मैं उन राहों का मुसाफिर हूं
जिन पर मंजिल कभी नहीं आती
चलते रहना मेरा मुकद्दर है
और सफर की गर्द मेरी हम सफर है,
नस नस से रौशनी निचोड़ कर
इन राहों को उजाला बख़्श्ना मेरा मश्गला है।
लफ्ज़ों की आंच पर एहसास को सैंकना
और
फिर वक़्त जो मेरा कागज है, उस पर
अपने अह्ïद के और
आने वाले जमाने के
तमाम इन्सानों के लिये
अपने मायूस ख़्वाबों के मंशूर तहरीर करना ही
मेरी जिन्दगी है।
थक कर बैठ रहना
मुझे गवारा नहीं।
जिन्दगी सफर है, एक मुसलसल सफर
और इस सफर का अंजाम……….
जहां से मैंने सफर शुरू किया था।
और वो मंजिल………
वो भी नई होगी
बिल्कुल नई।
फिर भी, मैं…….मायूस नहीं……….
आरजुयें जवान और हौसले बलन्द हैं
और सफर जारी है
सफर जो बहरहाल सफर है।
सफर जो नवेदे मंजिल है॥
– डॉ. अली अब्बास उम्मीद