सरफरोशाने जन्गे आज़ादी के अजीम जनरल -नवाब अली बहादुर सानी ‘नवाब बांदा

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तीसरी किश्त:-
चुनांचे इन हालात के पेश आने पर मेरठ से इन्कलाब के इक्तेदा हुई और बंगाल रेजीमेंट सगाल ने टिब आर्मी ने आजादी का नारा बुलंद किया, जिसमें वहां के हिन्दोस्तानी फौज ने हिन्दु, मुसलमान फौजी सब शरीक हुए। यह इन्केलाबी मऊरका सिफ्र शुमाल हिन्दोस्तान और बिलखुसूस नवाब देहली व सूबा आगरा व अवध व बुन्देलखण्ड और मेरठ में पेश आया। पंजाब, बंगाल, मद्रास के सूबा जात की हिन्दोस्तानी अफवाज ने शुमाली हिन्द की इन्केलाबी अफवाज का कोई साथ न दिया। नतीजा इसका यह हुआ कि इन्केलाबी मऊरका कामयाब न हुआ। रियासते बांदा में तहरीक इंकेलाब की शुरूआत बांदा गज़ेटर सफहा 183 से जाहिर होता है कि रियासत बांदा में 1857 का इन्केलाब सबसे पहले 8 जून से जिले के मश्रिके हिस्से से शुरू हुआ। ये वह कैदी जो 5 जून को इलाहाबाद की सेण्ट्रल जेल तोड़कर मऊ के घाट जिला बांदा में दाखिल हुए थे। 1804 से 1812 तक अंग्रजों ने बुंदेलखण्ड पर अपना तसल्लुत कायम कर लिया था। और बांदा को अपना सदर मुकाम बनाकर जिले की ज़मीनों को तहसीलों में तकसीम कर दिया था। कुरदी में मिस्टर ओकरेल ज्वाइंट मजिस्ट्रेट और बांदा में मिस्टर मेन कलेक्टर व डिस्ट्रक्ट मजिस्टे्रट थे, जब यह इन्केलाबी मऊ के घाट से जिला बांदा में दाखिल हुए तो इन्होंने कत्ल व गारत गिरी की खबरें और मवाजेआत पूरब पट्टïी और मनकवारा के बाशिंदों के साथ मिलकर हमला किया। डेसा चलई के जमींदार हेगन खां ने अहलकारों के महसूर कर लिया और 1200/- रूपये ख$जाने का लूट लिया और सरकारी जायदाद को लूटकर तहसील के तमाम का$गजात में आग लगा दी। 1 जून को मौजा मरका और समगरा के बाशिंदों ने बबेरू के बाशिंदों के साथ मिलकर तहसील व थाने पर हमला किया। तहसीलदार अपनी जान बचाने को बांदा की तरफ भागा। इंकेलाबियों ने तहसील के खजाने को लूटा और तमाम कागजात जला दिये। इसी दिन जोहरपुर, सेमरी, पिपरहरी, वासिलपुर के बांशिदों ने भी लूटमार और बगावत शुरू कर दी। बांदा की फौज जिसका इंचार्ज ले$िफटनेंट बेनट अपने हेटक्वाटर बांदा में था, इसके अलावा एक तरबीयत याफ्ता फौज नवाब अली बहादुर सानी की मुलाजमत में थी। नवाब सा. की शख्सियत सिर्फ बांदा में मुमताज थी बल्कि नवाब सा. का वकार और असर पूरे जिला बांदा पर था। मिस्टर मेन ने तहसील व थाने की हिफाजत के लिये नवाब सा. से मशविरा करके उनके कुछ सिपाहियों, पुलिस के मुला$जमीन और इलाके के ज़मींदारों को मय उनके असलहे के तलब करके इंतेजाम किेया और कुछ सिपाही सरदार मोहम्मद खां डिप्टी कलेक्टर की माहतेहती में चिल्लातारा घाट जमना नदी से मश्विरा का गोरीहार के किलेदार राजधर और अजयगढ़ व चरखारी की रियासतों को बांदा जिले की हिफाजत के लिये बमय तोपों और बंदूकचियों और सवारों की फौज फौरी तौर पर खतूत रवाना किये। गौरी हार के किलेदार राजधर रूद्रसिंह तिवारी ने मेन की मदद के लिये एक तोप के साथ 125 फौजी भेज दिये। अजयगढ़ की बेवा रानी ने 200 बंदूकची और सवार दो तोपों के रवाना कर दिये। चरखादी के राजा रतनसिंह ने फौजी मदद करने में अपनी माजरी की और नये फौजियों की भर्ती की इजाजत चाही। अंग्रेजों ने राजा रतनसिंह को इजाजत नहीं दी। मिस्टर मेन ने जेल पर जहां दो तोपें मौजूद थीं, गल्ला और असद का जखीरा जमा किया। जेल के अमले ने यह अफवाह फैला दी कि गेंहूँ के साथ गाय की हड्डिïयां पीसकर शामिल कर दी हैं। इन्केलाबियों ने मिस्टर मेन पर हमला कर दिया, जिससे वह बमुश्किल अपनी जान बचा सके, उस वक्त बांदा के अंग्रेजी खजाने में 9 लाख रूपये की रकम थी। 8 जून 1957 को फतेहपुर में सरकशीं फैल गयी। वहां के इंकेलाबियों ने बांदा का रूख किया चिल्लातारा घाट पर सरदार मोहम्मद खां और उनके फौजियों को $जख्मी किया। सरदार मोहम्मद खां ने एक तेज सवार के जरिए मिस्टर मेन को इत्तेला भेजी कि बागियों ने मुझे घेरकर जख़्मी कर दिया है और अब ये लोग बांदा की तरफ बढ़ रहे हैं। इस खबर के शहर में मशहूर होते ही बांदा के इंकेलाबियों ने शहर में लूट-मार करना शुरू किया, लेकिन नवाब अली बहादुर सानी ने पुलिस की मदद से हंगामें को ठण्डा कर दिया। सरदार मोहम्मद खान ने जख़्मी होकर चिल्लातारा घाट को छोड़ दिया, शाम होते-होते फतेहपुर के अंग्रेज अफसरान और फतेहपुर के इंकेलाबी शहर में आगे-पीछे दाखिल हो गये और यह खबर भी मशहूर हुई कि के कानपुर के मुसलहे बागी भाईयों और इन्क़ेलाबी हम वतनों की मदद के लिये बांदा आ रहे हैँ। इस खबर के फैलने से हालात संगीन हो गए, तब रातों रात तमाम अंग्रेज अंग्रेज औरतों और आधे से ज्यादा मर्द नवाब सा. के महल में हिफाजत के लिये मुनतकिल कर दिये गये। बाकी आधे अंग्रेज मिस्टर मेन के साथ उनके बंगले में मुकीम हो गये। 12 जून 1957 को इन्केलाबियों ने जुमे के रोज दो बंगलों को आग लगा दी। 14 जून को नम्बर 1 देसी सवारों का रिसाला जो बांदा में तैनात था उसके सवारों को कानपुर हेडक्वार्टर से बग़ावत इख़्तेयार करने की हिदायत मौसूल हुई। जिस पर यह रिसाला बागी हो गया और इसने दरोगा जेल को घेरकर यह हिदायत की कि सामान रसद व गल्ला और दोनों यहां से हरगिज न मुनतकिल की जावें तब मिस्टर मेन ने नवाब सा. से मिलकर और मश्विरा करके उनकी फौज के 125 सिपाहियों और अजयगढ़ की इमदादी फौज के आदमियों को लेकर अपने बागी सवारों के रिसाले को दहशत जहद किया और उनको घेरकर नवाब साहब के अहाते में दाखिल किया। मिस्टर बेंजामिन नवाब सा. की मुलाजमत में थे। बेंजामिन के बजाय इस फौज की कमान मिस्टर बनेंट के सुपुर्द कर दी गई। नवाब सा. की फौज ने इस कमान की मुखालफित की। मुखालफित में गदर किया और मिस्टर बेनेंट को बंदूकों के कुंदों से मार-मारकर ज़ख़्मी कर दिया। इस पर बड़ा हंगामा मंचा और बड़ी तादाद में सिपाही और बागी इकट़्ठा हो गए। तब नवाब अली बहादुर सानी ने बजाते खुद दरम्यान में आकर इनको समझाया और मामले को ठण्डा कियाघ्। तब कुछ फौजी क्लर्क और मिस्टर फ्रेजर बचकर नवाब साहब के महल के अहाते के अंदर चले गये और बागी रिसाला नवाब साहब की फौज के सिपाहियों को लिये हुए पुलिस लाईन की तरफ जेहाद का नारा लगाते हुए रवाना हो गया, और पुलिस लाईन और खजाने पर कब्जा जमा लिया। 15 जून को मिस्टर कॉकरेल ज्वाइंट मजिस्ट्रेट करवी से बांदा वारिद हुआ और अपने साथ करवी के खजाने का रूपया भी लाया। इसको रोकने और बांदा न आने के लिये मिस्टर मेन एक खत भेज चुके थे, लेकिन वो खत उसको नहीं मिला, और कॉकरेल बांदा आ गया, उसने बांदा आकर मिस्टर मेन को तलाश करके मुलाकात करनी चाही लेकिन वो नहीं मिले क्योंकि मेन तो 14 जून को ही भगाकर नागौद चले गये थे, तब कॉकरेल ने खजाने के रूपयों को महफूज कर देने के ख्याल से नवाब सा. से मुलाकात कर रूपयों को महफूज कर देना चाहा, इसी दरम्यान इनकेलाबियों को इस रूपये को लेकर आने का पता चल गया। इससे पहले के कॉकरेल रूपया लेकर नवाब सा. के महल तक पहुंचे। अहाते के फाटक के बाहर हमला करके कॉकरेल को मार डाला और लाश घसीटकर एक गड्ढïे में फेंक दी और वह रूपयसा अपने कब्जे में ले लिया। इससे पहले पुलिस लाईन में रखा दो लाख रूपया भी बागी भी अपने कब्जे में ले चुके थे। 16 जून को पांच अंग्रेजों को पकड़कर इंकेलाबियों ने कत्ल कर दिया। बांदा गजेटर के सफह 187 पर इन पांचों अंग्रेजों के कत्ल किये जाने का जिक्र हैं। 16 जून 57 को बा$िगयों ने जेल से तमाम कैदियों को आजाद करके गल्ला और रसद पर कब्जा कर लिया और दोंनों तोपों पर कब्जा कर अजयगढ़ की फौज के साथ शामिल हो गए। नवाब अली बहादुर सानी ने इन्केलाबियों को रवैये से मुताअसिर होकर मुतलक उल इनान हुकमरां की हैसियत से एक फरमान बजरिये इलाने आम इन अलफाजों में जारी किया। क्रमश: