देश की मुस्लिम राजनीति में बदलाव : सामाजिक चेतना बढ़ी

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इस्लाम धर्म के अनुयायी मुस्लिम समुदाय में धार्मिक आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। पूरे विश्व में मुस्लिम समुदाय कुरआन पाक और अपने पैग़म्बर ह$जरत मोहम्मद साहब को आखरी नबी मानते हुए उनके बताए हुए रास्तों पर चलना अपना फर्ज समझता है। इस्लाम धर्म के मानने वाले सभी लोगों को किसी भी मस्जिद में प्रवेश करने, इबादत करने, दरगाह में जियारत करने का अधिकार है। इस्लाम धर्म को अच्छी तरह समझने वाला पढ़ा लिखा हाफिज कुरआन चाहे वह किसी भी बिरादर से ताल्लुक रखता हो नमाज पढ़ाने के लिये पेश इमाम बनने और अजान देने के लिये मुअज्जिन की काबलियत रखता है नियुक्त किया जा सकता है। जो कोई भी कुरआन और हदीस की अवज्ञा करता है वह इस्लाम से खारिज हो सकता है। इस्लाम धर्म के अनुयायियों में प्रारंभ से ही कबीलाई व्यवस्था का अस्तित्व माना गया है लेकिन किसी भी कबीले को दूसरे कबीले से श्रेष्ठï होने का अधिकार नहीं है। हजरत मोहम्मद साहब ने सबसे पिछड़े कबीलाए हब्श से ताल्लुक रखने वाले हजरत बिलाल (रह.) से अजान दिलाकर धार्मिक क्षेत्र में इन दबे कुचले समुदाय को समानता का अधिकार स्थापित किया। एक मोमिन अंसारी खानदान से ताल्लुक रखने वाले व्यक्ति की दावत कुबूल कर उन्हें भी महत्व दिया। अरब का एक और आला खानदान से ताल्लुक रखने वाले लोगों ने इस्लाम धर्म कुबूल करने के लिये शर्त रखी कि उनके बराबर में उनसे आर्थिक, सामाजिक दृष्टिï से कमजोर स्थिति रखने वालों को नहीं बैठाया जाये तब वह इस्लाम धर्म कुबूल करने के लिये तैयार हैं। पै$गम्बर ह$जरत मोहम्मद साहब ने उनकी यह शर्त ठुकरा दी उसूलों के प्रति प्रतिबद्घता इस्लाम की बुनियाद रही है। पै$गम्बर ह$जरत मोहम्मद साहब ने अपने व्यवहारिक जीवन में इस बुनियाद रही है। पै$गम्बर हजरत मोहम्मद साहब ने अपने व्यवहारिक जीवन में इस बुनियाद को मजबूती प्रदान करने के लिये उन पर चल कर दिखाया उस दौर के सहाबियों और इमामों ने भी उसका पालन किया। इसी लिये दुनिया में इस्लाम धर्म को सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। इस्लाम धर्म के अनुयायी मुस्लिम समुदाय में आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टिï से पिछड़े हुए कई कबीले हैं जिनमें कुछ कबीले तो जन जातियों की भांति खानाबदोश की शक्ल में अपना जीवन यापन करते हैं तथा जिन्हें दुनिया के विभिन्न देशों में जन जाति की मान्यता प्राप्त है। विभिन्न देशों के संविधानों में उन्हें अधिकार दिये गये हैं तथा संरक्षण प्राप्त हैं।
देश में एक अच्छी खासी तादाद मुस्लिम समुदाय की इन पिछड़े कबीलों/ब्रादरों की है जिनका देश की आजादी के आंदोलन से लेकर उसके नव निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। मुस्लिम समुदाय के प्रबुद्घ लोगों ने इनके आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टिï से पिछड़े लोगों की पहचान के लिये मण्डल कमीशन बनाया तब उसके समक्ष अपना अभ्यावेदन प्रस्तुत कर घोषित पिछड़े वर्गों में अपना स्थान सुरक्षित कराया इसके बाद विभिन्न प्रदेशों की सरकारों ने माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर जब पिछड़ा वर्ग आयोगों का गठन किया तो उन आयोगों के समक्ष भी मुस्लिम समुदाय में पिछड़े वर्गों ने अपना पक्ष रखा तथा विभिन्न प्रदेशों में घोषित पिछड़े वर्गों में अपना नाम जुड़वाया।
विशेष उल्लेखनीय यह है कि मुस्लिम समुदाय के किसी भी नेता/धार्मिक संगठन ने मुस्लिम समुदाय के इन पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने अथवा पिछड़े वर्गों में शामिल करने का कोई विरोध नहीं किया और न ही किसी भी आयोग के समक्ष ऐसी कोई आपत्ति प्रस्तुत हुई है। तथा केंद्र अथवा राज्यों में स्थापित किसी भी दल की सरकारों ने इन मुस्लिम पिछड़े वर्गों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया है कुछ अराजनैतिक संगठन हो सकते हैं जो हिन्दु और मुसलमानों दोनों समुदाय के बीच हैं जो कभी-कभी समाचार पत्रों में अपना विरोध दर्ज कराते रहते हैं। जिसका कोई अर्थ नहीं है क्योंकि हमारे देश में संविधान और न्यायालय सर्वोपरि हैं। जिन अधिकारों को भारत के संविधान में दिया है और माननीय उच्चतम न्यायालय ने जिस पर अपनी मोहर लगाई हो उसे कोई नहीं छीन सकता। चाहे किसी भी विचारधारा की सरकारें केंद्र अथवा राज्यों में स्थापित हो जायें। हां संविधान में प्रदत्त अधिकारों की अनदेखी होती है। उसके लिये हमें जागरूक रहने की आवश्यकता है।
देश के विभिन्न राज्यों में कुल 55 से लेकर 60 मुस्लिम ब्रादर पिछड़े वर्गों में शामिल हैं तथा 8-10 ब्रादरों को जनजाति की सुविधाएं प्राप्त हैं जैसे मछुआरा, मुण्डा, तड़वी, कांकर, गद्दी, मुस्लिम गुर्जर, नट, माहीगीर आदि हैं तथा उस का लाभ भी इन वर्गों को मिल रहा है। मुस्लिम पिछड़े वर्गों को हक दिलाने की लड़ाई का इतिहास आजादी के पूर्व का है। तत्समय अंग्रेजों की सरकारों के समक्ष मुस्लिम पिछड़े/दलित वर्गों के नेतृत्व/समझदार मुस्लिम नेताओं ने उनका पक्ष रखा और यही स्थिति आजादी के बाद बने आयोगों के समक्ष इनके अधिकार प्राप्त करने की मांग प्रस्तुत की। पूरे देश में इन घोषित मुस्लिम पिछड़े वर्गों के तीन प्रमुख संगठन इनके हक की लड़ाई लड़ रहे हैं जिनमें मुख्य हैं। 1 ऑल इण्डिया मुस्लिम बेकवर्ड क्लासेज फेडरेशन दिल्ली 2. ऑल इण्डिया मुस्लिम ओ.बी.सी. संगठन महाराष्टï्र, ऑल इण्डिया मुस्लिम पसमान्दा महाज पटना बिहार। इनमें ऑल इण्डिया मुस्लिम बेकवर्ड कलासेस फेडरेशन का इतिहासकाफी पुराना है। वर्तमान में फेडरेशन के राष्टï्रीय अध्यक्ष श्री मो. इब्राहीम कुरैशी पूर्व मंत्री मध्यप्रदेश शासन एवं चेयरमैन मध्यप्रदेश राज्य अल्पसंख्यक आयेग हैं। ऑल इण्डिया मुस्लिम ओ.बी.सी. के राष्टï्रीय अध्यक्ष महाराष्टï्र के श्री शब्बीर अंसारी साहब और महाज के राष्टï्रीय अध्यक्ष अनवर अली पटना हैं। फेडरेशन की देश के आधे राज्यों में प्रदेश शाखाएं सक्रिय हैं, वहीं महाज का मुस्लिम पिछड़े वर्गों के हुकूक की लड़ाईयों के लिए तीनों ही संगठन एकजुट हैं। इस मामले में उनके बीच मतभेद नहीं हैं। देश के इन घोषित मुस्लिम पिछड़े वर्गों में आई राजनैतिक चेतना का परिणाम है कि पहली बार संसद के लिए 37 लोकसभा सांसदों में आधे सांसद मुस्लिम पिछड़े वर्गों से संबंधित हैं। वहीं अनुसूचित जनजाति को मान्यता रखने वाले एक मात्र सांसद डॉ. पी. उखूनी कोया लक्ष्यद्वीप (जनता दल यूनाईटेड) से निर्वाचित होकर आए हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, बंगाल, दिल्ली जैसे पर्याप्त मुस्लिम पिछड़े वर्गों की आबादी वाले राज्यों में इन वर्गों के प्रतिनिधियों को राज्य मंत्रिमंडल में शरीक किया जाना इन वर्गों की राजनीतिक आवश्यकता को स्वीकारोक्ति है इस स्थिति को नकारा नहीं जा सकता। देश की ख्यातिप्राप्त संस्था इण्डिया इस्लामिक कल्चर सेन्टर दिल्ली के प्रतिष्ठïा पूर्ण चुनाव में देश के ख्याति प्राप्त उद्योगपति, हाजी सिराज कुरैशी का चुना जाना इस पृष्ठï भूमि में महत्वपूर्ण है कि समाज के तथा कथित ठेकेदारों ने उनका विरोध जिन कारणों से किया उनमें राजनैतिक कारणों के साथ सामाजिक कारण भी रहा। सेंट्रल के प्रतिष्ठïापूर्ण चुनाव में भी श्री सिराज कुरैशी की शानदार जीत ने सभी को चौंकाया।
राजनैतिक आवश्यकता के तहत अब तो कई छिपे हुए मुस्लिम पिछड़ा वर्ग से संबंध रखने वाले नेता खुलकर सामने आने लगे हैं और मुस्लिम समुदाय के बीच पिछड़े वर्ग के आंदोलन के प्रबल समर्थक बन गए हैं। हमें इस आंदोलन को राजनीति की कुदृष्टिï से बचाना होगा। इसे विशुद्घ सामाजिक आंदोलन बनाए रखने की आवश्यकता है। सभी मुस्लिम पिछड़े वर्गों को प्राप्त आरक्षण का लाभ प्राप्त हो रहा है। यह घोषित मुस्लिम, पिछड़े वर्ग केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित 27 प्रतिशत आरक्षण तथा राज्यों में पिछड़े वर्गों के लिए निर्धारित आरक्षण की सीमा में आते हैं। इस मांग को लेकर मुस्लिम पिछड़े वर्गों और अन्य सामान्य मुस्लिम समुदाय के बीच कभी कोई मतभेद सुनने को नहीं मिला। इस संबंध में मुस्लिम समुदाय का धार्मिक एवं राजनैतिक, सामाजिक नेतृत्व एकजुट है। आम मुस्लिम समुदाय को भी आरक्षण दिया जाए इस मांग का विरोध भी घोषित मुस्लिम पिछड़ा वर्ग 55-60 बिरादरों में से करीब 40 ब्रादरों के राष्टï्रीय स्तर के संगठन हैं जो इन वर्गों के बीच सामाजिक चेतना का कार्य कर रहे हैं। जो सामाजिक कुरीतियां मुस्लिम पिछड़े वर्गों में घर कर गई हैं उन्हें भी दूर करने का प्रयास जारी है। आरक्षण का लाभ प्राप्त कर व्यवसायिक शैक्षणिक संस्थाओं एवं शासकीय सेवाओं में भी इन वर्गों का प्रतिशत बढ़ा है। दहेज जैसी बुराई को रोकने इन पसमान्दा बिरादरों में बड़े पैमाने पर सामूहिक विवाहों का आयोजन, प्रतिभावान छात्र-छात्राओं को अपने स्तर पर स्कालरशिप दियाजाना व्यवसायिक पाठ्ïयक्रमों तथा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए नि:शुल्क कोचिंग की व्यवस्था प्रमुख हैं।
भारत के संविधान में धार्मिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं है तथा मंडल कमीशन ने भी धार्मिक आधार पर आरक्षण का सर्मथन नहीं किया है। इसलिए इस्लाम धर्म से संबद्घ पूरे मुस्लिम समुदाय को आरक्षण की श्रेणी में नहीं लाया जा सकता। कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश जिन राज्यों ने मुस्लिम समुदाय को थोड़ा बहुत आरक्षण दिया है उसका आधार भी धार्मिक न होकर उन राज्यों में उनके सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक पिछड़ापन हैं। मुस्लिम कोई धर्म नहीं है वह एक जाति है। जिसके मानने वालों का धर्म इस्लाम है। फिर मुस्लिम समुदाय को आरक्षण का तात्पर्य धार्मिक कैसे हुआ।
यह हकीकत है कि देश के मुस्लिम पिछड़ा एवं दलित वर्ग में जो राजनैतिक चेतना आई है उससे मुस्लिम समुदाय का वह मलाईदार तबका, नेतृत्व जो पूरे मुस्लिम समुदाय के नाम पर राजनैतिक लाभ प्राप्त कर रहा था उसका चिंतित होना स्वभाविक है। जिन राजनैतिक दलों ने मुस्लिम समुदायों के बीच सामाजिक, राजनैतिक चेतना को मेहसूस किया वह सत्ता में काबिज होने में कामयाब हुए। उदाहरण उत्तरप्रदेश और बिहार राज्य हैं। जहां संपूर्ण मुस्लिम समुदाय के नाम पर केवल राजनीति करने वाले मुस्लिम नेतृत्व के समक्ष अस्तित्व का प्रश्र पैदा हो गया है। इस स्थिति को तथा सामाजिक, राजनैतिक परिवर्तन को अगर मेहसूस नहीं किया तब उसे इन दबे कुचले मुस्लिम समुदाय का विश्वास प्राप्त नहीं हो सकेगा।
यह तर्क बिल्कुल गलत है कि दबे कुचले इस समुदाय में क्षमता या नेतृत्व का अभाव है तथा मुसलमानों में सभी सम्पन्न हैं। पिछड़े/दलित वर्ग के नाते उन्हें सरकार से सुविधाओं की मांग नहीं करना चाहिए बल्कि यह उनका संवैधानिक अधिकार है। सिर्फ उन्हें अवसर देने की आवश्यकता है, उनमें पर्याप्त नेतृत्व क्षमता एवं आत्मविश्वास है। खुशी की बात है कि इस परिवर्तन को देश के सभी राजनैतिक दल मेहसूस कर रहे हैं। और इन मुस्लिम पिछड़े/दलित समुदाय को गले लगाने की उन्हें अधिकार दिलाने की होड़ लगी हुई है। मुस्लिम समुदाय को चाहिये कि वह इन हालात में अपनी तरक्की का रास्ता खुद चुनें और इस आन्दोलन को विशुद्घ रूप से सामाजिक परिवर्तन के आन्दोलन के रूप में स्वीकार करें। – इब्राहिम कुरैशी
नोट:- यह आलेख मरहूम इब्राहिम कुरैशी जी ने वर्ष 2004 में लिखा था, जो आज भी प्रासंगिक है।