मुमताज़ अपने दम पर सुपरस्टार बनीं

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49 साल पहले राज खोसला की ‘दो रास्तेÓ के निर्माण-काल की बात है, जिस फिल्म ने मुमताज को स्टारडम की चकित करने वाली ऊंचाइयां प्रदान कीं। कुछ मिनटों के बाद लाइट्स और भी मंद कर दी गईं। तलत ने अपनी सदाबहार गजल ‘बरसात की भीगी रातों में…Ó गाना शुरू किया, लेकिन मेरी नजर बार-बार चुपके से इस खूबसूरत मुस्लिम महिला पर जा ठहरती थी, जिसने न सिर्फ सिने-जगत में अपने पद-चिह्नï छोड़े, बल्कि कैंसर को भी धत्ता बताया।
यह सब करने के बाद वह आज यहां आकर्षक गुलाबी परिधान में मौजूद थीं। किसी अंधेरे कमरे में खुद को छिपाकर मौत के ठंडे हाथों का इंतजार करने के बजाय ïवह जीवन नामक अमूल्य तोहफे के एक-एक पल का जश्न मना रही थीं। मैं उनके प्रति प्रशंसा-भाव से भर उठा। मुमताज ने बॉलीवुड के दरवाजे पर तब दस्तक दी थी, जब उनकी उम्र की लड़कियां स्कूल जाया करती थीं।
उनके एक्ंिटग कैरियर की शुरुआत बी और सी ग्रेड की फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाओं से हुई। मुझे याद है, मैं पहली बार अपने पिता की ब्लैक एंड ह्वïाइट फिल्म ‘जंग और अमनÓ के सेट पर उनसे मिला था। इस फिल्म में वह दारा सिंह के अपोजिट मुख्य भूमिका में थीं, जिनके साथ उन्होंने 8–10 फिल्में की हैं।
स्टंट फिल्मों में लीड रोल करने के बाद उन्होंने ‘मेरे सनमÓ में वैंप का रोल भी किया। यह उनकी पहली ए ग्रेड फिल्म मानी जाती है। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। जल्दी ही वह अग्रणी हीरोइनों में शामिल हो गईं। उन्होंने अपना मकाम खुद हासिल किया। किसी की मदद नहीं ली।
यह बॉलीवुड जैसी जगह में, जहां एक प्रकार का कास्ट सिस्टम हमेशा रहा है और आज भी है, बड़ा साहसिक काम था। शायद वह हर फिल्म में ठूंसे जाने वाले आइटम गीत कर-करके ‘आइटम गर्लÓ ही बनी रह जातीं, मगर उन्होंने काम के उस स्तर से ऊपर उठना चाहा और धीरे–धीरे स्टार बन गईं।
मुमताज छठे और सातवें दशक की ऐसी बॉलीवुड मूवी स्टार हैं, जिनका सही मूल्यांकन नहीं हुआ। उन्हें समीक्षकों की वाहवाही नहीं मिली, जो शर्मिला टैगोर सरीखी उनसे छोटी स्टारों ने पायी। निर्माता-निर्देशकों ने उन्हें कभी अच्छी भूमिकाएं नहीं दीं, जिनकी वह हकदार थीं।
मुमताज ने 120 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। मुमताज अभिनीत मेरी सबसे पसंदीदा फिल्म ‘खिलौनाÓ है। उन्होंने अपनी ज्यादातर फिल्मों में अपने को-स्टार्स को पछाड़ा है। उनमें कुछ बात ही ऐसी थी कि स्क्रीन उनकी उपस्थिति से जगमगा उठता था।
उनकी जिंदादिली, जोश, सहज-स्वाभाविक ऊर्जा… यही सब दर्शकों को चकाचौंध कर देता था। हिट पर हिट फिल्में देने के बावजूद समीक्षकों ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। दुर्भाग्य से हमारे देश में अच्छा एक्टर आपको तभी माना जाता है, अगर आप ‘सीरियसÓ हैं। जो हमारा सिर्फ मनोरंजन करते हैं, उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है।
– एम. भट्टï मुम्बई