संकोच की मारी नारी

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नारी ने कितनी ऊँचाइयाँ हासिल कर ली हैंï, किसी से भी छिपा नहींï है। तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि आज भी उसमेï नारी सुलभ गुणोïं की मौजूदगी ही कभी-कभी उसके प्रगति-पथ मेंï आड़े आती है। मुंबई मेïं चलती ट्रेन मेंï अबोध बच्ची से बलात्कार तो मेक्सिको मेंï दिनदहाड़े महिला के अपहरण व हत्या से सभ्य समाज को हैरत होती है। कदाचित् हमारी सोच को झिंझोडऩे तथा सोये हुए जमीर को जगाने के इरादे से ही किसी कल्पनाशील कलाकार ने इन घटनाओंï को म्यूरल के रूप मेï उकेरा है।
भारत-पाक के हुक्मरानोंï ने जबसे आपसी कटुता भुलाकर दोनोंï देशोïं के बीच संबंध सामान्य बनाने की पहल को मुहिम का रूप दिया है, पड़ोसी देशोंï मेंï अवाम के हौसले भी बुलंद हुए हैïं। खेल, संस्कृति व व्यापार के क्षेत्रोï से जुड़े लोगोïं ने इन कदमोंï का दिल खोलकर स्वागत किया है। पुरुष तो एक तरफ, औरतें भी किसी तरह पीछे नहींï रहना चाहतीï और पहली फुर्सत मिलते ही वे गलबहियाँ डाले निकल पड़ती हैंï सरहद पार के हालचाल जानने और अपना हाल-ए-दिल सुनाने। पिछले कटु अनुभवोंï को भूलकर वे दोस्ती के नये सोपान रचने को तैयार हैïं। इसे कहते हैï-न..न.. करते प्यार तुम ही से कर बैठे।
तरुणाई के आलम मेंï डूबी हर नारी भावी यौवन के सुनहरे ख्वाबोïं को बुनती रहती है। घर-गृहस्थी के हर काम को करने का सलीका सीख रही किशोरी को कैसे-कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैïं, वहीं जानती हैं। माखनभरी मटकी सिर पर उठाकर चलना कोई आसान नहींï है, कदम जरा भी डगमगाये और सब कुछ तितर-बितर। युवावास्था मेïं यूँ भी हर किसी को बहुत सम्हल कर चलना होता है। डगमगाते कदमोï से फिसलने मेंï जरा भी देर नहींï लगती। फिर मटकी मेïं चाहे माखन हो या पानी। इसीलिए कहा भी गया है- बहुत कठिन है डगर पनघट की।  – रईसा मलिक