सन् 2000 में इर््टीवी से प्रसारित होने वाले कार्यक्रम गजल सरा के मेगा फाइनल में भाग लेकर मल्लिका-ए-$गजल का पुरस्कार जीतने वाली अलका निगम का नाम भोपाल ही नहीं वरन पूरे प्रदेश में किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। अपनी मखमली आवाज़ से श्रोताओं को झूमने के लिए मजबूर कर देने वाली अलका निगम सभी प्रकार के गीत एवं गजल गाने में महारत रखती है।
अलका निगम का जन्म भोपाल के जय प्रकाश कालिका प्रसाद निगम के यहां हुआ। अलका निगम ने केवल पांच साल की उम्र से ही अपनी मम्मी एवं पापा की गुनगुनाहट को सुन एवं उससे प्रेरित होकर गायन प्रारंभ किया। उनका मानना है कि ये गायकी मुझे ईश्वर द्वारा दिया गया अनमोल उपहार है जो धीरे-धीरे मेरे शौक और अब मेरे व्यवसाय में बदल गया है।
अलका निगम ने पांच साल की उम्र से ही स्टेज पर ग़ज़ल एवं गीत गाना शुरू कर दिया और श्रोताओं की वाहवाही लूटना शुरू कर दी थी। उनका कहना है कि श्रोताओं का प्रेम ही आज मुझे यहां तक लेकर आया है। वे बताती हैं कि आगे बढऩे में कठिनाईयाँ तो बहुत आती हें और मेरे जीवन में भी आई लेकिन में अपनी योग्यता और गायन से आगे बढ़ती ही गइ्र्र। भविष्य में भी मैं कठिनाईयों की परवाह किये बिना ही निरन्तर आगे बढ़ते रहता चाहूंगी। ये तभी सम्भव हें जब मेरे सुनने वालों का मुझे आर्शीवाद और प्रेम मिलता रहे।
अलका निगम गजल एवं गीत गानो के साथ ही साथ म्यूजि़क से सम्बन्धित किताबें पढऩे का शौक भी रखती हैं। गायकों में अलका निगम की सबसे पसंदीदा गायिका आशा भोंसले और मधुरानी गजल जी हैं। इनका आशीर्वाद और आगे सहयोग करने का आश्वासन भी अलका निगम को मिला है।
यह पूछने पर कि आज जबकि रीमिक्स गानों का दौर चल रहा है ऐसे दौर में आपने गजल ही गाना क्यों पसंद किया तो उन्होंने बताया कि गजल में जिन्दगी की सच्चाई है, गीत की आत्मा है, जान है। गजल सच्चे मन से गाना पड़ती है। तभी लोगों के दिल में उतरती है। अलका निगम ने आगे बताया कि आगे जीवन में कुछ अच्छा करके नाम कमाने की मेरी इच्छा है और मैं इसके लिए कोशिश भी जरूर करूंगी।
अलका निगम वैसे तो कई गायकी से सम्बन्धित कई प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी हे। किन्तु सन् 2000 में ईटीवी से प्रसारित होने वाले कार्यक्रम गजल सरा के मेगा फाइनल में भाग लेकर मल्ल्किा-ए-गलज का पुरस्कार जीता था। जिस गजल को गाकर उन्हें यह पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हुआ है वह है- दयार दिल की रात में चराग सा जला गया। मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक्ल तो दिखा गया।।
उन्हें लाख रूपये का नकद पुरस्कार भी दिया गया था। इसके साथ ही कई नेशनल एवार्ड भी ले चुकी हैं। अभी हाल ही में जबलपुर में रसिक बाल मग्र प्रीति सागर जी के हाथों से प्राप्त किया है। भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में आप अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर अपनी गजलों एवं गीतों तथा अपनी मधुर एवं सुरीली आवाज के जादू से लोगों के मन को मुग्ध किया है।
उन्होंने शास्त्रीय गीतों की शिक्षा सज्जन लाल भट्ट जी से ली और लाइट म्यूजि़क आपने उस्ताद सरवत हुसैन साहब से सीखा है। अलका निगम की गजल एवं गीतों का एक एलबम भी बाजार में आने वाला है जिसका नाम खुशबू हैं। इस एलबम में उनकी गजल मेरी आरजू मेरी हसरतें, कहीं टूट करके बिखर गईं भी शामिल है जिसे उन्होंने बहुत खूबी के साथ गाया है।
अलका निगम आज की उभरती हुई नई गायिकाओं को सन्देश देना चाहती हैं कि वे अच्छा गायें गाने के साथ ही साथ बड़ों का सम्मान भी करें। अपने से बड़ों से शिक्षा लें अच्छा संगीत अपनी आत्मा में उतारें और सबको अच्छा सुनाने की कोशिश करें। वे चाहती हें कि देश की प्रत्येक महिला अपने पैरों पर खड़्ी होने की कोशिश करें और अपने पैरों पर खडे होने के लिये किसी के सहारे का इन्तजार न करे और अपनी मेहनत एवं लगन से खुद तरक्की करें।

– रईसा मलिकं
सातवां फलक के अप्रैल 2006 में प्रकाशित