मध्यप्रदेश महिला आयोग की सदस्या सुश्री राजो मालवीय का महिलाओं को न्याय दिलाने और उन्हें सक्षम बनाने का कार्य आयोग की सदस्य बनने से बहुत पहले ही प्रारंभ हो चुका था। दुर्गा वाहिनी के विभिन्न पदों पर कार्य कर चुकीं राजो मालवीय एक प्रखर वक्ता के साथ ही ऊंचे विचार रखने वाली विचारक हैं। परंतु वह अपने आपको महिलाओं के लिए संघर्ष करने वाली एक साथी के रूप में ही मानती हैं। प्रस्तुत है रईसा महिला से उनकी बातचीत के कुछ अंश-
प्रश्न- आप कहां की रहने वाली हैं तथा आपके परिवार में कौन-कौन हैं?
उत्तर- मैं मूलत: सुहागपुर की रहने वाली हूँ, परंतु मेरा कार्यक्षेत्र अधिकांशत: भोपाल ही रहा है। मेरे परिवार में मेरी माता जी, चार बहने और दो भाई हैं।
प्रश्र. आपने कहां तक शिक्षा प्राप्त की है?
उत्तर- मैंने बॉटनी में एमएससी की है तथा एलएलबी प्रथम वर्ष भी मैंने उत्तीर्ण किया है, परंतु व्यस्तताओं के चलते मैं अपनी कानून की शिक्षा पूरी नहीं कर पाई।
प्रश्र. आप राजनीति में कब आई?
उत्तर- सन् 1999 से मैं राजनीति में सक्रिय हूं। उस समय मुझे संघ परिवार एवं भाजपा संगठन की इच्छा पर भोपाल में भाजपा प्रत्याशी के रूप में महापौर पद के लिए चुनाव मैदान में उतरने के आदेश दिए गये। जिनका पालन करते हुए मैं चुनाव में उतरी।
प्रश्र- इससे पूर्व आप किस प्रकार की गतिविधियों में सम्मिलित रहीं?
उत्तर-मैं दुर्गा वाहिनी जो कि युवा हिन्दू बहनों का संगठन है की शहर अध्यक्ष से लेकर प्रांतीय अध्यक्ष तक के विभिन्न पदों पर कार्य कर चुकी हूं। इस संगठन द्वारा 1989 से महिला जागृति का कार्य शुरू किया। लगभग 8-9 हजार लड़कियों को सक्षम बनाया कि वह अपनी आत्मरक्षा कर सकें और देश के विकास में अपना सहयोग दे सकें।
प्रश्र-राजनीति में आप कैसे आईं और आपके प्रेरणा स्त्रोत कौन हैं?
उत्तर- मैं मानती हूँ कि प्रारब्ध भाग्य के कारण ही मैं राजनीति में आई। राजनीति में मैंने कई लोगों से प्रेरणा ली, विशेषकर प्रदेश और केंद्र में हमारे संगठन में बहुत ही विद्वान और प्रेरणादायी व्यक्तित्व मौजूद हैं, उनसे मैं कुछ न कुछ सीखती रही हूं। उमा दीदी से भी मुझे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। उन्होंने ही प्रदेश संगठन की सहमति से मुझे महिला आयोग का सदस्य बनाया। राजनीति में सर्वप्रथम उमा जी के सम्पर्क में आई।
प्रश्र- आपने महिलाओं के हित में क्या कार्य किये?
उत्तर- मैंने सदैव स्त्री को सशक्त करने के प्रयास किये। स्त्री में सही संस्कार होना बहुत आवश्यक है। सही संस्कार स्त्री को शक्ति मिलने पर सही दिशा में ले जाते हैं।
प्रश्र- भविष्य की क्या योजनाएं हैं?
उत्तर- मैं आज में जीती हूँ और भविष्य की चिंता नहीं करती, प्रारब्ध में जो लिखा है वह सामने आयेगा। मैंं भविष्य को ईश्वर पर छोड़ देती हूँ। हम तो करने के निमित्त बने हैं यर्थाथ में जीते हैं। जीवन का एक-एक पल सेवा करते हुए बिताना चाहती हूॅँ। मेरा मानना है कि जिसमें तेरी रज़ा है उसमें हम हैं राज़ी। बस यही इच्छा है कि लोगों की सेवा करते हुए उनके बीच ही मेरे प्राण निकलें।
प्रश्र- कोई ऐसी घटना जो आपको याद रह गई हो?
उत्तर- कई घटनाएं ऐसी हैं जिन्हें मैं भूल नहीं पाई हूँ। महापौर पद का चुनाव हारी तो लगा कि ईश्वर का यही निर्णय है । एक बार मेरे परिवार का वाहन दुुर्घटना ग्रस्त हो गया, गाड़ी की हालत देख कर कोई नहीं कह सकता था कि इस वाहन में कोई बचा होगा। परंतु ईश्वर की कृपा से मेरे परिवार वालों को मामूली खरोंच के अलावा कुछ नुकसान नहीं पहुंचा। तब मुझे उस दुर्घटना से कुछ दिनों पूर्व हुई एक घटना का स्मरण हो आया।
मैं एक दौरे से वापस लौट रही थी तो देखा कि सड़क पर एक घायल पड़ा हुआ है। वहां सैकड़ों वाहनों की कतार लगी हुई थी और भीड़ में से कोई साहस नहीं कर रहा था कि उसे उठा कर अस्पताल पहूंचाये। मैंने उस घायल को उठा कर उज्जैन के अस्पताल पहुंचाया। यदि समय पर उस व्यक्ति को अस्पताल नहीं पहुंचाया जाता तो उसका बचना मुश्किल था। मुझे लगता है कि मेरे इसी काम के कारण ईश्वर ने मेरे परिवार की रक्षा की।
प्रश्र- ऐसा कोई कार्य जो आपने सोचा हो और कर नहीं पाई हों?
उत्तर- ऐसा कोई कार्य ध्यान में नहीं आता जो मैंने सोचा हो, कर नहीं पाई हूँ।
प्रश्र- आप की उपब्धियां क्या रही हैं?
उत्तर- मैं अपनी उपलब्धियां याद नहीं रखती केवल सेवा भावना से कार्य करती रहती हूँ। एक लड़की हेमलता विश्वकर्मा नाम की मेरे पास आई। उसकी हालत बहुत खराब थी और बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। मैंने सुल्तानियां अस्पताल के अधीक्षक से कहा कि यह लड़की मुझे किसी भी हालत में जिंदा चाहिए। अंतत: वह बच गई आज उसे अपने सामने जि़ंदा खड़ा देख कर बहुत संतुष्टि होती है। लगता है कि ईश्वर ने मुझसे बहुत बड़ा काम ले लिया है। आयोग में आने वाली दुखियारी महिलाओं के आंसू पोंछ कर सुख की अनुभूति होती हेै।
प्रश्र- महिलाओं के लिए क्या संदेश है?
उत्तर- महिलाएं स्वयंसिद्धा बनें। स्वयं को पहचानना होगा। महिलाओं में अपार क्षमताएं और शक्ति होती है, उसे पहचानें और उसका जीवन में प्रयोग करें। समय के साथ जागरूक बनें। यदि स्त्री जागृत है तो समाज और देश दोनों जागृत हैं। बहुत से क्षेत्रों में हमारी कई बहनों ने महारत हासिल की है, उनको अपने क्षेत्र से हट कर दूसरे के क्षेत्र में दखल नहीं देना चाहिए।
विगत दिनों सानिया ने जो टिप्पणी की थी वह आपत्तिजनक है। हमारे देश की संस्कृति मैं ऐसी बातें करना तो दूर सोचना भी गलत हे। मेरा यह मानना है कि कोई भी धर्म इस प्रकार की बातों को मान्यता नहीं देता और न की कोई सभ्य समाज विवाह पूर्व संबंधों को जायज़ ठहराता है। इस प्रकार की टिप्पणियों से प्रतिष्ठा कम ही होती है। सानिया इस प्रकार के मामलों में न बोले और केवल अपने खेल पर ही ध्यान दें तो ठीक होगा।
(नवम्बर 2005 में सातवां फलक में प्रकाशित साक्षात्कार)