अल्लामा इक़बाल और भोपाल

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हज़रत अल्लामा इक़बाल को सर सैय्यद अहमद के पोते डाक्टर सर रास मसूद से बड़ी उल्फत थी और वो भी इन पर जान छिड़कते थे। उन्होंने तजवीज़ किया कि अल्लामा भोपाल तश्रीफ लायें और यहां बिजली का इलाज करायें, जिसका यहां भोपाल में बेहतरीन इंतज़ाम है। चुनांचे अल्लामा इक़बाल जनवरी 1935 के अंत में दिल्ली पहुंचे, वहां खालिदा खानम अदीब ने जामेआ तैया में एक लेक्चर दिया। जिसकी सदारत अल्लामा इक़बाल ने की और उसके बाद भोपाल रवाना हो गए। जहां मार्च के शुरू में लगभग 4 हफ्ते तक उनका क्याम रहा।
अल्लामा इक़बाल भोपाल की पाकीज़गी और हवा की ताज़गी से बहुत मुतास्सिर हुये और अपने डाक्टरों और मेज़बानों की मेहरबानियों के बेहद अहसानमंद थे। 5 फरवरी 1935 को उन्होंने सैय्यद नज़ीर नियाज़ी के लिखा इलाज बेहद मुकम्मल हुआ। जिससे हकीम साहब की बहुत सी बातों की ताईद हुई।
भोपाल से वापसी पर आप देहली में दो रोज तक ठहरे, हकीम साहब नब्ज दिखाई और इलाज उन्हीं का जारी रखा। डाक्टरों की राय यह थी कि बिजली का इलाज काफी मुद्दत तक जारी रहेगा तो आवाज़ पर असर पड़ेगा।
रियासत भोपाल से वजीफा
यह वक्त 1354 हि. अल्लामा इक़बाल पर भारी था, चार साल से वकालत का सिलसिला भी बंद था किसी तरफ से आमदनी की कोई सूरत नहीं थी। किताबों से जो रूपया वसूल हुआ था वो ’’जावेद मंजिल‘‘ की तामीर पर खर्च हो चुका था। आपकी तबियत कई साल से नासाज़ चल रही थी। बेगम भी बेवक्त साथ छोड़ गई थीं। बच्चों की देखभाल व तालीम व तरबियत का मसला भी सामने था।
अगर चाहते तो पिछले सालों की शोहरत व नामवरी से फायदा उठा कर लाखों रूपये जमा कर लेते, किसी बड़े ओहदे पर फायज़ हो जाते, लेकिन इस दरवेश ख़ुदा मस्त ने कभी भी दौलत व जाह की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखा। जिसका नतीजा यह हुआ कि आखिर में रोजमर्रा तक के खर्च उठाना मुश्किल हो गया।
इस मौके पर नवाब हमीदुल्ला खान ने अपने ताअल्लुक खातिर और कद्रदानी खिदमते इस्लामी के बाईस जेबे खास से हज़रत अल्लामा का पांच सौ रूपये माहाना वजीफा आजीवन के लिए मुकर्रर कर दिया। मई के महीने में ही बेगम का इंतकाल हुआ और उसी महीने से भोपाल रियासत का वज़ीफा शुरू हुआ।
5 जुलाई 1935 को अल्लामा इक़बाल फिर भोपाल के सफर पर रवाना हुए ताकि बिजली का इलाज जारी रह सके। सर रास मसूद और उनकी बेगम साहिबा अल्लामा इक़बाल की अशाईश और खातिरदारी में इन्तिहाई खुलूस के साथ लगे रहते थे। भोपाल से वापसी पर अल्लामा बताया करते थे के आवाज़ खुल जायेगी। अब यह हालत थी कि कभी- कभी डाॅक्टर जमीअत साहब अगर दिल और फेफड़ों का मुआयना करके जाते। हकीम नाबीना का इलाज अब भी जारी था। लेकिन अल्लामा इक़बाल इन तमाम इलाजों से बेहद उकताए हुए थे। क्योंकि वो किसी फौरन फायदे की उम्मीद करते थे, लेकिन मेडिकल साईंस इस मामले में नाकामयाब हो रही थी।
इसके बाद एक बार फिर मार्च 1936 में अल्लामा इक़बाल बिजली के इलाज के लिए भोपाल आये। इस बार वो 9 अप्रैल को भोपाल से इलाज कराने के बाद वापिस हुए। – रईसा मलिक