मशहूर औलिया-ए-किराम~ख्वाजा हसन बसरी रह.

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हजरत ख्वाजा हसन बसरी रह. की गिनती इस्लाम के उन महान सपूतों में होता है जिनकी तमाम उम्र इस्लाम की खिदमत में गुजरी और उन्होंने सच बात कहने में किसी तरह का संकोच नहीं किया। उनका जमाना बनु उमैय्या का जमाना है ओर वह भी बनु उमैय्या के सरफिरे गवर्सर हज्जाज इब्ने युसुफ का जमाना जिसमें सच बात कहना अर्थात मौत को दावत देने के बराबर था परन्तु सरवर ए कायनात सल. के सच्चे प्रेमी, जिन्होंने कभी भी हज्जाज के जुल्म की परवाह नहीं की कुछ प्रस्तुत है आपके जीवन की कुछ झलकियांः-
’’सूफी भी आलिम भी और एक निडर सच बोलने वाला भी‘‘
हजरत ख्वाजा हसन बसरी रह. अलैह सन् 612 , 17 शाबान हिजरी 21 को मदीना मुनव्वरा में पैदा हुये आपकी माता उम्मुल महासन बडे पाये (सम्मानित) स्त्री थीं और हजरत सलमा रदै अल्लाहो अनहा की खास सहेली थीं और हजरत सलाम रदै आपसे अपनी औलाद की तरह मोहब्बत करती थीं वह आपकी उस्ताद हैं, कुरान ए करीम हजरत हसन बसरी ने हजरत सलमा रदि. अन. से ही शिक्षा प्राप्त की। हजरत हसन बसरी को यह शर्फ हासिल है कि हजरत अली रदै. से तरबियत हासिल की।
आपने उलूम ए जाहिरी की तकमील के बाद उलूम ए बातनी की तरफ तवज्जो दी। जबरदस्त मुजाहिदे किये। आपके एक राजदार दोस्त का बयान है कि जब 40 साल की उम्र हुयी तो रोजाना तीन हजार बार दरूद को पढने लगे थे। आपके एक बकमाल ….मुरीद शेख अबुल फतह कहते है। कि मैं हसन बसरी की खिदमत में तकरीबन 6 साल रहा हूं और मैंने इन 6 सालों में हमेशा यह देखा कि आप सारी सारी रात इबादत ए इलाही में मशगूल रहा करते थे।
दूसरे मसाहिबों का बयान है कि आप जब इबादत ए इलाही में मसरूफ सिफ्त होते तो दुनिया वगैरह से कतई बेखबर हो जाते और कभी-कभी वज्द…………..का ऐसा आलम तारी होता कि रोते-रोते आंखों पर वर्म आ जाता दोस्तों ने एक मर्तबा कहा हजरत आप इस कदर क्यों रोते हैं जबकि आप यादे इलाही और शरीयत की पाबंदी में हर वक्त मशगूल रहते है। आपका मुख्तसर सा जवाब था मैं इसलिए ज्यादा रोता हूं कि ज्यादा गुनाहगार हूं मैं अपने गुनाहों की ज्यादती और उनको याद करके रोता हूं। हजरत हसन बसरी रह. सिर्फ जाहिदे शबे जिन्दा दार नहीं थे (केवल रात को जागकर इबादत करने वाले ही नहीं थे) बल्कि उनको खिदमत ए खल्क का बहुत ख्याल रहा करता था और आम मुसलमानों की फिक्र उनको हमेशा रहती थी मजलूमों के हक में आवाज बुलंद करना आपका शैवा (आपका प्रथम कार्य) था और जालिमों को उनके सामने बुरा भला कहना अपना फर्ज समझते हैं।
बनु उमैया के गर्वनर हज्जाज इब्ने युसुफ की जुल्म और ज्यादतियां (अन्याय और अत्याचार) पूरे उरूज पर थीं वह शासकों के विरूद्ध जरा सी बात भी सुनना बर्दाश्त नहीं करता था इस सिलसिले में उसने बडे-बडे मुत्तकी (धार्मिक व्यक्तियों) लोगों को और साहबियों को शहीद किया। हजरत अब्दुल्ला बिन जुबेर रदि. अनहो जैसे बडे हजरात उसके जुल्म का निशाना बन गये थे गर्ज जो भी बनु उमैया के खिलाफ बोलता वह मारा जाता उसके बावजूद हकगो……………..हजरात अपना फर्ज पूरा करते और हज्जाज के जुल्म का शिकार हो जाते। हजरत हसन बसरी रह. भी ऐसे ही ब बिकार और निडर बुर्जुगों में से थे जो हज्जाज और बनु उमैया की गल्तियों जुल्म और ज्यादतियोंका उसी समय इजहार करते थे जिस तरह हज्जाज के जुल्म की वजह से अरब में उसकी शोहरत और तूती बोला करती थी इसी तरह हजरत बसरी रह. की बुर्जुगीयत का मिलियत की शोहरत थी आपकी मजलिस में लोगों का अजदाहम रहता था जिनमें अमीर और फकीर सभी लोग शामिल थे अपनी मजलिस में जिस तरह आप तसव्वुफ उलूम ए जाहिरी ………उलूम ए बातनी……… और असरार ए इलाही के राज बयान फरमाते इसी तरह दुनियावी माशरत …………..अदब व आदाब हुकूल इबाद ……और पडोसियों के हुकूक ……….और हुक्मरानों के हुकूक …….अवाम पर और अवाम के हुकूक हुक्मरानों पर क्या-क्या होते हैं आप खुल्लम खुल्ला बयान फरमाते और आप किसी की भी रियायत नहीं करते ऐसी ही एक रूहानी मजलिस का जिक्र है हजरत हसन बसरी रह. नूर व निकहत के फूल बिखेर रहे थे रमूज ए इलाहीयात………………..से पर्दा उठा रहे थे मजलिस में लोगों का हुजूम था आपका वाज………….जारी है कि हज्जाज, इब्ने युसुफ आया ओर मजलिस में एक नुमाया मुकाम पर आकर बैठ गया खशूनत ओर तकब्वुर …………….उसके चेहरे बुशरे………… से आया था हजरत हसन बसरी रह. ने उसको देख लिया एकदम आपने मौजू ए गुफ्तगू फरमाने लगे।
आपने कहना शुरू किया में देखता हूं कि इस महफिल में कुछ ऐसे लोग भी मोजूद हैं जो खुद को इंसानियत मर्तबे से ज्यादा ख्याल करते हैं यह वह लोग हैं जिनकी नजरों में एक गरीब और आम इंसान की हैसियत हकीर मच्छर से ज्यादा नहीं है वह गरीबों के साथ बोलना तक गवारा नहीं करते हैं वह अपनी मजलिसों में गरीबों को आने तक नहीं देते यह लोग पसंद नहीं करते कि गरीब आदमी हमारे सामने बोलने की जुर्रत करें और कोई शख्स गलती और भूल से भी उन पर कोई ऐतराज करे और वह मुंहजबे गर्दनजदनी (कत्ल) है समझ लो कि ऐसे लोग गुमराह हो चुके हैं ओर इस मुगालते में मुबतिला है कि खुदाई ताकत उनके हाथों में आ गयी है।
आपकी यह तकरीर जारी थी तमाम मजलिस हक्का बक्का आपकी बेखौफी को देख रही थी हज्जाज इब्ने युसुफ के चेहरे पर एक रंग आ रहा था और दूसरा जा रहा था वह बखूबी समझ रहा था कि यह सब इशारे उसी की तरफ है लेकिन खिलाफ उम्मीद वह खामोशी के साथ बैठा रहा आपने बात जारी रखते हुये कहा, इन लोगों के तकब्बुर (घमंड) का यह आलम है कि अगर कोई गरीब मुसलमान उनके सामने कोई हक बात कह देता है तो गुस्से की वजह से उनके चेहरे दरिंदों की तरह बन जाते हैं हालांकि इस्लाम इन बातों के सख्त खिलाफ हैं और शख्सी इख्तेयारात और इख्तेदार की बुनियादों की इस्लाम ने जडें उखाड दी हैं अल्लाह के नज्दीक न कोई छोटा है न कोई बडा अलबत्ता जिसके आमाल अच्छे हैं वह अल्ला के नज्दीक ज्यादा मेहबूब है याद रखो जो खुलाफा-ए-राशिदीन के रास्ते से हट गया वह समझो भटक गया और भटके हुये के लिए जहन्नुम (नरक) के अलावा कोई जगह नहीं जिसने जुल्म किया वह गुनाहगारों में शामिल हो गया ऐसे फना होने वाले इंसानों-क्यों अपनी फानी कुव्वतों पर मगरूर होते हो तुम चाहते हो तुमको अमीरूल मोमिनिन कहकर पुकारा जाये हालांकि मुसलमान तुम्हारी इमारत से खुश नहीं है जिस इमारत में अहकामे खुदा बंदी पीछे डाल दिये जायें उसका खत्म होना ही बेहतर है।
हाजरीन का ख्याल था कि तकरीर खत्म होते ही हज्जाज इब्ने युसुफ आपके कत्ल का हुक्म दे देगा लेकिन खिलाफ मामूल उसने ऐसा नहीं किया और खामोशी के साथ उठकर चला गया क्योंकि उसको भी यह अंदाजा था कि हजरत हसन बसरी रह. के साथ जबरदस्त अवामी ताकत है अगर उनके साथ ज्यादती की गयी तो बनु उमैया के हुकूमत की जडें हिल जायेंगी आप जब तक हयात रहे हक बात कहने का फर्ज अदा करते रहे जो कि अफजल जेहाद है।
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