मंजूर अली नजर

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भोपाल की अदबी महफिलों में अक्सर एक बुजुर्ग शायर सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यह शायर है मंजूर अली नजर, जो कि पिछले 50 वर्षों से भोपाल में उर्दू शायरी के चिराग को रोशन कर रहे हैं। उनकी रचनाएं उर्दू दैनिक नदीम, आफताबे जदीद आदि में भी प्रकाशित होती रही हैं। भोपाल के आकाशवाणी एवं दूरदर्शन केन्द्रों पर आयोजित होने वाले मुशायरों में भी वह शिरकत करते रहे हैं। वो अपनी शायरी के जरिये सभी देशवासियों को मोहब्बत, प्रेम एवं भाईचारे का संदेश देते रहे हैं। शादी-ब्याह के मौके पर दूल्हा-दुल्हन के सेहरे लिखने में उनको महारत हासिल है और अक्सर लोग उनसे सेहरे लिखवा कर ले जाते हैं। नये उभरते हुए शायरों को भी वह मार्गदर्शन देते रहते हैं और नये शायर अपनी शायरी की इस्लाह के लिये उनके पास आते हैं। मंजूर अली नजर का उर्दू शायरी से प्रेम इस बात से साबित होता है कि जहां कहीं भी मुशायरा या उर्दू की कोई अदबी महफिल होती है वहां उनकी उपस्थिति देखी की जा सकती है। – सैफ मलिक
मंजूर अली नजर की दो ग़जलेंं
मोहब्बत की दुनिया बसाये चला जा।
हर इक को गले से लगाये चला जा॥
बहारों की रंगीन फजा में नशेमन।
हर इक शाखे गुल पर बनाये चला जा॥
खिजां आ भी जाये तेरे गुल सितां में।
चमन को तू अपने बचाये चला जा॥
सलामत रहे तेरा मैखाना साकी।
मोहब्बत के सागर पिलाये चला जा॥
नजर तूने पाई है ईमां की दौलत।
ये मोती जहां में लृुटाये चला जा॥
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जिन्दगी का कारवां लेकर जिधर जाएंगे हम।
पुर खतर राहों से भी होकर गुजर जाएंगे हम॥
इल्म ओ हिकमत के गौहर से जब संवर जाएंगे हम।
गुन्चओ गुल की तरह उस दिन निखर जाएंगे हम॥
बोले परवाने शमा से तुझ पे मर जाएंगे हम।
पर जुनूं में इश्क की तकमील कर जाएंगे हम॥
बुगजो नफरत की लिखी तहरीर खुद मिट जाएगी।
हर के दिल पर लफ्जे उल्फत नक्श कर जाएंगे हम॥
लाज रख लेना वतन की ऐ मेरे एहले वतन।
यह अमानत अब तुम्हारे नाम कर जाएंगे हम॥
जख्मे दिल जख्मे जिगर खूने तमन्ना की खलिश।
उनकी महफिल से यह तोहफे ले के घर जाएंगे हम॥
होके हम साया हमारे जो बुरी डालें नजर।
वो इधर हरगिज न आए न उधर जाएंगे हम॥