हिमयुग की संभावनाओं पर लंबे समय से शोध चलते रहे हैं और जिस प्रकार विश्व के अनेक क्षेत्रों की जलवायु मंे व्यापक परिवर्तन दिखायी पड़ने लगे हैं, वैज्ञानिक एक बार फिर विचार कर रहे हैं कि संभवतः ढाई लाख वर्षों के बाद पृथ्वी का वातावरण फिर एक बार दीर्घकालीन हिमयुग की दिशा में बढ़ रहा है। हालांकि अभी हिमयुग को प्रारम्भ होने में हजार से डेढ़ हजार वर्षों का समय बाकी है किन्तु इस बीच में ही लगातार बढ़ती ठंड से पृथ्वी का वातावरण इतनी तीव्र गति से बदल जायेगा कि तमाम ठंडे रक्त वाले प्राणी संभवतः हमेशा के लिये लुप्त हो जायेंगे। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार लगभग तीन-साढ़े तीन लाख वर्ष पूर्व ‘मैमथ’ नामक प्राणी टुंड्रा और साइबेरिया के इलाकों में बढ़ती ठंड मंे हमेशा के लिये जमकर खत्म हो गये थे।
विशालकाय ‘मैमथों’ को वर्तमान हाथियों का आदिपूर्वज माना जाता है और ऐसा विश्वास है कि मैमथों की संरचना बहुत कुछ गैंडों सरीखी मोटी खाल वाले भीमकाय प्राणियों की भी जिनकी नाक का आकार इतना लंबा था कि वह सामने लटकती हुई नजर आती थी, निश्चित रूप से वह प्राणी वर्तमान हाथियों के समान लंबी सूंड नहीं रखता था किन्तु उसकी सूंड का आकार तथा बनावट हाथियों के पूर्ववर्ती प्राणियों का प्रमाण देती है। वजन में कई हजार किलो वाले इन विशालकाय मैमथों का अचानक लुप्त हो जाना कई शताब्दियों तक जीव वैज्ञानिकों के लिये अबूझा रहस्य बना रहा था।
अब वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि लगभग चार के पांच लाख वर्ष पूर्व पृथ्वी के तल पर कोई ऐसी घटना अवश्य घटित हुई थी जिसके कारण मैमथ जैसे शक्तिशाली प्राणी भी लुप्त हो गये। तब पूरी पृथ्वी पर घने हरे जंगल थे तथा वर्तमान साइबेरिया तथा टुंड्रा जैसी ठंड कहीं नहीं थी। तब मैमथ पूरी दुनिया के हर हिस्से में आराम से विचरण करते थे। स्वभाव से शाकाहारी होने के कारण इन मैमथों को पर्याप्त मात्रा में भोजन प्राप्त हो जाता था तथा हजारों वर्षों के क्रमिक विकास के परिणामों ने मैमथ को पृथ्वीतल के सभी जीवित प्राणियों में सबसे विशाल शरीर का स्वामी बना दिया था। तब साइबेरिया और टुंड्रा के क्षेत्रों मंे बर्फ के मैदान नहीं थे बल्कि दूर-दूर तक फैले घने जंगल थे। इन्हीं जंगलों में मैमथ तथा अन्य प्राणी आराम से विचरण करते रहते थे। अन्य प्राणियों में वर्तमान घोड़ों के पूर्वज समझे जाने वाले इंक्वूस नामक प्राणी थे, भेड़ियों की पूर्वज समझी जाने वाली, लंबे कैनाइन दंतों वाली कैनिस-प्रजातियों के विकसित-अविकसित प्रतिनिद्दि थे, बिल्लियों और शेरों के पूर्वज समझे जाने वाले हिम तेंदुओं की प्रजातियां थीं और उस पूरे जंगल मंे इन्हीं प्राणियों का कब्जा था लेकिन अचानक वातावरण मंे ठंड बढ़ गयी और इतनी अधिक ठंड हो गयी कि वातावरण का तापमान शून्य से नीचे तक जा पहुंचा था। जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि उस काल में पूरी पृथ्वी के समुद्रों की ऊपरी सतह पर बर्फ जम चुकी थी और सारी वनस्पतियां घने शीतल कोहरे की मार से लगातार नष्ट हो रही थीं। यही काल हिमयुग कहलाता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि उस हिमयुग में पृथ्वी की सतह का सामान्य तापमान शून्य से साठ अंश नीचे तक चला गया होगा और कुछ स्थानों पर शून्य के आस-पास का तापमान भी बाकी रह गया था ये वही स्थान थे जहां पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती रहती थीं। इन स्थानों पर रहने वाले अधिकांश पौधे तथा जीव प्रजातियां जीवित रहे और आज भी विश्व के कुछ हिस्सों में प्रागैतिहासिक काल के जीव-जन्तु पाये जाते हैं जिनकी विचित्र संरचना तथा स्वभाव पृथ्वीतल पर पाये जाने वाले शेष प्राणियों से बिल्कुल अलग है। इनमंे कुछ सरीसृप, मकड़ियां, तथा कई प्रकार के पौधों की गिनती होती है जो शून्य से सौ अंश नीचे तापमान पर भी जीवित रहते हैं और अपना वंश संचालन करते रहते हैं। यूफोर्बिया कुल के कुछ पादपों में शून्य से कई अंश नीचे जाकर भी जीवित रहने की क्षमता देखी गयी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान की इतनी गिरावट की स्थिति में भी कुछ पौधों तथा प्राणियों का जीवित रहना तथा जीवित रहकर सारी शारीरिक क्रियाओं का संचालन करते रहना इन जीव प्रजातियों मंे शीत के प्रति शारीरिक अनुकूलता दर्शाता है। सवाल इस बात का उठता है कि अंततः इन सारे प्राणियों मंे इतनी अनुकूलता का विकास क्यों हो गया होगा कि वे आज शून्य से कई अंश नीचे के वातावरण में भी जीवित रहते हैं तथा विकास करते हैं?
वैज्ञानिक इस प्रश्न के उत्तर में तमाम शोधों के द्वारा प्राप्त इस निष्कर्ष को घोषित करते हैं कि दरअसल कोई दीर्घकालीन शीतल वातावरण ही इतने सारे प्राणियों मंे शीत के प्रति इतनी प्रभावशाली अनूकूलन क्षमता उत्पन्न कर सकता है। आज भी बर्फ से ढके टुण्ड्रा प्रदेशों मंे तथा अंटार्कटिका महाद्वीप पर सील तथा वालरस जैसे विचित्र प्राणी पाये जाते हैं। इन प्राणियों की त्वचा विशिष्ट प्रकार की होती है तथा इनके भीतर प्रोटीनयुक्त चर्बी की मोटी तह पायी जाती है। सील तथा वालरस के शरीरों में पायी जाने वाली इस चर्बी के कारण ये प्राणी लगातार गर्म बने रहते हैं और यह चर्बी इन प्राणियों को शून्य से नीचे के तापमान पर एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच तो प्रदान करती ही है, साथ ही इस चर्बी की मोटी तह के कारण सील तथा वालरस कई महीनों तक बिना कुछ खाये-पिये आराम से रह सकते हैं।
तो इन तथ्यों से पता चलता है कि कुछ लाख वर्ष पूर्व कभी यह पूरी पृथ्वी बर्फ से पट गयी थी। सारे समुद्र जम गये थे। जीवन ठप्प हो गया था। केवल कुछ ही प्राणी बचे जिन्होंने इस पृथ्वी पर नये सिरे से जीवन प्रारम्भ किया होगा लेकिन फिर भी एक रहस्य बरकरार है कि आखिर पृथ्वी पर हिमयुग आने के कारण क्या रहे होंगे। वैज्ञानिक इसके पीछे किसी बड़ी खगोलीय दुर्घटना को ही कारण मानते हैं। कुछ वैज्ञानिक इसके पीछे किसी खगोलीय पिंड का पृथ्वी से टकराना भी मानते हैं। हिमयुग की वास्तविकता को ये संभावनाएं रोचकता प्रदान करती हैं।