नीम करौली बाबा अन्न में ब्रह्मï व जीव में ईश्वर की उपस्थिति होने की बात करते थे। वे कहते थे कि पत्नी के लिए पति की सेवा, पुत्र के लिए माता-पिता की सेवा और हर समय प्राणीमात्र की सेवा ही भक्ति मार्ग है…
यह भारत की आजादी से भी काफी पहले की बात है। एक बेटिकट यात्री को प्रथम श्रेणी में यात्रा करते पाकर ब्रिटिश टिकट कलेक्टर ने ट्रेन से उतार दिया। साधारण सा दिखने वाला वह यात्री स्टेशन के निकट ही स्थित एक वृक्ष के नीचे आसन लगाकर ध्यानमग्र हो गया, लेकिन यह क्या उसके ट्रेन से उतरने के बाद ट्रेन वहां से हिली ही नहीं।
ट्रेन चालक ने ट्रेन को चलाने का हरसंभव प्रयास किया और हर तरह से जांच भी कर ली, लेकिन न तो ट्रेन में गड़बड़ी का पता चला और न ही वह ट्रेन चली। यहां तक कि ट्रेन में वाष्प भी पूरी तरह से बन रहा था और उसकी शक्ति में भी कोई कमी नहीं आई थी। चालक परेशान हो गए।
उधर ट्रेन में बैठे भारतीय यात्रियों द्वारा बार -बार यह कहने पर कि चूंकि टिकट कलेक्टर ने एक साधु को ट्रेन से उतार दिया है, अत: चाहे जितनी कोशिश कर लो, ट्रेन नहीं चलेगी। पहले तो टिकट कलेक्टर काफी देर तक गुस्साता रहा, मगर दो घंटे बाद भी जब ट्रेन नहीं चली, तो उसने हार मान ली तथा वह उस साधु को ट्रेन में बैठाने पर राजी हो गया। फिर वह उनके पास गया और ट्रेन में आने का आग्रह किया।
आश्चर्यजनक रूप से उनके ट्रेन में सवार होते ही ट्रेन चल पड़ी। ये साधु और कोई नहीं बल्कि बाबा लक्ष्मणदास थे, जो इस घटना के बाद नीम करौली बाबा के नाम से विख्यात हो गए। बाबा के भक्तों तथा स्थानीय लोगों का मानना है कि बाबा हनुमानजी के अवतार थे। वे वर्ष 1973 में ब्रह्मïलीन हुए, लेकिन आज भी उनके आश्रम में निरंतर ‘हनुमान चालीसाÓ का पाठ चलता रहता है।
उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल के. एम. मुंशी, जो बाबा के परम भक्तों में शामिल रहे, ने उनका वर्णन इस प्रकार किया है-नीम करौली बाबा हमेशा एक कंबल लपेटे घूमा करते हैं। कोई नहीं जानता कि वे कहां से आते हैं और कहां चले जाते हैं। कोई उनका नाम भी नहीं जानता।
श्रीलंका में भारत के उप-उच्चायुक्त रहे डॉ. वीरेंद्र शर्मा कहते हैं कि महाराजजी कौन थे, कौन हैं उसकी केवल अनुभूति ही की जा सकती है अंतरमन में। उनकी लीलाएं अलग-अलग व्यक्तियों के निजी अनुभव हैं। वे आध्यात्मिक महामानव थे। अत: उनका वास्तविक परिचय दे सकना मानवीय सामथ्र्य के बाहर है।
उनके विषय में स्वामी रामानंद ने कहा था-वे एक उच्चकोटि के महात्मा हैं। इस संसार में वे अपना पार्थिव शरीर लेकर विचरण अवश्य कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अपने चारों ओर के वातावरण का भान बिल्कुल नहीं है। वे परमहंस की स्थिति में हैं।
बाबा के आश्रम के सामने ही स्थित एक छोटे से रेस्टोरेंट का मालिक उनके विषय में कहता है कि आज से लगभग 50 साल या उससे भी पहले की बात है। तब मेरे पिताजी युवा थे। एक रात जब वे घर लौट रहे थे तो देखा कि सड़क के किनारे पड़े बेंच पर कोई बैठा है। तब बाबा को यहां कोई जानता नहीं था।
मेरे पिताजी भी उन्हें नहीं जानते थे, लेकिन उनके आश्चर्य का तब कोई ठिकाना नहीं रहा, जब बेंच पर बैठे व्यक्ति ने न सिर्फ उनका नाम लेकर उन्हें पुकारा, बल्कि यह भी कहा कि इतनी रात को तुम फलां स्थान से आ रहे हो। मेरे पिताजी को सहसा यह विश्वास नहीं हुआ कि एक अनजान व्यक्ति उनका नाम कैसे जान सकता है।
मेरे पिताजी अभी यह सोच ही रहे थे कि उस व्यक्ति ने कहा कि आजकल तुम कोर्ट में चल रहे किसी मुकदमे की वजह से काफी परेशान हो, लेकिन चिंता मत करो, फैसला तुम्हारे ही पक्ष में होगा। तब पिताजी को लगा कि यह कोई साधारण आदमी नहीं, बल्कि कोई पुण्यात्मा हैं।
अत: उन्होंने बाबा से घर चलने का निवेदन किया और उन्होंने इसे स्वीकार भी किया, मगर हमारे घर वे इस घटना के करीब दस वर्ष बाद पधारे। यहां वे कुछ ही दिन ठहरे और हमें आशीर्वाद दिया। आज हमारे पास जो भी कुछ है, वह उन्हीं की कृपा से है। बाबा के एक अमेरिकी शिष्य ने उन पर एक पुस्तक ‘मिराकल ऑफ लवÓ लिखी है।
इस पुस्तक में बाबा के दुनिया भर में फैले शिष्यों द्वारा उनके बारे में दी गई जानकारियों, व्यक्तिगत अनुभवों, चमत्कारी कार्यों आदि को संकलित किया गया है। इसमें कहा गया है कि बाबा अपने शरीर पर धोती लपेटे रहते थे और कंधे पर एक कंबल भी रखते थे। वे अपने आसपास के लोगों, श्रद्धालुओं आदि को बेहद प्यार और आदर देते थे। वे सदैव एक स्थान से दूसरे स्थान तक भ्रमण करते रहते थे।
उन्होंने जीवन में अनेक स्थानों की यात्राएं कीं और जहां भी गए लोगों को यही शिक्षा दी कि सभी जीवों से प्रेम करो। वे अन्न में ब्रह्मï व जीव में ईश्वर की उपस्थिति होने की बात करते थे। वे कहते थे कि पत्नी के लिए पति की सेवा, पुत्र के लिए माता-पिता की सेवा और हर समय प्राणीमात्र की सेवा ही भक्ति मार्ग है।
यही वजह है कि उनके भक्तों में सड़क के किनारे चाय तथा फल-सब्जी आदि बेचने वालों से लेकर, हिंदी तथा अन्य भाषाओं के मूर्धन्य विद्वान, हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, विभिन्न देशों के राजदूत व उच्चायुक्त, राजनेता, न्यायाधीश, सेना तथा पुलिस के अधिकारी आदि तक शामिल हैं।
उनके अनेक विदेशी शिष्य यह जानते थे कि बाबा के दिल में उनके लिए अथाह प्रेम है, जबकि बाबा की बातों को समझने के लिए उन्हें एक अनुवादक की जरूरत पड़ती थी। डॉ. शर्मा कहते हैं-नीम करौली बाबा के आश्रम में जाकर आप अद्भुत शांति का अनुभव करते हैं। वहां का वातावरण आनंददायक है।
वर्तमान में इस आश्रम की देखरेख ‘श्री मांÓ करती हैं। आश्रम से कुछ ही दूरी पर स्थित यह पहाड़ी एक रक्षक की तरह प्रतीत होती है, जो वहां रहने वालों को सूर्य की तीखी किरणों से बचाती है। यहां पहुंचने के लिए आपको काठगोदाम आना पड़ेगा, जो लगभग भारत के प्रत्येक शहर से रेल तथा सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।
काठगोदाम से लगभग दो घंटे की बस यात्रा करके आप ‘कैंचीÓ पहुंचते हैं, जहां बाबा का प्रसिद्ध आश्रम है। यह स्थान पर्यटन की दृष्टिï से मशहूर नैनीताल से भी ज्यादा दूर नहीं है। आश्रम से दो से तीन घंटे की बस यात्रा करके आप नैनीताल पहुंच सकते हैं।