एक शहंशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल

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ताजमहल मेरे परिवार का ऐसा ही सदस्य रहा है। मैंने उसे दूसरों की ही निगाहों से देखा है। उन्होंने ही उसके सौंदर्य, इतिहास और महानता को कभी लिखकर, कभी गाकर, कभी लिखकर, कभी गाकर, कभी गद्ïगद्ï-उच्छ्ï-वसित होकर तो कभी चकित-विस्मित होकर बताया कि ताजमहल क्या है। कि वह संगमरमर के अक्षरों में लिखा गया प्यार का गीत है, काल के कपोल पर ठहरा हुआ आंसू है, मृत्यु-पूजन की विकृत मानसिकता है। वह प्यार की नहीं, प्यार की लाश के लिए श्रद्घांजलि है……एक ऐसा मर्सिया जो उल्लास और उत्सव की फुलझड़ी है, यमुना की जली और काली लकड़ी पर उगा हुआ कुकरमुत्ता……..सब मिलाकर एक भव्य प्रायश्चित का नाम ताजमहल है। दिनकर के शब्दों में, मानव शोषण के प्रतीक ये राजमहल, ये ताजमहल।
ताजमहल इतिहास और संस्कृति की सबसे महान कमाई भी है और कमाई का स्त्रोत भी। उसने लाखों को विद्वान, चित्रकार, शिल्पी, वास्तुकर, कवि और करोड़पति बना दिया है। वह संसार के सात आश्चर्यों में से एक हैं। बिना कुछ किये मैं ताजमहल की इस विश्वव्यापी महानता का एक हिस्सा होने के गर्व से गद्ïगद्ï हूं। हां, मैं भी वहीं का हूं जहां वह है- वह मेरा स्थायी पता है, पहचान और अस्मिता है……उसके साथ जुड़ते ही मैं दुनिया के इतिहास की सारी महानताओं से जुड़ जाता हूं…..।
यहीं ताजमहल मेरे लिए मुसीबत है……महान और भव्य के विराट आतंक में मैं कुछ भी नहीं हूं। मेरा शहर सिर्फ ताज-नगर के नाम से जाना जाता है, हालांकि वहीं लाल किला भी है, एत्मादुद्दौला और सिकंदरा यानी अकबर का मकबरा भी है। मगर नहीं, दुनिया की निगाह में वहां सिर्फ वाह ताज और अकेला ताज है…..वहां न कोई दूसरा उद्योग है, न साहित्य और संस्कृति….हजारों लोग वहां इटैलियन मार्बल या मकराना के पत्थरों को तराशकर छोटे-छोटे ताजमहल बनाते और बेचते हैं…..लाखों लोग प्यार की इस छवि को साथ ले जाते हैं और इसकी पृष्ठïभूमि में प्रेमी युगल उच्छवसित होकर चित्र-विचित्र तस्वीरें खिंचवाते हैं। दुनियसा की कौन सी हस्ती है जो इसके सामने पोज देकर कृतार्थ न हुई हो…इसी के कारण आगरा आज आधुनिक तीर्थ है और इसी ने आगरा-वासियों को पंडों-पुजारियों में बदल डाला है- उन्हें झूठा, गप्पी, धोखेबाज और लुटेरों की मानसिकता दे दी है।
ताज न किसी पीर का मजार है, न भगवान की मूर्ति, इसलिए वह भारत का सबसे सेकुलर तीर्थ है। सच्चे अर्थों में गंगा-जमुनी संस्कृति का उन्मुक्त एहसास…गालिब जैसा नास्तिक और नजीर जैसा फकीर वहीं हो सकता था जो कभी कृष्ण-कन्हैया का बालपन गाता है तो कभी होली और सावन की मस्तियों में झूमता है। वहां श्रृंगार और भक्ति ऐसे गूंथे हैं कि सब कुछ इबादत बन जाता है। मुझे तो सूरदास भी तुलसी जैसे भक्त नहीं, शूद्र मानवीय संवेदना के वैसे ही कवि लगते हैं जैसे रसखान और नजीर…..कभी-कभी मैं सोचता हूं कि ब्रजभाषा और उर्दू में जो बारीक पच्चीकारी है, वहां कहीं अवचेतन में ताजमहल ही तो नहीं है?
ताजमहल एक अर्थ में गरीबनवाज भी है। ताज और गालिब का जन्म भले ही आगरा में हुआ हो, वे खुद आगरा के नहीं हैं- वे इतिहास और संस्कृति के हैं, ऊंची दुनिया के हैैं। पास की बस्ती ताजगंज की पीढिय़ां छोटे-छोटे ताजमहल बनाने वाले कलाकारों की हैं। उनके पुरखों ने ही कभी ताज की एक-एक ईंट रखी थी। वहां का अपना जनकवि नजीर अकराबादी है जिसके मेले लगते हैं और हबीब तनवीर आगरा बाजार रचते हैं।