आज का युग विकसित और विकासशील युग है। लेकिन भारत और मध्यप्रदेश सरकार आज भी आदिकाल को भुला नहीं पा रही है। ये सरकारें आगे बढ़ कर विकास की बात करना तो दूर की बात, वह इस ओर सोचना भी नहीं चाहतीं। जबकि सारी दुनिया, पूरा संसार कोरोना की मार झेल रहा है और झेलते-झेलते अच्छी सोच के साथ देश के हर नागरिक का ध्यान रखते हुए कोरोना की लड़ाई लड़ रहा है। किन्तु भारत एक ऐसा देश है जो कोरोना से जुबानी जंग लड़ रहा है। ऐसा कहना उचित इसलिए भी है कि यहां वर्ग, जाति, ऊंच-नीच, अच्छा-बुरा आदि अनेकों तरह की जुबानी जंग से कुछ लोग गोदी मीडिया के माध्यम से ही लड़ाई लड़ जनता को भ्रमित करने का काम कर रहे हैं, पंरतु यह नहीं जानते कि जनता अब जागरुक हो गई है वो अब सब कुछ समझ गई है। समाज का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जो इन बातों की सच्चाई को जानता और समझता भी है।
अब हम बात करेंगे देश ही नहीं दुनिया का एक ऐसे स्तंभ की जिसे सभी समान रूप से देखते हैं, इस स्तंभ की प्रशंसा, सम्मान करते लोगों का मन नहीं भरता और न ही उनके पास इतने शब्द होते हैं कि वो उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा कर सकें, ऐसा क्यों? ऐसा क्या है उसमें कि देश ही नहीं विश्व का हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में इस स्तंभ से जुड़ा हुृआ है, किन्तु उसके लिए आज वो चिंतित भी है, क्योंकि वो जानता है कि अगर वह स्तंभ सुरक्षित है तो विश्व का हर नन्हा-मुन्ना बच्चा, नौजवान, युवा, वृद्ध व्यक्ति सुरक्षित है। अगर वो असुरक्षित है तो कोई भी सुरक्षित नहीं?
हमें लगता है कि इतनी बात करने से आप सभी समझ ही गये होंगे कि किस स्तंभ की बात की जा रहे हंै? चलिये हम ही इसका खुलासा किये देते हैं क्योंकि ये बात सिर्फ उस स्तंभ की ही नहीं बात है, भारत देश के सभी नागरिकों की चाहे वो बच्चा, युवा, वृद्ध ही क्यों न हो की बात है। देश के भविष्य की बात है, क्योंकि बच्चे ही देश का भविष्य हैं और यह भविष्य खतरे में है।
आज कोरोना काल में जब सरकार नये-नये कानून बना रही है सिर्फ इसलिए कि लोग एक-दूसरे से दूरी बना कर रखें, घर से बाहर न निकलें, क्या न करें। ऐसा कोरोना जैसी बीमारी से लडऩे और बचने का सबसे अच्छा तरीका यही है। अब सवाल उठता है कि जनता की जान बचाने के लिए एक तरफ सरकार द्वारा बनाये गये कानून का पालन न करने पर लोगों अनेक तरह से सजा भी दी जाती है, कभी पिटाई, कभी एफआईआर और कभी-कभी जेल भी भेज दिया जाता है। प्रशासन क्यों न करें ऐसा, आखिर कोरोना से जो लडऩा है।
लेकिन सरकार का दोहरा रवैया जनता की समझ से परे हैं, एक तरफ तो उपरोक्त लिखित बातें जिन्हें अनेकों अनेक लोग झेल भी चुके हैं। एहतियाती कदम और दूसरी तरफ अब हम सीधी बात करते हैं। देश का स्वयं भविष्य नन्हें-मुन्ने बच्चों और दूसरी तरफ उस भविष्य को संगतराश की तरह तराशने वाले टीचर। अब आप सोचेंगे कि यहां पर संगतराश की बात क्यों, क्योंकि एक शिक्षक अपनी पूरी मेहनत से अर्थात तन-मन-धन से अपने जीवन का अमूल्य समय लगा कर बच्चों के भविष्य को सजाता-संवारता हैं जैसे कि एक संगतराश पत्थर को गढ़ कर सुन्दर मूर्ति बना देता है उसी प्रकार से शिक्षक बच्चों को शिक्षित कर एक अच्छा नागरिक और इंसान बनाता है।
यहां मैं उन चन्द शिक्षकों की बात नहीं कर रही हूं जो सिर्फ अपनी अपने फायदे की बात करते हैं चाहे इसके लिए उन्हें भ्रष्टाचार ही क्यों करना पड़े। बच्चों के भविष्य को खतरे, गर्त में डालने में भी नहीं झिझकते। खैर किसी न सच ही कहा है कि जैसी करनी वैसी भरनी, और किया नहीं तो करके देख। आज नहीं तो कल स्वयं नहीं तो परिवार और परिवार नहीं तो स्वयं के बच्चे भी इसका अंजाम भुगत लेते हैं और हमें पता भी नहीं चलता। जैसे कहा जाता है कि ईश्वर की लाठी में आवाज नहीं होती। मैं कहां इन नसीहतों में उलझ गई जो जैसा करेगा वो वैसा भरेगा।
अब हम बात करते हैं सरकार की शिक्षकों के प्रति अनदेखी करने की। अनदेखी इसलिए भी कि मध्यप्रदेश सरकार ने जो तुगलकी फरमान जारी किया है, घर-घर जाकर बच्चों को शिक्षा देने का या इंंटरनेट मोबाइल के माध्यम से बच्चों को शिक्षित करने का। तो पहले हम बात करते हैं घर-घर जाकर किसी शिक्षक का बच्चों को शिक्षत करना कितना उचित है या अनुचित है। इस नीति से शिक्षक और बच्चे दोनों को होने वाली कठिनाईयों और सुविधाओं के विश्षय में सोचने की।
तो सबसे पहले हम देखते हैं कि शिक्षक का घर-घर जाकर पढ़ाना कितना सही है। क्या सरकार नहीं जानती कि मध्यप्रदेश में स्कूलों में बच्चों को शिक्षित करने वाले शिक्षकों का प्रतिशत उनकी उम्र के हिसाब से कितना है। कितने प्रतिशत युवा और कितने प्रतिशत वृद्ध शिक्षक हैं। क्या सरकार ने घर-घर भेजने का तगुलकी फरमान निकालने से पहले यह जानने की कोशिश की कि कितने प्रतिशत शिक्षक पूरी तरह से स्वस्थ हैं और जिनको डायबिटीज, अस्थमा, हृदय रोग, कैंसर जैसे घातक बीमारियां हैं क्या वो इन परिस्थितियों में बच्चों को पढ़ाने घर-घर जा सकते हैं। मध्यप्रदेश सरकार का तुगलकी फरमान जो है, उसका पालन को करना ही पड़ेगा। एक ओर तो सरकार लोगों से घरों से कम से कम निकलने की बात करती है तो दूसरी तरफ शिक्षकों को रोज अलग-अलग 5 घरों में जाकर पढ़ाने के आदेश जारी किये गये हैं।
मध्यप्रदेश और केन्द्र सरकार से जनता एक सवाल और पूछना चाहती हैं कि ऐसा दोहरा चरित्र क्यों? क्या शिक्षक इंसान नहीं, क्या उनका घर-परिवार नहीं है। पति-पत्नी, बच्चे, मां-बाप आदि सदस्य उनके साथ उनके घर पर नहीं रहते हैं। शिक्षक पढ़ाने के लिए जब कई घरों में जाते हैं तो उसके बाद वह अपने घर भी वापस आते हैं। शिक्षक जिन घरों में जाकर लोगों और बच्चों के संपर्क में आ रहा है तो क्या पता कि उनमें से कौन कोरोना के घातक विषाणु से पीडि़त है और कौन नहीं? अनजाने में यदि शिक्षक कोरोना के विषाणु से ग्रसित हो जाता है तो वह जिन-जिन घरों में बच्चों को पढ़ाने जा रहा है वहां भी रोग के कीटाणु ले जायेगा और वापस अपने घर आने पर उसके परिजन भी इसस ग्रसित हो सकते हैं। इस विषय में सरकार ने कुछ नहीं सोचा। शिक्षकों को स्वयं भी पता नहीं होगा कि वह जिन बच्चों के घरों पर पढ़ाने जा रहा है उनको वह शिक्षित कर रहा है या बीमारी के कीटाणु उन तक पहुंचाने वाला वाहक बन रहा है।
सरकार को इस ओर सोचना होगा और देश का एक मजबूत स्तंभ और भविष्य दोनों को सुरक्षित रखने का कोई नया और सुरक्षित रास्ता खोजना होगा। अगर सरकार, अध्ािकारी, तंत्र को समझ से परे है तो यह स्वतंत्र देश है। हर व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति की आाजदी है। उससे ही सलाह, सुझाव ले सकते हैं, इसके लिए फेसबुक, व्हाट्सअप, ट्वीटर आदि अनेक रास्ते हैं, इसके माध्यम से सुझाव ले लें। देश में एक से एक ज्ञानी विद्यमान हैं जो सुझाव देकर सरकार का सहयोग कर सकते हैं।
सरकार के तुगलकी फरमान, शिक्षकों के घर-घर जाकर पढ़ाने के एक ही पहलू पर बात की है। जबकि इस संबंध में कई बातें जो करनी थीं वो रह गई हैं। और इस पर आपसे फिर कभी चर्चा करेंगे।
लेकिन अब दूसरे पहलू पर बात करते हैं जो कि बच्चों और उनके अभिभावकों से भी जुड़ा हुआ है। उसका दर्द भी बयान करना, सरकार और लोगों तक पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी बनती है। क्योंकि हम गोदी मीडिया नहीं, हम तो सार्थक और सच्ची बात कहना ही अपना धर्म समझते हैं। हम बताना चाहते हैं वो स्थिति जब कोई शिक्षक घर-घर जाकर शिक्षा देने बालक के घर पहुंचता है शिक्षक, अभिभावक और उनके साथ-साथ बच्चों के मान पर उस क्षण का अच्छा और बुरा प्रभाव उनके मन नन्हें-मुन्ने मन पर पड़ता है। क्योंकि कुछ छात्रों के लिए तो ये बात गर्व की होती है कि शिक्षक उनका गुरू उनके घर आया उन्हें पढ़ाने के लिए। लेकिन कहीं यह क्षण बच्चों के लिए कहर बन कर उनके दिल-दिमाग को हिला भी देता है कि जब शिक्षक उनके घर पहुंच कर दरवाजे पर खड़ा है वह सच्चे मन से उसका स्वागत भी करना चाहते हैं, शिक्षक से पढऩा भी चाहते हैं। लेकिन उनके पास 10 बाई 10 का कमरा भी नहीं होता जहां उनके परिवार के 8-10 लोग एक साथ रहते हैं। दादा-दादी बीमार हैं, कराह रहे हैं तो कहीं छोटे-छोटे बच्चे शोर मचा रहे हैं। ऐसे माहौल में बच्चा चिंतित हो उठता है कि वह ऐसे माहौल में शिक्षा ग्रहण कैसे करे?
विद्यालय में वह तो अच्छे से तैयार होकर पहुंचते हैं तो उनकी परिस्थितियों के बारे में न तो शिक्षक जानते हैं और न ही साथी छात्र, परंतु जब दरवाजे पर शिक्षक आ खड़ा हुआ तो अब सारी बातें सबके सामने खुल कर आ जाने का डर पैदा हो जाता है। अब वह कहां बैठ कर पढ़े और क्या पढ़े यह समझ ही नहीं पाता।
कई जागरुक लोग जो जानते हैं कि कोरोना बीमारी इंसान के सम्पर्क में आने से फैलती है उनमें शिक्षक भी शामिल हैं और इन हालात में उनको दिन भर में कितने ही नये व अनजान लोगों से संपर्क करना पड़ रहा है, ऐसे में बीमारी से ग्रसित होने के खतरा सर पर मंडराने के बावजूद उसे सरकारी आदेशों का पालन भी करना है और अपनी नौकरी भी बचाना है।
अब बात करते हैं ऑनलाईन शिक्षा की यह तो गरीब लोगों के लिए कोरोना से भी घातक बीमारी हो गई है। गरीब मजदूर वर्ग जैसे-तैसे बच्चों की फीस का, पढ़ाने का इंतजाम कर ही रहा था कि कोरोना के बाद की परिस्थितियों ने उसे बेरोजगार बना दिया। बेरोजगारी में दिल व दिमाग की सोचने-समझने की शक्ति ही समाप्त हो गई। इस पर बच्चों को ऑनलाईन शिक्षा दिये जाने के फरमान ने तो आग पर घी डालने का काम किया। क्योंकि हर व्यक्ति के पास स्मार्ट फोन तो होता नहीं कि उस पर बच्चे ऑनलाईन शिक्षा ग्रहण कर सकें, अब सरकारी आदेश ने गरीब को और चिंता में डाल दिया कि स्मार्ट फोन कहां से खरीदें और यदि उधार लेकर या किश्तों में खरीद भी लिया तो ऑनलाईन शिक्षा के लिए अब एक इंटरनेट का प्लान भी आपको अपने मोबाइल पर डलवाना होगा ताकि बच्चा ऑनलाईन शिक्षा ग्रहण कर सके। जिनके पास खाने के लिए अनाज नहीं, पहनने के लिए कपड़े नहीं ऐसे गरीब व्यक्ति कैसे स्मार्ट फोन खरीदें, कैसे इंटरनेट के प्लान के लिए पैसा जुटाएं, विचारणीय है।
अब यदि मोबाइल फोन ले लिया और इंटरनेट का प्लान भी डलवा लिया तो निरक्षर और गरीब मां-बाप को यह फोन चलाना ही नहीं आता। छोटे-छोटे बच्चे भी समझ नहीं पाते कि इसका उपयोग कैसे करें। किससे इसे चलाने के बारे में समझें?
अब इसी संदर्भ में एक बात और सामने आती है कि एक समय ऐसा भी था जब कोई बच्चा अपने या अपने माता-पिता का मोबाइल गलती से विद्यालय लेकर चला जाता था तो उससे यह मोबाइल छीन कर उसको सजा दी जाती थी, उसके अभिभावकों को बुला कर नसीहत दी जाती थी कि अभी से आपने बच्चों को फोन पकड़ा दिया। अब सरकार स्वयं ही छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में मोबाइल दिलवा रही है, पढ़ाई के नाम पर। इस पर पढ़ाई करने के बाद बच्चा इसका क्या उपयोग करेेगा, क्या देखेगा क्या नहीं देखेगा, क्या खेलेगा और क्या-क्या नहीं करेगा इस पर किसी ने नहीं सोचा।
यह चिंता का विषय है जबकि इंटरनेट कनेक्शन के साथ स्मार्ट फोन एक छोटे बच्चे के हाथ में आ गया है तो अब इसका उपयोग वह किस तरह करेगा। हर बच्चा इतना समझदार नहीं होता कि वह दुनिया की अच्छी-बुरी बातों में फर्क कर समझ लें क्या सही है और क्या गलत है। नाबालिग बच्चों के हाथों में मोबाइल देकर हम उन्हें किस ओर धकेल रहे हैं यह हमें सोचना होगा। देश में ऑनलाईन शिक्षा की बात करने वालों को यह पता होना चाहिए कि देश के हर कोने में इंटरनेट का कनेक्शन नहीं पहुंच पाया है। ऐसे में कितने बच्चे इस ऑनलाईन शिक्षा का लाभ उठा पायेंगे पता नहीं, बाकी बच्चों का क्या होगा, पता नहीं। भारत जैसे विकासशील देश में विकसित देशों जैसी बातें लागू करने की कोशिश करने वाले पहले देश में विकसित देशों जैसी सुविधाएं मुहैया करायें। बिजली की व्यस्थाएं नहीं हैं, इंटरनेट सभी जगह नहीं पहुंचा है और हर व्यक्ति तक स्मार्ट फोन खरीदने और उसका मासिक प्लान खरीदने की क्षमता नहीं बन पाई है। ऐसे में ऐसे तुगलकी आदेशों से सरकार क्या साबित करना चाहती है समझ से परे है। – रईसा मलिक