैसेट ‘अनोखाÓ के लिए लिखी थीं जिसे म्यू$िजक इण्डिया ने निकाला। यह कैसेट बहुत बिका जिससे मुझे काफी रॉयल्टी भी प्राप्त हुई। मुझे $ग$जलों का शौक भी यूसुफ भाई (दिलीप कुमार जी) के साथ रहकर ही हुआ वर्ना इससे पहले मुझे $ग$जलें लिखना का कोई शौक नहीं था। मेरी अपनी फिल्म अनाड़ी खिलाड़ी के गाने सन्ï 86 में रिली$ज हुए उस कैसेट में मेरा नाम भी है। म्यू$िजक इण्डिया वालों ने मुझे कई बार मुशायरा पढऩे के लिए बुलाया किन्तु मैंने मना कर दिया क्योंकि मैं तो एक फिल्मी शायर ही अपने आप को मानता हूँ।
प्र. क्या आपने कोई फिल्म भी बनाई है?
उ. हां मैंने ‘नथÓ के नाम से एक फिल्म बनाई है।
प्र. एक्टिंग की तरफ आपका रूझान क्यों नहीं रहा?
उ. मैंने एक्टिंग की तरफ ध्यान नहीं दिया मैं इस्माइल श्राफ जो मेरे दोस्त भी हैं के पास रोल लिखने के लिए गया तो उन्होंने मुझे गोल्डन गन फिल्म में इंस्पेक्टर का रोल दिया। सगीना महतो मैं मैंने दिलीप कुमार के दोस्त का रोल किया था। इसके अलावा अनेक फिल्मों में छोटे-बड़े रोल किये हैं।
प्र. आपका भोपाल आना कैसे हुआ?
उ. भोपाल में मेरी मां एवं मेरा छोटा भाई शकील अहमद रहते हैं वैसे तो मैं यहां आता रहता हूँ। लेकिन हाल फिलहाल मैं अपनी लिखे हुए धार्मिक गीतों, नात, दुआ आदि का फिल्मांकन करने भोपाल आया हूं।
इन गीतों, नातों को रिकार्ड करके मैंने अलग-अलग म्युजिक कम्पनियों को सुनाया तो वीनस कम्पनी में मुझे मशवरा दिया गया कि इनको आप शूट करें क्योंकि अब $जमाना सुनने वाला नहीं देखने वाला हो गया है। तब मेरे परिवार के लोगों ने मुझसे कहा तो मैं भोपाल आकर इनकी शूटिंग करूं। मैंने अलग-अलग स्थानों पर जैसे ताजुल मसाजिद, शिफा मन्$िजल, फै$ज बहादुर साहब की म$जार, आदि स्थानों पर आधुनिक तरीके से म्यू$िजक के साथ इन गीतों की शूटिंग की है। कुछ लोगों ने इस बात पर एतरा$ज भी किया कि गीतों, नातों को म्यू$िजक के साथ क्यों शूट कर रहे हो? तो मैंने कहा आज लोग जिस $जुबान को समझते हैं जिसे याद रखना चाहते हैं तो क्यूं न हम उसी जु़बान पर आधुनिक तरीके से इनको फिल्माएं और लोगों तक पहुंचायें ताकि वे इसे याद रखें। इस तरह से मैंने अल्लाह से माफी मांगने का रास्ता भी चुना है। मैं हदीस को बदलने कुरान शरीफ में तब्दीली लाने की बात नहीं कर रहा हूँ क्योंकि वो ता-$कयामत तक वैसा ही रहने वाला है ये आप हम सभी जानते हैं।
प्र. आपने जो धार्मिक वीडियो कैसेट बनाए हैं इससे होने वाली आय का आप क्या करेंगे?
उ. इससे आने वाली आय को मैं सिर्फ लड़कियों की पढ़ाई में खर्च करने का मन बनाया है।
प्र. इन कैसेट को शूट करने में आपकी मदद और किन लोगों ने की?
उ. कैसेट को शूट करने में रज़्$जा$क साहब ने मेरी बहुत मदद की वैसे भी मैं इनका बहुत एहसान मन्द हूँ की सबसे पहले सेफिया कॉलेज में नाटक में मुझे र$ज्ज़ा$क साहब ही लेकर आये थे। रज़्$जा$क साहब ने ही मुझे रईस हसन साहब से मिलवाया।
प्र. इनको शूट करने के लिए आपने आर्टिस्ट कहां से लिये हैं?
उ. आर्टिस्ट तो भोपाल से ही लिये हैं किन्तु एक अंतिम जो दुआ है वह मैंने स्वयं के ऊपर फिलमाई है। यहां शूटिंग करके मुझे यहां का वातावरण इतना अच्छा लगा कि मेरा मन यहां एक फिल्म बनाने का हो रहा है। मैं यहां से जाकर वीनस वालों से गु$जारिश करूंगा कि आप लोकेशन चल कर देख लें।
प्र. आजकल जो छोटे-छोटे बच्चों को आर्टिस्ट के तौर पर पेश किया जाता है और सरकारें भी बच्चों के काम करने पर रोक लगा रही हैं तो इस बारे में आपका क्या कहना है?
उ. बच्चों की पढ़ाई तो खराब होती ही है क्योंकि कुछ मां-बाप ऐसे हैं जो बच्चों को पैसा कमाने वाली मशीन की तरह इस्तेमाल करते हैं तो बच्चे के दिलो-दिमा$ग पर असर पड़ता है और उनकी पढ़ाई पर भी बुरा प्रभाव पड़ता इसलिए उनका समय निश्चित होना चाहिए ताकि उनकी पढ़ाई भी होती रहे हो काम भी करते हैं जिससे उनका भविष्य उज्जवल हो।
प्र. क्या आपकी कोई किताब छपी है?
उ. नहीं मेरी कोई किताब तो नहीं छपी पर दिल्ली से प्रकाशित रूबी नामक पत्रिका में मैंने आलेख लिखे हैं। मैंने अमिताभ बच्चन, दिलीप कुमार साहब, संजीव कुमार, अमजद खान, सायरा बानो आदि के जीवन के बारे में जितना मैं जानता था लिखा है। – रईसा मलिक