पश्चिम बंगाल भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित कई मंत्री और प्रमुख नेता कोरोना संक्रमण के बावजूद जन सभायें और रैलियां कर रहे हैं। साथ ही भाजपा कार्यकर्ता, आरएसएस के स्वयंसेवक एवं उसके अनुषांगिक संगठनों के सदस्य और दलबदल कर भाजपा में आये राजनेता और कार्यकर्ता पूरे राज्य में फैल कर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी राज्य का दौरा कर चुके हैें। नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयन्ती के उपलक्ष्य में आयोजित भव्य समारोह में उन्होंने ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वासÓ नारे के साथ अल्पसंख्यकों को भी साधने का प्रयास किया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी पूरा जोर लगा रही हैं और दलबदल के बावजूद अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाये रखने का यत्न कर रही हैं।
केन्द्र में सत्ता में आने के साथ ही भाजपा नेता पश्चिम बंगाल पर कब्जा जमाने की योजना बनाने लगे थे। चूंकि बंगाल विभाजन का दंश झेल चुका था इसलिए भारत में आये भूभाग में हिन्दु्रत्व की भावना वैसे ही प्रबल थी। भाजपा के जनक भारतीय जनसंघ की स्थापना भी एक बंगाली विद्वान नेता डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने की थी। उनकी शहादत का पूरे देश में काफी प्रभाव पड़ा था। लेकिन बंगाल में राजनीतिक चेतना अधिक होने के कारण राष्ट्रीयता और एकता की भावना भी बलवती थी।
पश्चिम बंगाल में पहले कांग्रेस का वर्चस्व रहा। लेकिन उसके साथ ही कम्युनिस्ट पनपे। नक्सलवादी आंदोलन भी बंगाल से ही शुरू हुआ, जो पूरे देश के कई क्षेत्रों, विशेषकर बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा तथा महाराष्ट्र के कुछ भाग में अभी भी जारी है। यद्यपि यह अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है्र, फिर भी सरकारों की सशस्त्र कार्यवाई के बावजूद अपना वजूद बनाये हुए है।
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के बाद ज्योति बसु के नेतृत्व में वामपंथी सत्ता में आये, जिन्होंने कोई 34 वर्ष शासन किया। ममता बनर्जी, जिन्होंने कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस गठित कर ली थी, कांग्रेस को साथ लेकर वामपंथी दुर्ग ध्ध्वस्त कर दिया था। ममता बनर्जी का यह दूसरा कार्यकाल है। इस बीच आपसी प्रतिस्पर्धा और निजी स्वार्थों को लेकर तृणमूल कांग्रेस में मतभेद उभरने लगे। केन्द्र में सत्ता में आने के साथ भाजपा ने अपनी पैठ बढ़ाई। इसमें उसने आरएसएस तथा अनुषांगिक संगठनों, जेसे विश्व हिन्दू परिषद, विद्यार्थी परिषद, आदिवासी संघ के साथ साधु-संतों का भी सहारा लिया। वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में उसने 291 क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारे, जिनमें से केवल तीन सफल हुये। लेकिन ममता बनर्जी की बेबाकी और केन्द्र सरकार की रीति-नीति की खुली आलोचना से क्षुब्ध भाजपा नेताओं ने अपना अभियान जारी रखा और उसे तेज करने के लिए अन्य राज्यों से कार्यकर्ता बुलाये। इसी बीच सारदा ग्रुप वित्तीय घोटाला, नारद स्टिंग ऑपारेशन, बिगड़ती न्याय-व्यवस्था जैसे मुद्दे उछले। चुनाव के दौरान ही कोलाकाता फ्लाईओवर हादसा हुआ। उधर केन्द्र सरकार ने भी कोरोना संक्रमण रोकने तथा विकास कार्यों के लिए आवश्यक सहायता यथासमय नहीं की। इसका परिणाम यह हुआ कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 42 में से 18 सीटें मिलीं।
जाहिर है, इससे भाजपा नेताओं का उत्साह बढ़ा और ममता बनर्जी से रुष्ट तृणमूल नेताओं को भी अपना असंतोष व्यक्त करने का अवसर मिला। बताया जाता है कि भतीजे अभिषेक बनर्जी और चुनाव सलाहकार प्रशांत किशोर को तरजीह दिये जाने से भी शुभेन्दु अधिकारी, दिपाली विश्वास तथा सुनील बंसल जैसे नेता ममता बनर्जी से अप्रसन्न थे। भाजपा के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अमित शाह की रैली के दोरान इन्होंने भाजपा की सदस्यता ले ली। बाद में एक और मंत्री अरिंदम भट्टाचार्य भाजपा में चले गये। शु्रभेन्दु अधिकारी के भाजपा में जाने से ममता बनर्जी क्रुद्ध हो गईं और उन्होंने नंदीगांव की रैली में नंदीगांव से चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी। नंदीगांव शुभेन्दु अधिकारी का चुनाव क्षेत्र है, जहां से वह तीन बार जीत चुके हैं। उनका प्रभाव नंदीगांव तक ही नहीं आसपास के कई क्षेत्रों में भी बताया जाता है।
पश्चिम बंगाल इस समय देश का सबसे बड़ा चुनावी अखाड़ा बना हुआ है। यहां उत्तेजक श्ब्दों या व्यंग्य बाणों से ही नहीं, लाठी-तलवारों और बम से भी मुकाबला किया जा रहा है। पिछले दो वर्षों में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के कई कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं या गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं। रैलियों और सभाओं में उत्तेजक नारे लगाये जाते हैं और एक-दूसरे को धमकियां भी दी जाती हैं। अभी हाल ही में कोलकाता में हुए तृणमूल कांग्रेस के शांति मार्च में भी गोली मारो का नारा लगाया गया। यह नारा सबसे पहले गत वर्ष 2 मार्च को हुई अमित शाह की रैली में भी लगाया गया था।
भाजपा चुनाव अभियान की कमान उसके राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय संभाले हुए हैं। उनके मार्गदर्शन में तैयार की गई रणनीति के अंतर्गत पूरे राज्य को पांच संभागों में बांटा गया है, जिनका प्रभारी पांच प्रमुख नेताओं को सौंपा गया है। इनके साथ मंत्रियों तथा पदाधिकारियों को भी सघन प्रचार की जिम्मेदारी दी गई है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, केन्द्रीय तथा प्रादेशिक मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की सक्रियता बढ़ती जा रहा है। आगामी 5 फरवरी से रथयात्रा शुरू की जा रही है, जो सभी विधानसभा क्षेत्रों में होगी। इसे बदलाव यात्रा बताया जा रहा है। इसका शुभारंभ राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा करेंगे। इसी बीच देश के दूसरे भागों से भी कार्यकर्ता बुलाये जा रहे हैं ताकि वे गैर-बांग्ला भाषी लोगों को उनपकी भाषा में ही बात कर सकें। मतदान केन्द्रों की व्यवस्था के लिए भी कार्यकर्ताओं का चयन किया जा रहा है, जो अभी से निर्धारित क्षेत्रों में मतदाताओं से जीवन्त सम्पर्क करेंगे। अपने कार्यकर्ताओं, साधनों तथा हिन्दुत्ववादी विचारधारा के बल पर भाजपा नेताओं को विश्वास है कि वे ममता बनर्जी को अपदस्थ कर सकेंगे।
भाजपा के बढ़ते प्रभाव से ममता बनर्जी परेशान हैं। उन्हें कार्यकर्ताओं तथा साधनों की अपेक्षाकृत कमी, दलबदल, असद उद्दीन आवैसी, पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा, अपने कुछ समर्थकों के विभिन्न मामलों में घेरे जाने, कोरोना संक्रमण तथा अत्याधिक वर्षा, बाढ़ और तूफान से प्रभावित लोगों की मदद के लिए आवश्यक धन की कमी और केन्द्र के कथित असहयोग जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। फिर भी वे पूरे दमखम से संघर्ष कर रही हैं, कतिपय राजनीतिक सूत्रों के अनुसार वे चाहती हैं कि कांग्रेस और वामपंथी इस चुनाव में उनका साथ दें तो भाजपा को 30-40 से अधिक सीटें नहीं मिल पायेंगी।
चुनाव में अभी कुछ समय है। इस बीच राजनीति कोई भी करवट ले सकती है। लेकिन नफरत और हिंसा के माहौल में जहां प्रतिस्पर्धी नेता बदले की भावना से वशीभूत होकर किसी भी हद तक जा रहे हों, शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव की संभावना कम ही दिखती है।
– बालमुकुन्द भारती, पत्रकार
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