मशहूर औलिया किराम – हज़रत मंसूर हल्लाज रह

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हजरत शिब्ली और आप एक ही पीर से वाबस्ता थे। रियाजत व इबादत भी आपने काफी की थी। मगर अहले शरए की निगाह में ’’था अनलहक्र मगर इक लफ्ज गुस्ताखाना था।‘‘
हक के साथ अनानियत का काम क्या, अक्सर बुजुर्गों की खिदमत से आपने फैज हासिल किया था। सफरे हिजाज भी अपने शैख के साथ किया था। कोई मसला पूछने पर हजरत जुनैद ने यह फरमाया था कि तुम एक दिन जरूर लकडी का सर सुर्ख कर दोगे। जज्बा में आकर आपकी जबान से भी यह निकल गया था कि हजरत जिस दिन ऐसा होगा आपके जिस्म अकदस पर भी अहले जाहिर का लिबास होगा। चुनांचे आपके कत्ल के फतवे पर खलीफा ने जब आप से मुहर करानी चाही तो अपने खर्कए फक्र उतार कर जुब्बए आलिमाना पहन कर मुहर की थी बजाहिर लायके दार है। बातिन का खुदा अलीम है। मखलूक हजरत मनसूर भी की थी। आपकी तस्नीफ पर अकजाए आलम से आप को खिताबत भी आते थे मसलन अबू अलमुईन अबू अलमुनीर वगैरह की। हल्लाज की वजहे तस्मिया यह है कि रूई के अंबार की तरफ जो गुजरते तो एक इशारे से सब बिनौले निकाल देते। रात दिन में आप चार सौ रकअतें पढते थे और एक गुदडी बीस साल तक मुतवातिर पहले रहे जिसमें तीन रत्ती जुंए पड गई थीं।
एक सफर में आपके साथ चार सौ सूफी थे। एक मंजिल पर भूक ने सबको बेकरार किया तो आपने सब को दो दो रोटी गर्मी और एक सर्मी तकसीम की, अपने खिर्का में से निकाल निकाल कर फिर कहा मुझे झाडो तो खजूरें झडीं । बैतुल्लाह के मुकाबिल एक साल तक आप नंगे सर खडे रहे। चर्बी घुल घुल कर बहने लगी। लेकिन आपने हटने का नाम न लिया। एक बिच्छु ने आपकी तहमद में ठिकाना बना लिया था। उस वक्त आपने मुनाजात की थी, ऐ अहकमुलहाकिमीन तू पाक है। तमाम साहिबे पिन्दार लोगों के पिन्दार से मैं तेरा शुक्र अदा नहीं कर सकता। तू ही मेरी जगह अपना शुक्र करले। यही शुक्र काफी होगा। लोगों ने आप से सब्र की तारीफ पूछी। फरमाया, अगर हाथ पांव काट दिये जायें और सूली दे दी जाये तो आह न करे। कैदखाने में आप हजार रकअते, रोज पढते। लोग कहते जब आप खुदा हैं तो नमाजें किसकी पढते हैं। फरमाते अपनी कद्र हम खुद ही जानते हैं। सूली देते वक्त एक फकीर ने पूछा इश्क क्या है। कहा आज देखना कल देखना परसों देखना चुनांचे एक दिन दार पर चढे दूसरे रोज जलाए गए। तीसरे दिन राख दरिया में वहीं।
आप के मुरीदों और बेटों ने हिदायत तलब की तो फरमाया जहां वाले आमाल में कोशिश करते हैं। तुम ऐसी शय में कोशिश करना जो इस जर्रए जहान से बेहतर हो और वह इल्मे हकीकत है। मुरीदों से फरमाया कि तुम को मेरे साथ हुस्ने जान है, यह तुम्हारे लिए सबाब है। आपने जवानी में एक औरत पर नजर उठाई थी। वक्ते सूली फरमाया कि ऊपर देखने वाला यूं नीचे देखता है।
फिर फरमाया तसव्वुफ का अदना तरीन दर्जा है जो आज लोग देख रहे हैं। हर शख्स हुकूमत के हुक्म से आपको पत्थर मार रहा था और आप हंस रहे थे मगर जब शिबली ने लोगों के कहने से एक फूल आप के मारा तो रो पडे। हजरत मंसूर ने आह खींची लोगों ने पूछा तो कहा मर्दें आगाह के फूल पत्थर से ज्यादा लगा और अन्धों के पत्थर फूल होकर लगे हैं आपके खून के हर कतरे से अनालहक लिखा गया।