हज़रत ख़्वाजा अबुलहसन ख़र्क़ानी रह.

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कुतबुलअस्र में अब्दालुल वक़्त पेशवाए आरिफ़ान बुजुर्गे मरातिब थे। हज़रत बायज़ीद बुस्तामी रह. जब ख़र्कान से गुज़रते तो फरमाते के इस चोरों के गांव में एक मर्दे हक़ की ख़ुशबू आती है जिसका नाम अली होगा। अबंलहसन कुन्नियत और तीन दर्जा मुझसे बढ़ कर होगा।
हज़रत ख़्वाजा साहिब ने शुरूआत में नमाज़ बाजमाअत ख़र्कान में ही पढ़ी। आपने हज़रत बायज़ीद के मज़ार की ज़ियारत भी की है और दुआ मांगी है कि इलाही बायज़ीद के ख़िलबत में से मुझे कभी हिस्सा दे। आपने चैबीस दिन में कुरआन शरीफ़ पढ़ लिया। आप जब नमाज़ पढ़ते तो आपका हल बैल ख़ुद चलाते। एक शख़्स कुछ जिन्स लाया और अर्ज़ कि की सूफ़ियों के लिए लाया हूं। आपने हाज़िरीन से कहा तुम में से जो सूफी हो ले ले। किसी ने भी न लिया। एक बुजुर्ग हवा में उड़ते हुए आए कि मैं शिबलीए वक़्त हूं, जुनैदे वक़्त हूं। आप पर भी कैफियत तारी हो गई। फ़रमाया मैं मुस्तुफाए वक़्त हूं। मैं ख़ुदाए वक़्त हूं। यह असरार व रमूज़ कर किसी को समझने के नहीं। एक मर्तबा इर्शादे इलाही हुआ कि अबुलहान जो कुछ हम तेरी निस्बत जानते हैं अगर ज़ाहिर कर दें तो लोग तुझे संगसार करके छोड़ दें।
अर्ज़ किया इलाही! अगर तेरी रहमत के बारे में जो मैं जानता हूं दुनिया पर ज़ाहिर कर दूं तो कोई भी सज्दा न करे। इर्शाद हुआ न कहा। न हम कहें।
आपका क़ौल है कि मैं तीन बातों की हक़ीक़त से नावाकिफ़ हूं। इनमें से एक यह है कि हुज़्ाूर सल्ल. की उलूनियत मरातिब से मुझे ज़रा भी आगाही नहीं कि क्या इन्तिहा है- बहिश्त व दोज़ख़?
मेरे सामने कोई हक़ीक़त नहीं रखते थे क्योंकि वह भी आखिर हो मैं भी। अगर ख़ुदा की मेहरबानियों ज़ाहिर करूं तो मख़लूक मुझे दीवाना कहे। फ़रमाया ज़मीन के मुसाफ़िर के पांव में आबले पड़ते हैं और आसमानी मुसाफ़िर के दिल आबले पड़ते हैं।
आपकी वसीअत थी कि मेरी क़ब्र तीस गज़ गहरी खोदी जाए क्योंकि हज़रत बायज़ीद की सतह से मैं ऊंचा रहना नहीं चाहता। आपकी क़ब्र पर शेर के क़दमों के निशान भी पाए गए। आज तक जो लोग क़ब्र पर हाथ रख कर दुआ मांगते हैं मुरादें ख़ुदा देता ह। लोगों ने बादे विसाल आपको देखा। आपके वालिद का नाम अहमद था। बाज़ ज़ाफर बताते हैं। ख़र्क़ान में वतन था। यह सूबए जारजान में है। हज़रत बायज़ीद रह. आपके मुर्शिद हैं।
वफ़ात 10 मुहर्रम 425 हि. 73 साल की उम्र में हुई।