इंदिरा गांधी और जनजातीय उत्थान

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(जयंती पर विशेष)
भारत में अनेक संस्कृतियों और जातियों के बावजूद विविधता में एकता बनी रहने के परिणामस्वरूप राष्ट्र के रूप में इसका सदैव सम्मान बना रहा है । जनजातियां हमारे देश की आवश्यक अंग हैं । हमारे कुछ राष्ट्रीय नेताओं ने जनजातियों के उत्थान को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है । हमारी पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी इनमें से एक है जो देश के क्षितिज पर एक महान व्यक्ति के रूप में उभरीं । उन्हें जनजातियों से विशेष प्यार था क्योंकि वे लोग उन्हें बहुत सीधे, खुले मन वाले और सच्चे लगते थे । इसीलिए वे हमेशा जनजातियों का विकास चाहती थीं।
विश्वास से भरे व्यक्तित्व, सपनों भरी आंखें और प्रशासनिक तथा विकासात्मक कार्यों में उनके प्रमुख चिंतन में जनजातियां शामिल थीं और सरकारी नीतियों तथा कार्यक्रमों पर विचार करते समय वे जनजातियों को सदैव सम्मिलित करती थीं। इंदिरा गांधी के प्रसिद्ध 20 सूत्री कार्यक्रम पर अमल करते समय 1974-75 में इन विभिन्न पहलों को शामिल किया गया ।
जनजातियों को सहायता देने की उनकी इच्छा देश के प्रथम प्रधानमंत्री और उनके पिता पंडित जवाहर लाल नेहरू से विरासत में मिली थी । उन्हीं की तरह वह भी उदार, खुले विचारों वाली तथा समस्याओं को हल करते समय दूरदर्शितापूर्ण रहती थीं ।
पं0 नेहरू ने नगालैंड को राज्य का दर्जा दिया था तो इंदिरा ने मणिपुर और मेघालय को राज्य का दर्जा दिया और तत्कालीन केन्द्रशासित प्रदेशों मिजोरम और अरूणाचल प्रदेश को उदारतापूर्वक विकास-धन प्रदान किया ।
जनजातियों के साथ उनका भावनात्मक संबंध था और जनजातीय जीवन का जो अनुभव उन्होंने हासिल किया, वह मात्र राष्ट्रीय पूंजी की सुविधाओं के लिए नहीं था । बल्कि उन्होंने उन इलाकों का व्यापक रूप से दौरा किया और उनकी झोपडिय़ों में जा-जाकर उनके साथ बातचीत की और यहां तक कि अपने मान-सम्मान की परवाह किए बिना जनजातिय लड़कियों के साथ मिलजुलकर नृत्य किया । जनजातीय लोगों ने भी उनमें अपने मित्र और मार्गदर्शक की छवि पाई । इंदिरा गांधी के प्रति उन्होंने भी सम्मान व्यक्त करते हुए अपने नेता के प्रति विश्वास और प्यार प्रदर्शित किया, जो प्राय: चुनावों के दौरान उनकी पार्टी उम्मीदवारों के लिए बड़े-बड़े जनादेशों में बदल जाता था।
इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि उनकी जयंती के अवसर पर उत्तर-पूर्व समेत अन्य जनजातीय क्षेत्रों के लोगों ने आत्म-विश्वास निर्माण करने के कार्य में इंदिरा गांधी की गहन निष्ठा को याद किया । उसके तात्कालिक लाभ भी हुआ । मणिपुर और मेघालय को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला । 1970 के प्रारंभिक वर्षों के दौरान उनके क्षेत्र में यह काल अनेक नवीनताओं को लेकर आया। जो क्षेत्र, इससे पहले हिंसा और जनजातीय संघर्षों से जूझ रहा था, उसे लोग प्यार से सात बहनों (सेवन सिस्टर्स) के नाम से जानने-पुकारने लगे ।
जनजातियों की समस्याओं को समाप्त करने के लिए इंदिरा गांधी की मार्ग-निर्देशक नीति ने सामयिक व्यवस्था को ऐसे समय अनेक प्रमुख बिंदु प्रदान किए जबकि देश के विभिन्न भागों में नक्सलवादियों की हिंसक कार्रवाइयां गंभीर चुनौतियां पैदा कर रही थीं।
इसी तरह उनका मुख्य ध्यान देश के अन्य भागों में जनजातीय समाजों के संपन्न लोगों की ओर भी गया। नवें दशक के अंतिम वर्षों के दौरान जनजातीय मामलों के मंत्रालय का सृजन उनकी दूरदर्शिता का एक निश्चित संकेत है । यह मंत्रालय भारतीय समाज के सबसे कम सुविधा प्राप्त वर्ग अनुसूचित जनजाति के समेकित सामाजिक-आर्थिक विकास की ओर और अधिक ध्यान केन्द्रित करने के उद्देश्य से समन्वित और योजनाबद्ध तरीके से कायम किया गया था
इंदिरा गांधी ने जनजातियों के शिक्षा को उचित रूप से प्राथमिकता दी थी । इस तथ्य के मद्देनजर तो यह और भी अधिक सराहनीय था कि उन्होंने पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय (एनईएचयू)की स्थापना में व्यक्तिगत पहल की । इस विश्वविद्यालय का मुख्यालय मेघालय की राजधानी शिलांग में है । दशकों से यह विश्वविद्यालय मिजोरम, मेघालय और नगालैंड तीनों राज्यों में शिक्षा का प्रसार कर रहा है । श्रीमती गांधी की राय थी कि सोद्देश्य शिक्षा से आदिवासियों को यह समझने में मदद मिलेगी कि व्यक्तिगत लाभ के लिए क्या चीज़ आवश्यक है ।
इदिंरा जी परंपरा और संस्कृति के महत्त्व को भी जानती थी तथा उनका मानना था कि अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा से लोग बहुत सी बातें सीखेंगे । उन्होंने हमेशा ऐसे आधुनिक भारत का सपना देखा जहां विकास की समग्र परिदृश्य में जनजातियों की पर्याप्त भूमिका सुनिश्चित की जा सके । वे कभी नहीं चाहती थीं कि जनजातियां अपनी सरलता और सांस्कृतिक विरासत का परित्याग कर दें ।
नगालैंड के पूर्व मुख्यमंत्री और हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल होकिशे सेमा जैसे उनके दौर के अनेक जनजातीय नेताओं के अनुसार इंदिराजी ने न सिर्फ जनजातीय संस्कृति और उनके जीने के ढंग में विशेष दिलचस्पी ली बल्कि उनसे प्रेरणा भी ली ।
इंदिरा गांधी ने जनजातियों के सपने साकार करने के लिए उन्हें बेहतर जगत की दृष्टि और दिशा प्रदान की । – रईसा मलिक