आत्महत्या हल नहीं है समस्याओं का

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किसी व्यक्ति को आत्महत्या का अधिकार होना चाहिए या नहीïं, यह मुद्दा एक बौद्धिक बहस का मुद्दा तो है ही पर सच यह है कि ‘उसने आत्महत्या कर लीÓ, यह वाक्य सुनते ही मन द्रवित हो उठता है और अनजान व्यक्ति के मन मेïं भी बहुतेरे सवाल कौंïधने लगते हंैï मसलन उसके परिवार का होगा क्या? आखिर क्या वजह थी, जो किसी ने ऐसा कदम उठाया। इन सभी सवालात् के जवाब इंसानी समझ से परे हैं।
नि:संदेह हम सभी अपने जीवन को बहुत प्यार करते हंैï व आपस मेंï ढेरोंï खुशियाँ बाँटना चाहते हैïं, अपनों से बहुत कुछ पाना चाहते हैंï। कभी संघर्षों, कभी पारिवारिक परेशानियोंï तो कभी बेहद निजी कारणोंï से अक्सर लोग हिम्मत हार जाते हैंï और परिणाम कभी-कभी आत्महत्या के रूप मेंï सामने आता है। फिर भी यह बात सोचने, समझने, जानने और मानने की है कि कोई भी मुश्किल या परेशानी इंसान से बड़ी नहीï होती। कुछ यूँ समझेï इस गुत्थी को:
क्या है प्रवृत्ति आत्महत्या की
विभिन्न शोधोंï से पता चलता है कि आत्महत्या की प्रवृत्ति महिलाओंï मेंï, विशेषकर 36 से 52 साल की आयु के बीच अधिक पायी जाती है। आत्महत्या की प्रवृत्ति एक वैचारिक द्वन्द्व और विकृत मनोदशा का परिणाम है। समझेïं इस प्रवृत्ति को
* जिस महिला मेïं आत्महत्या की प्रवृत्ति अर्थात् आत्महत्या का विचार बार-बार आता है, वह आत्महत्या कभी करेगी, यह आवश्यक नहींï है।
* आत्महत्या का विचार शुरू मेंï लगभग दो-तीन महीने के अंतराल पर आता है, जिसकी फ्रीक्वेंïसी धीरे-धीरे कम होने लगती है।
* यह एक गंभीर मानसिक दशा का लक्षण है। इन लोगोंï को एक मरीज की तरह ही परिजनोंï के प्यार व देखरेख की जरूरत होती है।
* इन रोगियोïं मेंï मनोदैहिक लक्षण भी दिख सकते हैïं, जैसे कंधोïं व गर्दन के गिर्द जकडऩ, कानोïं मेंï लगातार सीटी की आवाज आना इत्यादि।
* जिस दौरान यह प्रवृत्ति अपनी तीव्रता पर हो, उस समय अन्य व्यक्तियोïं का व्यवहार संतुलित होना चाहिए यानी न अधिक चिंतित दिखेï और न अवहेलना करेïं।
* समस्याग्रस्त व्यक्ति के लिए समाधान मेंï मदद दूसरे लोग ही कर सकते हैïं, बस समझ का फेर नहींï होता।
* अधिकतर देखा गया है कि जिसमेंï आत्महत्या की प्रवृत्ति होती है, उसका उद्देश्य खुद को खत्म करना नहींï बल्कि लोगोï का ध्यान खींïचना होता है।
* विनाशी प्रवृत्ति वाले व्यक्ति जब आत्महत्या जैसा कदम उठाने वाले होते हैïं तो उनमेंï बहुत से परिवर्तन दिखते हैंï जैसे मूड का बदलना, डिप्रेशन, घबराहट आदि। लक्षण जितना तीव्र हो, आत्महत्या का चांस उतना ही ज्यादा होगा।
आत्महत्या का प्रयास कर चुकी महिलाओïं मेंï पुन: आत्महत्या की सम्भावना अधिक रहती है, अत: ऐसे लोगोïं की देखरेख ज्यादा की जानी चाहिए।
कारण: आत्महत्या की प्रवृत्ति के
* डिप्रेशन, चिन्ता, अनजाना भय या कोई अन्य मानसिक व्याधि
* नकारात्मक विचारधारा
* वंशानुगत कारण भी
* जीवन पद्धति का ज्ञान न होना
* संघर्ष-क्षमता का अभाव
* लगातार बीमार रहना
* पारिवारिक माहौल
* व्यस्त न होना
* उचित सम्मान न मिलना
* इच्छापूर्ति न होना
* अपनी ओर ध्यान आकृष्टï करना
* किसी भी कारण का न होना। ‘बस प्रयास करके देखते हैïंÓ जैसी विचारधारा
कारण: आत्महत्या के
* अन्तद्र्वन्द्व
* मानसिक रोग
* परिवार, विशेषकर पति द्वारा ‘जो करना है, कर लो पर तंग मत करोÓ जैसे वाक्योंï का बोला जाना
* दूसरे की नजर मेंï अपने लिए महत्व का न दिखाई देना
* आर्थिक परेशानियाँ
* इमोशनल फैक्टर, जैसे किसी प्रिय की मृत्यु या बीमारी
* निराशा
* असफलता
* प्यार मेïं असफलता या धोखा
* परीक्षा मेंï फेल हो जाना
कारण कुछ भी हो मगर कल्पना करें, उस परिवार पर क्या बीतती है, जब वहाँ माँ, बेटा, बहू, बहन या पत्नी पलक झपकते कहींï खो जाती है। यह सच है, मरना कोई भी नहीïं चाहता पर प्रयास की तीव्रता कभी-कभी न चाहते हुए भी तुरन्त जीवन निगल लेती है।
कैसे रोकेï खुद और दूसरोïं को
* अंग्रेजी मेï एक कहावत है- ‘प्रिवेन्शन इस बेटर दैन क्योरÓ यहाँ भी लागू होती है। यह ऐसी समस्या है, जहाँ कर्ता और शिकार एक ही होता है। सबसे बड़ा बचाव है कि सचेत रहेंï और निम्न बिंदुओïं की मदद लेïं।
* स्वयं या पीडि़त को डिप्रेशन और निराशावादी विचारधारा से बचायेïं।
* पीडि़त का मजाक न बनायेंï और न ही उसे चुनौती देïं।
* एंटी सुसाइडल सेल या कुशल साइकोलॉजिस्ट की मदद तुरन्त लेï।
* अपने घर मेïं या आसपास ऐसी चीजेï न रखें जो घातक हों।
* जब यह दौर चल रहा हो, उस समय उसे परिवार की दुहाई न देïं।
* इन मामलोïं मेïं या तो पीडि़त स्वयं या कोई तीसरा व्यक्ति ही मदद कर सकता है। परिजन न समझायेंï।
* खुश रखने और रहने की कोशिश करेïं।
* उस महिला को बतायेï कि यह एक मानसिक रोग है।
* कारण समझ उसे दूर करने की कोशिश करेïं।
* यदि आप स्वयं पीडि़त हैं तो अपने शुभचिंतकोïं व घरवालोïं को बतायेï कि आपके मन मेïं आत्महत्या का विचार आता है।
* स्वास्थ्य पर समुचित ध्यान देïं।
* बदलाव लायेïं।
* अकेलेपन से बचेंï।
रूटीन मेïं क्या बदलाव लायेïं
* जल्दी सोकर उठेïं।
* थोड़ी देर खुली हवा मेंï टहलेïं।
* नहाने के लिए बाथ-टब का प्रयोग करेïं, उस पानी मेंï एरोमा एंसेस या गुलाब अथवा अन्य फूल डालेंï।
* कुछ दिनों के लिए किचेन रूटीन बदलेï। यदि खाना खुद बनाती हैïं तो किसी कुक की मदद लेïं, कुक से बनवाती हैïं तो खुद बनायेï।
* जिम या क्लब जाना शुरू करेïं।
* कार्टून फिल्म इत्यादि भी देखेï।
बदलाव पहनावे मेïं
* अपने आउटफिट्स बदलेïं।
* नयी ड्रेसेज व साडिय़ाँ खरीदेïं।
* गहरे रंग के कपड़े पहनेंï।
* घर मेंï भी हल्का मेकअप करेï।
* मन मेंï यह विचार लायेंï कि मुझे खुद के लिए तैयार रहना है।
* हल्की एम्ब्रॉयडरी के प्रयोग वाली ड्रेस पहनेï
* फुटवियर्स, पर्स, एसेसरीज भी बदलेंï।
प्रोफेशलन लाइफ मेंï
* सहकर्मियोïं संग सहयोगी बनेंï।
* काम का तनाव हावी न होने देïं। काम आपको ही करना है, अत: रिलैक्स होकर करेïं।
* छोटे-छोटे कार्टून और पिक्चर अपनी टेबल पर रखेïं।
* कम्प्यूटर पर कोई मधुर संगीत लोड करेंï, उसे लंच ब्रेक मेïं सुनेंï।
* पुरुष सहकर्मियोï की द्विअर्थी और भद्दी बातोïं पर प्रतिक्रिया जरूर करेïं।
घर मेïं
* किचेन गार्डेन मेंï नये प्रयोग करेïं।
* पर्दों के रंग और फर्नीचर मेंï बदलाव लायेïं।
* कमरे का इन्टीरियर खुद ही बदलेï
* माहौल बदलेï खुशी-खुशी रहेï, उससे पूरा परिवार खुश रहेगा।
खुद मेïं
* आशावादी बनेïं।
* दिल खोलकर हँसेï।
* ज्यादा गम्भीर न रहेïं।
* कॉमेडी फिल्म देखेंï।
* विंडो शॉपिंग करेïं।
* कभी बेवजह कहींï बाहर जायेïं।
* अपनी रुचि अन्य चीजोïं मेंï भी जतायेï जैसे डांसिंग, कम्प्यूटर, कुकिंग इत्यादि।
* विश्वास रखेïं ‘सब ठीक हो जायेगाÓ।
* कोई भी किसी को नहींï बदल सकता, हमारे हाथ सिर्फ खुद को बदलना है, वही करेंï।
खान-पान मेïं
* पौष्टिïक पदार्थ लेïं।
* गहरे रंग की सब्जियाँ और फल खायेंï जैसे गाजर, शिमला मिर्च, तरबूज, आम इत्यादि।
* डॉक्टर से मशविरा लेकर, डाइटीशियन की मदद लें।
– रमेश पंवार