कहानी – नाशुक्री हनीफा

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जीवन में जिसको सब कुछ मिल जाता है लेकिन फिर भी वह उसके लिये उस उपर वाले का शुक्र न करते हुए आसमान में पत्थर मारने की कोशिशें करता है जो कि उसके लिए ही हानिकारक होता है क्योंकि आसमान पर फैंका हुआ पत्थर वापिस नीचे ही आता है और चोट लग सकती है।
कुछ ऐसी ही थी हनीफा और ईश्वर ने सब कुछ दिया था सुन्दर सा पति प्यारा सा घर। सुख सम्पदा सभी कुछ ईश्वर ने उसे दिया था लेकिन वह थी नाशुक्री।
जिस घर में उसका रिश्ता हुआ वे लोग बहुत ही भले लोग थे उन्होंने हनीफा के आगमन की पूरे ज़ोरशोर से तैयारियां की थीं ख़ासतौर से हनीफा की सास ने तो अपने पूरे अरमान पूरे किये थे। हर रस्मों रिवाज हर शगुन हर खुशी पूरी की थी। और उसे अरमानों से ब्याह कर घर लाए थे।
उसके ससुर भी उससे बहुत प्यार करते थे वो जिस चीज़ की फरमाईश करती वह पूरी होती थी उसके अपने मायके की हर कमी को पूरा किया। दोनों सास ससुर फूले नहीं समा रहे थे। पति का प्यार तो था ही अलग।
लेकिन कुछ ही समय बाद उसने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिये। शुरू में ही उसने अपने घरवालों को बिना बताए अपने मायके जाना शुरू कर दिया जो कि उसकी सास को नागवार लगा लेकिन बच्ची है करके समझा दिया कि ‘बेटा अब तुम्हारी शादी हो चुकी है जहां भी जाओ पति के अलावा घर वालों को बता कर जाओ।
कुछ ही समय बाद हनीफा माँ बनने वाली थी बहुत ही प्रसन्नता का माहौल था ईश्वर ने यहां भी उसकी झोली भर दी। उसे कए प्यारा सा बेटा बख्शा। सास ससुर ने जी भर के खुशियां मनाईं सास ने शुरू के चालीस दिनों की पूरी तैयारी कर रखी थी। खाने का पीने का मालिश का पूरा इन्तज़ाम करा था, लेकिन हनीफा को अपनी सास का यह प्यार पसंद नहीं आया। वह अपना खाना अपने मायके से मंगाने लगी।Óउसकी मां एक सीधी सादी सी अनपढ़ औरत थी वह भी भेजने लगी जो कि उसकी सास को पसन्द नहीं आया। पर फिर सास ने अनदेखा कर दिया। अब तो वह अपनी मनमानी करने लगी। सास ने उसे रसोई चढ़ाने की रस्म भी पूरी कर दी ताकि उसे अपनी मन पसन्द का खाना बनाने की छूट हो जाए लेकिन जैसे ही उसकी सास ने उसे रसोई में, जाने को बोला तो वह बड़े ही तीखे शब्दों से बोली आपको दिखता नहीं है क्या? मैं बीमार हूँ। सुन कर सास को बहुत अजीब लगा लेकिन परिस्थिति को देखते हुए सास चुप हो गई।
यह उसकी दूसरी गलती थी जिसे सास चुपचाप सह गई। क्योंकि इतना हंसना खेलता माहौल सास बिगाडऩा नहीं चाहती थी। उसके ससुर ने उसे सिर चढ़ा कर रखा था। जिस लड़की ने अपने मायके में कुछ देखा नहीं था उसके ससुराल वाले पूरा कर रहे थे। कार के नीचे पैर नहीं रखती जो चाहे वह पहने, जो चाहे जहां जाए, जो चाहे वह खरीदे बस तो अपनी मन की मालकिन हो गई थी सास, ससुर दोनों चुपचाप देखते और हैरत करते थे।
इसी बीच देवर की शादी पक्की हो गई बहुत बड़े घर की लड़की उसकी देवरानी बन कर आ गई उसके घर के लेने देने को देखकर हनीफा जल गई वह अपनी देवरानी को बिल्कुल पसन्द नहीं करती थी सास ने बहुत समझाया कि बेटा ये कुछ ही दिन यहां रहेगी क्योंकि उसके पति की नौकरी बाहर जाने की है वह उसी के साथ चली जायेगी। आप लोग मिलजुल कर यह समय अच्छे से निकाल तो लेकिन हनीफा तो थी ही नाशुक्री यह नहीं मानी और उससे काम्पीटीशन करने लगी वह तो नई-नई थी वह सब कुछ देखती रही और समझती रही।
इसी बीच उसके सुसर की तबीयत अचानक खराब हो गई और वह हॉस्पिटल में भर्ती हो गये जो कि बहुत ही कष्टकारक था यहां हनीफा ने गृहस्थी का फर्ज निभाया, छोटे से बच्चे के साथ उसने वह सब किया जो कि एक बहू को करना चाहिये। लेकिन उसकी यह सेवा रंग न दिखा सकी और उसके ससुर का देहान्त हो गया। उस समय उसकी सास ने अपनी दोनों बहुओं और उनके घरवालों के सब रंग देख लिये और मन में गठाने बंधती चली गईं।
ससुर के खत्म होते ही सास का जीवन अधूरा हो गया उसे अपनी दोनों बहू से बहुत सारी उम्मीदें थीं लेकिन उसकी दोनों बहुओं का आपसी व्यवहार और अलगाव देख लिया था। उसके दोनों बेटे लाचार थे और हर बात पर माँ को ही दोषी मानते थे। दोनों ही यह साबित करना चाहती थीं कि तुम्हारी माँ ही गलत है हम सही। और उन पर वैसा ही रंग चढ़ता जा रहा था।
एक बार तो अपनी बीबी को लेकर बाहर चला गया। दूसरा अपनी माँ के साथ सांस से सांस लेता था बहुत ही नेक शरीफ और आज्ञाकारी। लेकिन हनीफा ने उसे पूरा बदल दिया वह बेचारा बीच भंवर में फंस गया, एक तरफ माँ और एक तरफ बीबी वह क्या करे वह भी माँ को हनीफा की शह तरह डांटने लगा।
हनीफा का असली रंग अब नज़र आने लगा था वह अपनी सास की ज़रा भी इज़्ज़त नहीं करती थी हर किसी बात पर डांटती थी उसकी हर काम में गलती निकालती थी। शायद उसकी माँ ने उसे यही सब कुछ सिखाया था।
दिन ब दिन उसके पर निकलते जा रहे थे चूंकि सास चुप रहती थी तो वह इस बात का फायदा उठाती थी।
एक दिन सास ने उसे कुछ समझाने की कोशिश की वह एक दम चिल्ला कर बोली मुझे आप कोई लेक्चर मत दिया करो सब कुछ आता है। ऐसे ही एक दिन कुछ पहनने ओढऩे पर सास ने कुछ कहा तो बोली ‘आप मुझ से जलती हो, हम दोनों के बीच लड़ाई करने की कोशिश करती हो और न जाने क्या-क्या? हनीफा की बद्तमीजी देखकर कर उसकी सास हैरान रह गई कि अरे इतनी बद्तमीज लड़की।Ó ऐसे ही घुट-घुट कर उसकी सास का आधा अधूरा जीवन निकल रहा था।
इन्सान क्या सोचता है और क्या हो जाता है क्या सोचा और क्या मिला दोनों बहुओं ने उसे सिखा दिया कि जीवन के सारे अरमान पूरे नहीं होते।
इसी बीच हनीफा की शादी की साल गिरह पड़ी सास ने बहुत प्यार अरमानों से उसे शगुन दिया और साथ ही आर्शीवाद दिया कि भगवान तुम्हें सद्बुद्धी दे जो हनीफा को समझ ही नहीं आया चूंकि उसे अपने मन्दबुद्धी की वजह से ज्ञान की कमी थी व्यवहारिक और शाश्वत् ज्ञान ही नहीं था। उसने अपने पति को न जाने क्या-क्या कान भरे कि उसने अपनी माँ को ही डांटना शुरू कर दिया। और भूखा प्यासा चला गया। हनीफा ने पति के जाने के बाद सास से बहुत-बद्तमीजी की और सास से हाथापाई भी की। बूढ़ी सास कमज़ोर थी उसके दोनों हाथ पकड़ कर मरोड़ डाले जिससे उस विधवा की सोने की चूडिय़ां ही टूट गईं और उसे लगी भी। लेकिन तब भी हनीफा को समझ नहीं आया कि वह क्या कर रही है।
हनीफा की सास ने उसकी माँ को फौन पर सब कुछ बताया लेकिन उसकी माँ ने भी उल्टे सीधे जवाब दिये जिससे उस बूढ़ी माँ की रही सही उम्मीद भी जाती रही कि हनीफा की माँ उसे समझाऐगी।
हनीफा की गल्तियां (पाप) दिन ब दिन बढ़ते जा रहे थे वह अपनी सास के साथ पति बेटा सभी को डांटती डपटती रहती थी घर का माहौल बहुत बिगडऩे लगा था। उसे अपनी और घरवालों की जिन्दगी हराम कर रखी थी। तमीज़ नाम की चीज़ उसके पास नहीं थी। सास चुप रहती थ कि घर की बात घर में ही रहे बाहर न जाए लेकिन कब तक? अब तो आस-पास के लोगों, रिश्तेदारों सभी में सुगबुगाहट होने लगी थी सभी को पता चल गया था कि बहू अपनी सास के साथ क्या क्या करती है। उसकी सास भी कोई कम नहीं थी उसे बिल्कुल पसन्द नहीं था कि उसकी बहू उसके सामने ज़बान चलाए था ऊंचा बोले। यह बात वह कई बार उसे समझा चुकी थी लेकिन उस नाशुक्री हनीफा को समझ ही नहीं आता था।
इस लड़की ने उस बूढ़ी विधवा का घर ही बिगाड़ दिया था। वह यह सोचती कि कब ये बूढ़ी सास मरे और वह घर की मालकिन बन जाए। उसने अपनी सास से कहा भी आपके जाने के बाद तो यह सब कुछ मेरा ही है। जिसे सुनकर सास को बहुत तकलीफ हुई उसने फिर उसकी माँ को बताया तो उसकी माँ ने कहा आप तो उससे बात करना ही छोड़ दो अपने आप समझ जायेगी। विधवा औरत ने यही किया लेकिन अब तो और बढ़ गई वह अपने पति के कान भरने लगी तो वह भी अपनी माँ से बुरी तरह बोलने लगा जिस बेटे ने कभी भी अपनी माँ को साथ नहीं छोड़ा था वह अब माँ की ही गल्तियों निकालने और अपनी पत्नी की बात को ही सही समझने लगा।
जिस दिन से हनीफा ने अपनी सास से हाथापाई की उस दिन से उस बूढ़ी विधवा सास ने उससे बात करना छोड़ दिया। उसके सारे अरमान और खुशियां उसने अपने में समेट लिये और अपनी जि़न्दगी के बचे हुए दिन गुज़ारने लगी।
लेकिन इससे तो हनीफा को और छूट मिल गई वह अपनी मनमानी करने लगी। मर्जी से सोना, मर्जी से उठना, मर्जी का खाना, मर्जी का घूमना बस सब कुछ अपनी मर्जी का करने लगी और छोटी-छोटी बात पर सास की गल्तियां निकालने लगी।
सास घुट-घुट कर रो-रो कर अपना समय काटने लगी अब वह बीमार रहने लगी थी न तो वह बहू को बद्दुआ दे सकती थी और न ही उससे कुछ कह सकती थी, वह नही चाहती थी कि कि इसकी वजह से उसका बेटा दुखी हो क्योंकि वही उसका एकमात्र सहारा था। वह करे तो क्या-क्या करे दिन रात अपने पति को याद कर-कर के रोती रहती थी। नाशुक्री हनीफा ने अपनी सास को इतना दुखी कर रखा था कि वह समय काटने के लिये विधवा आश्रम तक जाने को तैयार हो गई लेकिन उसके बेटे की वजह से वह घर भी नहीं छोड़ सकती थी। बड़ी कशमकश में पड़ी रह कर उस समय का इन्तज़ार कर रही थी कि कब भगवान उसे बुला ले। दिन रात यही दुआ करती थी कि भगवान उसे उसके पति से मिला दे और उस नाशुक्री हनीफा को अक्ल दे कि वह अपनों का कद्र कर सके और उस ईश्वर का शुक्रीया अदा करे जिसने उसे उसके जीवन को खुशियों से भर दिया था और जिसकी वजह से उसे यह सब कुछ मिला उसकी इज्जती और शुक्रिया अदा करें।
समय बड़ा बलवान होता है सबको सब कुछ सिखा देता है शायद हनीफा को भी समय रहते अक्ल आ जाए और वह अपनी गल्तियों का एहसास करे और अपनी सास से अपनी गल्तियों का यूं कहो कि अपने गुनाहों की माफी मांग ले। इन्हीं दुआओं के साथ हनीफा की सास अपनी बची खुची जि़न्दगी गुज़ार रही थी।
– श्रीमती सुनीता तनेजा