हज़रत ख्वाजा जुन्नून मिस्री रह.

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आपने बडी-बडी रियाजतें की थीं। करामत भी आप से जाहिर होती थीं मगर लोग आपको जिन्दीग (बेदीन) समझते हैं। आपकी वफात तक आपको मखलूक ने नहीं माना। आप फरमाते हैं एक पहाड पर गया और ज्युमिआ के दरवाजे पर एक शख्स नजर आया जिसका एक पांव अन्दर था और एक बाहर और कपडे लपेट रहे, मालूम हुआ कि किसी औरत को देख कर एक कदम बाहर आबिद साहब ने किया था कि तौफीके हक ने दस्तगीरी की। फौरन जो पांव बाहर था उसे काट डाला और शर्म के मारे बाहर नहीं निकला। मुझ से पूछा कि क्यों आए हो, हजरत जुन्नून रहमतुल्लाह ने कहा कि मुझे मर्दाने खुदा से मिलने का शौक है। फरमाया ऊपर जाओ। मैं पहाड पर न चढ सका।
उन्हीं बुजुर्ग से मालूम हुआ कि वह कोई ऐसी चीज नहीं खाते। जिसमें इन्सानी कस्ब व तहसील को दखल हो। बिलआखिरी शहद की मक्खियां उन्हें शहद देती हैं। मुझे उनसे मिलने का शौक हुआ तो मैं ने एक अंधे परिन्दे को देखा जो दरख्त पर बैठा था। नीचे उतरा चांेच से जमीन खोदी एक प्याली में दाना पानी निकला, वह उसने खाया और फिर दरख्त पर जा बैठा। प्यालियां गायब हो गईं। आप का तवक्कुल और पुख्ता हो गया और आप पर हिकमत के दरवाजे भी खुल गये।
आप एक बार नहर पर गये। किनारे महल था। एक कनीज वहां खडी थी। फरमाते हैं मैंन वुजू किया और उससे पूछा कि तू कौन है। उसने कहा जब आप मुझे नजर आए तो मैं समझी की कोई दीवाना है जब पास आए तो मैं समझी कोई आलिम हैं। जब बिल्कुल करीब आ गये तो मैं समझी की आरिफ है। अब किया गौर तो न दीवाना, न आलिम, न आरिफ क्योंकि दीवाने होते तो तहारत न करते। आलिम होते तो नामहरम पर नजर न करते। आरिफ होते मा सिवा को न देखते। यह कहकर वह गायब हो गई।
आपकी बहन के लिए मन्न व सलवा आसमान से आता था। एक रोज लोगों ने आप को रोते देख कर रोने का सबब पूछा।
फरमाया! खुदा की हैबत और गुनाहों की कसरत के सबब रोता हूं। आपने फरमाया तीस साल में एक ऐसा शख्स मिला जैसा चाहिए था और वह एक शाहजादा था। उसने पूछा कि खुदा का रास्ता कौन सा है? आपने फरमाया कि एक छोटा है एक बडा चाहता है तू गुनाह तर्क कर दें। नफ्फासी ख्वाहिशात तर्क कर दं। बडा चाहता है तु मा सिवा अल्लाह को तर्क कर दे। उसने बडा रास्ता इख्तियार किया और अब्दाली का दर्जा पाया। खलीफए मुतवक्किल को आप की जिन्दादिली की इत्तिला दी गई।
आप गिरफ्तार किए गये, इतनें में एक औरत ने आप से कहां खबरदार उस मुरीद से न डरना, जो तुम्हारी तरह हो। चालीस दिन आप कैद रहे। हजरत बशर हाफी की बहन आपको एक टिकिया पका कर जेल में दे जाती थी। चालीस दिन के बाद देखा गया तो चालीस टिकियां मिलीं। बशर हाफी की बहन ने कहा यह तो हलाल की थीं। फरमाया दारेगा जेल की मारिफत आई थीं। वह पाक न था।
आखिर खलीफा ने कायल होकर आप से बैअत की ओर बडा ऐजात किया। आपका एक मुरीद था जिसने चालीस साल बाद शिकायत की। कई हज भी किए। रोजे भी रखे मुजाहदे भी किए मगर दिल की कली न खिली। फरमाया खूब खा, नमाज न पढ। आराम से सो। दोस्त लुत्फ से नहीं तो इताब से मिलेगा।
उसने आपकी हिदायत पर अमल किया। मगर नमाज पढ लीं निदा आई कि तेरी सब मुरादें बर आएंगी। मगर उस रहजन जुन्नुन (रहमतुल्लाह अलैह) से कह देगा कि हम उसे खूब रूस्वा करेंगे।
आप के मुरीद ने परेशान होकर आप को इत्तिला दी और ख्वाब सुनाया। आप को वज्द आ गया। तरीकत में बहुत सी ऐसी बातें होती हैं जो आम तौर पर समझ में नहीआती जेसे हजरत खिजर व हजरत मूसा का वाकेआ कुरआन पाक में दर्ज है।