बाबा शेख फरीद अद्वितीय साधना करने वाले सच्चे सूफी दरवेश व मानव एकता, सद्भावना व भाईचारे के पूर्ण समर्थक थे। बाबा फरीद विश्व को आपस में जोड़ने आए थे। मोहब्बत उनका शक्तिशाली माध्यम था। एक सच्चे महापुरूष की यही पहचान होती है कि वह प्रेम से सब को इकट्ठा कर लेता है। सन् 1173 में जिला मुलतान के एक गांव मैं पैदा हुए बाबा के बारे में कहा जाता है कि उनके व्यक्तित्व पर उनकी मां का अधिक प्रभाव पड़ा जो नेक और धार्मिक स्त्री थीं। मां के प्रभाव में उनमें त्याग और बंदगी की भावनाएं बलवती हो उठी थीं।
12 वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के मध्य तक फरीद मनुष्य को प्रभु प्रेम के कठिन रास्ते पर चलाते रहे। उन्होंने मनुष्य को जीवन का वास्तविक रहस्य समझाया और दृश्यमान जगत के मायावी आकर्षण से बचाकर अदृश्यमान जगत की अविनाशी हकीकत से जोड़ा। अहिंसावादी दृष्टिकोण वाले बाबा फरीद सबकी खेर मांगते थे। बुरा मत कहो, बुरा न करो और जीवन में बुराई को स्थान न दो। तभी तो उन्होंने कहा है-
फरीदा जे तैं मारन मुक्किआं तिना न मारे घुंमि।।
आपनड़े घरि जाइअै पैर तिनां चुंमि।।
भाव- यदि कोई तुम्हें मुक्का मारता हे तो इसका बदला मत लेना, बल्कि सम्मानपूर्वक उनके पांव चूमकर अपने घर चले जाना। उन्होंने समाज से भागकर जंगलों में नहीं बल्कि समाज में विचरते हुए प्रभु भक्ति का मार्ग खोजा। वे चाहते थे कि मनुष्य अपना जीवन सफल और सार्थक बनाए। उनकी वाणी यही संदेश देती है कि प्रभु मिलन जीते जी ही संभव है। मनुष्य का शरीर वरदान है, इसलिये उसे मन को भटकाने वाली कामनाएं, तृष्णा, काम, क्रोध, लोभ, माया-मोह को त्यागकर सच्चे प्रभु से प्रीत करना चाहिये-
आप सवारहिं मैं मिलहिं में मिलिआ सुख होई।
फरीदा जे तू मेरा होड़ रहि तां सभी जग तेरा होई।।
भाव- जो विकारों पर काबू पाकर अपने आप को संवार लेता है, वह सुखी हो जाता है, अगर इस तरह प्रभु मिल जाए तो सारा संसार भी अपना हो जाता है। बाबा फरीद का जीवन दर्शन उनके अल्लाह के संकल्प से पैदा होता है। वे कहते हैं अल्लाह कोई आध्यात्मिक दंतकथा नहीं है बल्कि मनुष्य के संपूर्ण जीवन और अनुभव में व्याप्त परमसता है। इसलिए उन्हांेने कहा है-
फरीदा खालक खलक महि खलक बसहिं रब माहि।।
मंदा किसनो आखिअै जा तिसु बिनु कोई नाहिं।।
भारतीय समाज और संस्कृति में बाबा फरीद की वाणी का महत्वपूर्ण स्थान है। गुरूग्रंथ साहिब में उनके चार शब्द और 112 श्लोक दर्ज है। बाबा फरीद बचपन से ही बुद्धिमान थे और उन्होंने बहुत छोटी उम्र में ही कुरान याद कर लिया था। उनके आध्यात्मिक ज्ञान, मिठास और सादी जिंदगी के आगे कोई भी नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सका। सब्र-संतोष उनके व्यक्तित्व की खास विशेषता थी। उन्होंने अपनी वाणी में नैतिक गुणों का बहुत प्रयोग किया है। उनका कहना था कि मनुष्य नैतिकता के सुदृढ़ धरातल पर चलकर ही अपने लक्ष्य तक पहुंच सकता है। उनके कुछ सिद्धांत थे, जैसे बुरे काम न करो ताकि बाद में पछताना न पड़े। उन्होंने तो यहां तक कहा है-
फरीदा बुरे दा भला करि गुस्सा मनि न हंडाए।।
देही रोगु न लगइ पलै सब किछु पाई।।
अहंकार से बचकर अपने अवगुण देखो। जो कुछ परमात्मा ने दिया है, उसी में संतोष करना सीखो। किसी की ओर देखकर लालच मत करो। गुलामी के जीवन से मौत अच्छी है। परमात्मा प्रत्येक मनुष्य के हृदय में बसता है, प्रत्येक का आदर करो। तुच्छ की भी न निंदा करो। जैसा बीजोगे वैसा ही फल मिलेगा। इसलिए सबसे प्रेम करो और अच्छे कर्म करो। (साभार)