डॉ. य़ुनुस फरहत

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भोपाल की अदबी सरगर्मियों में अक्सर एक नाम सुनाई देता है, वो है डॉ. युनुस फरहत का। कहीं मुशायरे का आयोजन होना हो अथवा अन्य कोई भी साहित्यिक गतिविधियां डॉ. युनुस फरहत हर जगह पेश-पेश रहते हैं। भोपाल में जन्में डॉ. युनुस फरहत को बचपन से ही शायरी का शौक था और उन्होंने अपने पहले अशआर तब लिखे जब वे कक्षा पांचवी में पढ़ते थे। वे बताते हैं कि डॉ. अल्लामा इकबाल से प्रभावित होकर उन्होंने शायरी प्रारंभ की। अभी तक उनके तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें शिकस्ते ख्वाब 1985 में, बि$जदान 1992 में और चिरागे आर$जू 2002 में प्रकाशित हुए हैं। डॉ. युनुस फरहत को म.प्र. उर्दू अकादमी द्वारा वर्ष 2001 में मो. अली ताज सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।
उनकी लिखी गजलें आकाशवाणी तथा दूरदर्शन के सभी केन्द्रों से प्रसारित होती रही हैं। उनके द्वारा लिखी गजलों, नज़्मों और गीतों को शकीला बानो भोपाली, अजीज शैदां, याकूब मलिक, असलम साबरी सहित अनेकों फनकारों ने अपनी आवाज दी है। वे जब कक्षा 10वीं में पढ़ते थे तब उन्होंने कायनात नामक एक पत्रिका का प्रकाशन भी प्रारंभ किया था।
भोपाल शहर की अदबी शख्सियतों में डॉ. युनुस फरहत का नाम किसी ताअरुफ का मोहताज नहीं है और उनकी साहित्यिक गतिविधियों से सभी परिचित हैं। उम्र का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में लगा दिया और आज भी काफी उम्र हो जाने के बावजूद वो इन क्षेत्रों में सक्रिय हैं।
डॉ. युनुस फरहत का दिल मुहब्बत और इख्लास के जज़्बात से भरपूर है। हुस्न चाहे वो इंसानी पैकर में हो, अमन में हो, किरदार में हो या किसी और ची$ज में उनको अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। डॉ. युनुस फरहत ने $ग$जलें और नज़्में दोनों कही हैं। डॉ. युनुस फरहत बुनियादी तौर पर मोहब्बत के शायर हैं मगर इसका यह मतलब नहीं कि वो हमारे आसपास के हालात पर उनकी न$जरें नहीं ठहरतीं। वो सभी तरह के अशआर कहते हैं। सियासी, समाजी और आम जिन्दगी के जो भी हालात हैं उनको भी उन्होंने अपनी शायरी का विषय बनाया है। यह कहा जा सकता है कि डॉ. युनुस फरहत मुहब्बत की सरशारियों और $िजन्दगी के हालात के शायर हैं। फिल्मी दुनिया में कई लेखकों और फिल्मी हस्तियों उनके करीबी संबंध रहे हैं। – सैफ मलिक
ग़जल
रात और दिन फरहत ये आंखों में नमी अच्छी नहीं।
आशिकी के जीते जी बे हुरमती अच्छी नहीं॥
हंस के जब कहता हूं उनसे तुम हो जाने शायरी।
चिड़ के वो कहते हैं देखो शायरी अच्छी नहीं॥
दिलबरों के जमघटे में वक्त अपना मत गंवा।
देख प्यारे दिलबरों की दोस्ती अच्छी नहीं॥
कोई जो भी तुझसे कह दे मान लेता है मियां।
ऐ सरापा नाज़ इतनी सादगी अच्छी नहीं॥
है जरूरी कुछ न कुछ आवारगी, दीवानगी।
आदमी की कोई आदत दाएमी अच्छी नहीं॥
जहद में हो कब्रो नखूत जब बजाये इन्किसार।
काफिरी अच्छी है, ऐसी बन्दगी अच्छी नहीं॥
जो खुशी हासिल किसी के घर को वीरां करके हो।
कोई मजहब हो किसी में वो खुशी अच्छी नहीं॥
ये नहीं पैहम नहीं, कब तक, कभी हां भी तो हो।
जाने जां हर बात में तरजे नफी अच्छी नहीं॥
आज ही कल में बकौल दाग हो गये कामयाब।
देखिये फरहत मियां कम हिम्मती अच्छी नहीं॥
गजल़
हमारे कत्ल को वो नित नये तेवर बदलते हैं।
कभी तीरों से लड़ते हैं, कभी खन्जर बदलते हैं॥
वफादारी तो इनकी असल ईमां हो नहीं सकती।
हमेशा देख कर मौसम का रुख ये घर बदलते हैं॥
शराबे गम बदलते ही नहीं अहले मयखाना।
कभी साकी बदलते हैं, कभी सागर बदलते हैं॥
उतर कर हुस्न की मसनद से आ, हम आशिकों में कभी।
तेरे आने से सारे शहर के मन्जर बदलते हैं॥
बड़ा ऐजाज है फरहत मियां हो उन की उम्मत में।
मुकद्दर आसियों के जो सरे महशर बदलते हैं॥