बहुमुखी प्रतिभा के धनी कमल शुक्ल

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कमल शुक्ल का जन्म 15 जुलाई 1945 को भोपाल के निकट स्थित बाड़ी-बरेली में हुआ था। उन्होंने सैफिया कॉलेज भोपाल से बी.ए की उपाधि प्राप्त की। कमल शुक्ल एक लेखक, कवि, चित्रकार और पेशे से इंटीरियर डिजाइनर थे। इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि वह एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे।
कमल शुक्ल अपने माता-पिता के देहांत के बाद दोस्तों के साथ मुम्बई चले गये और वहां उनके संघर्ष की यात्रा प्रारंभ हुई। लेकिन अपनी संघर्ष क्षमता के बल पर उन्होंने बहुत जल्द ही अपना एक अलग स्थान मुम्बई के बुद्घिजीवी वर्ग में बना लिया। कमल शुक्ल हिन्दी-उर्दू साहित्य की दुनिया में मुम्बई में एक बहुत $िजन्दादिल किरदार थे। वे पेशे से घरों की सजावट करते थे, लेकिन फुरसत के पलों में शब्दों में अपनी सोच का रंग भरा करते थे। कमल शुक्ल पैदा भोपाल में हुए और कार्यक्षेत्र उनका मुम्बई रहा। इस प्रकार से दो शहरों की जिन्दगियों का विरोधाभास उनके जीवन में रहा। दूरी में नजदीकी और नजदीकी में दूरी को उनकी कविताओं में बखूबी देखा जा सकता है। उनकी काव्य प्रतिभा में काफी संभावनाएं थीं। किसी हद तक उन्होंने इन संभावनाओं को अपने पाठकों के हवाले भी किया है। इन कविताओं में वह एक ऐसे आदमी के रूप में नजर आते हैं जो जि़न्दगी से शिकायत भी करता है और मोहब्बत भी। यही उनकी शायरी का हसीन पहलू है कि वह मुम्बई आकर मशीन नहीं बने और भोपाल से दूर रह कर भी भोपाल की तह$जीब में सांस लेते रहे।
कमल शुक्ल भोपाल की गलियों के अहसास को लिये महानगर मुम्बई गये थे। मुम्बई में उन्होंने निदा फा$जली, जावेद अख़्तर, डॉ. धर्मवीर भारती और कमलेश्वर जैसी बड़ी शख्सियतों से अपना निजी रिश्ता बनाया, यह उनकी प्रतिभा के चलते ही संभव हो पाया। उनकी रचनाओं में हम उन्हें आज भी पा सकते हैं।
बांद्रा टाकीज से लगा हुआ उनका कार्यालय था जहां उनके व्यवसाय से जुड़े लोग कम आते थे। लेकिन ज्यादातर वहां लेखक, कवि, शायर और पत्रकारिता से जुड़े लोगों का जमावड़ा रहता था। फिल्म लाईन से जुड़े लोग भी मौजूद रहा करते थे। उनका कार्यालय साहित्य, कला तथा पत्रकारिता से जुड़े लोगों का संगम बन गया था। कमल शुक्ल ने 26 नवम्बर 1996 को इस दुनिया को अलविदा कहा। उनके द्वारा रचित रचनाओं का एक संग्रह व्यर्थ अमृत के नाम से प्रकाशित हुआ है जो उनकी मृत्यु उपरांत उनके मित्र आरिफ महमूद ने प्रकाशित करवाया है। इसके प्रकाशन में रईस हसन व महेन्द्र गगन ने बहुत सहयोग किया। इस काव्य संग्रह की विशेषता इसमें कविताओं के साथ दिए गए चित्र हैं, जिनको स्वयं कमल शुक्ल ने बनाया था। – रईसा मलिक
कमल शुक्ल की रचनाएं
बर्बरिक
तुमने मेरा सिर काट कर
इसलिए इस ऊंची पहाड़ी पर
स्थापित कर दिया है
ताकि मैं –
तुममें तुम्हारे द्वारा लड़े जा रहे
महाभारत का साक्षी बन सकूं
और तुम निश्चिंत
स्वर्ग के मोह में
अपनी तमाम बेईमानियों और ईमानदारियों
के साथ
काल की इस भट्ïटी में –
जलते रहो।
फिर जब कभी तुम्हारी नस्लें
मेरा सिर इस पहाड़ी से उतार कर
मुझसे तुम्हारा इतिहास पूछें
तो मैं उन्हें
तुम्हारी बेईमानियों ओर ईमानदारियों का
ब्यौरा दे सकूं।
लेकिन सुनो तुम
यह गलतफहमी है तुम्हारी
कटा सिर कभी गवाही नहीं देता
मैं उन्हें कुछ नहीं बताऊंगा
तुम अपनी मौत मरे हो
मैं अपनी मौत मर जाऊंगा।
व्यर्थ अमृत
मेरे सपनों वाला चांद
अन्तरिक्ष में
$जमीन के ठीक बीचों-बीच स्थापित है
मैं . . .. धरती के आखिरी छोर पर
चांद के ठीक बायीं ओर
धनुष की खिंची कमान सा-
थर-थरा रहा हूं
मेरी बंद आंखों में
चांद से अमृत टपकने का दृश्य
विद्यमान है।
लेकिन मेरी खुली आंखें
चांद से टपकते हुए अमृत को
विपरीत शून्य में
बहते हुए देखती है
व्यर्थ . . . . ..
बे मतलब . . . . .
बे वजह . . . . .।