- आजादी के बाद नासिर क़ाजमी ने आधुनिक गजल को सबसे अधिक प्रभावित किया। उनका जन्म अम्बाला पूर्व में पश्चिमी पंजाब में 1925 में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा के बाद वो लाहौर में आकर रहने लगे। भारत विभाजन के बाद वह पाकिस्तान की नागरिकता प्राप्त कर वहीं रहने लगे। लाहौर के साहित्यिक वातावरण में नासिर क़ाजमी की शायरी बहुत चमकी। कुछ समय तक वह ‘औराके नौ’ और ‘हुमायूं’ के सम्पादक भी रहे। उनकी मित्रमंडली का दायरा बहुत विस्तृत था। 1972 में 47 वर्ष की आयु में जब उनकी शायरी अपने उच्च शिखर पर थी तब उनका देहांत हो गया। उनकी गज़लों के प्रसिद्घ संग्रह ‘बर्गे नय’ 1954, और ‘दीवान’ 1957 में तथा तीसरा काव्य संग्रह उनके देहांत के बाद 1975 में ‘पहली बारिश’ प्रकाशित हुआ।
नासिर काजमी आधुनिक शायरी के प्रतिनिधि शायर स्वीकार किये जाते हैं। मीर तकी मीर की गजल से वो सीधे तौर पर प्रभावित हुए और उन्होंने यह असर फिरा$क गोरखपुरी के वास्ते से भी कुबूल किया। उनकी गजल अपने धीमे लहजे, दबे-दबे दर्द और आधुनिक अहसास के कारण प्रसिद्घ हैं। वो अक्सर ऐसे शब्दों का प्रयोग भी किया करते थे जो गजलिया शायरी की क्लासिक शब्दावली से मेल नहीं खाते, परंतु वर्तमान समय के दुख को बयान करने की योग्यता रखते हैं और इसीलिए उनमें बेहद ताजगी है। उन्होंने उर्दू ग़जलों को आंतरिक और आंतरिक स्थिति को बीसवीं सदी के उदासी एवं निराशा मिश्रित अहसास के साथ प्रस्तुत किया है। नासिर क़ाजमी की गजलों में एक विशेष प्रकार की उदासी की फिजा मिलती है। रात के अंधेरे में दूर कोई सितारा चमकता है, सन्नाटे गूंजते हैं, पत्तों पर ओस की बूंदे लरजती हैं और धुंधली-धुंधली रोशनी में, कोहरे में डूबती शहर की सड़कें किस को आवाज देती हैं। नासिर काजमी का शहरे गजल एक ऐसी दुनिया की खबर देता है जो जानी-बूझी भी है और अनजानी भी। धुंधले-धुंधले रहस्य की यही स्थिति नासिर काजमी के गजल कहने के कलात्मक ढंग की जान है।
नासिर काजमी की गजलें
गली-गली मिरी याद बिछी है प्यारे रस्ता देख के चल।
मुझ से इतनी वहशत1 है तो मेरी हदों से दूर निकल॥
एक समय तेरा फूल सा नाजुक हाथ था मेरे शानोंं2 पर।
एक यह वक़्त कि मैं तन्हा और दुख के कांटों का जंगल॥
याद है अब तक तुझ से बिछडऩे की वो अंधेरी शाम मुझे।
तू खामोश खड़ा था लेकिन बातें करता था काजल॥
मैं तो एक नई दुनिया की धुन में भटकता फिरता हूं।
मेरी तुझ से कैसे निभेगी एक है तेरे फिक्रो-अमल3॥
मेरा मुंह क्या देख रहा है देख उस काली रात को देख।
मैं वही हमराही हूं तेरा, साथ मेरे चलना है तो चल॥
शब्दार्थ – 1- डर, 2- कन्धों, 3- सोच व कर्म।
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दिल में इक लहर से उठी है अभी।
कोई ताजा हवा चली है अभी॥
शोर बरपा है खाना-ए-दिल में।
कोई दीवार सी गिरी है अभी॥
भरी दुनिया में जी नहीं लगता।
जाने किस चीज की कमी है अभी॥
तू शरीके-सुखन1 नहीं है तो क्या।
हम सुखन तिरी खामोशी है अभी॥
याद के बे निशां जजीरों2 से।
तेरी आवाज आ रही है अभी॥
शहर की बे चिराग़3 गलियों में।
जिन्दगी तुझ को ढूंढती है अभी॥
सो गए लोग इस हवेली के।
एक खिड़की मगर खुली है अभी॥
तुम तो यारो अभी से उठ बैठे।
शहर में रात जागती है अभी॥
वक़्त अच्छा भी आयेगा नासिर।
गम न कर जिन्दगी पड़ी है अभी॥
शब्दार्थ – 1-बातचीत में शरीक, 2-द्वीपों, 3- अंधेरी।