नज़ीर अकबराबादी हिंदी के आधुनिक काल का शुभारम्भ करने वाले आधुनिक कवियोंï मेंï से हैï। विचारोंï, भावोïं और भाषा की दृष्टिï से वे आधुनिक कवियोïं की श्रेणी मेंï विशिष्टï स्थान रखते हैïं। वे हिंदी उर्दू साहित्याकाश के देदीप्यमान नक्षत्र हैïं। उनकी लोकवादी कविताओंï में देश प्रेम और जनजीवन की सुरभि सन्निहित है। उनकी लिखी ‘पेटÓ, ‘रोटियांÓ, ‘पैसाÓ, ‘मुफलिसीÓ, ‘आदमीनामाÓ, ‘बंजारानामाÓ, ‘मौत की फिलासफीÓ, ‘हंसनामाÓ आदि रचनाएं बीसवीï सदी के हिंदी कवियोïं की काव्य चेतना से पीछे नहीï हैïं।
नज़ीर अकबराबादी भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र (सन् 1850-1885) से पूर्व हिंदी में रीतिकाल की सीमा में आते हंैï। यूरोप के प्रसिद्ध विद्वान डा.फेलन का कथन है- ”नज़ीर एक ऐसे कवि हैï जो यूरोपियन की दृष्टिï मेंï कवि कहे जाने के अधिकारी हैïं, उनकी सब कविताओïं में आम लोगोïं के दिलोï मेंï राह की है। लोग उनकी कविताओंï को सड़कोंï, गलियोïं और खेतोंï मेïं गाते फिरते हैंï। वह ऐसे कवि हैïं जिन्होïंने बच्चोंï और माँ की ममता पर कविताएं लिखी हैंï और दुखी लोगोंï के साथ हमदर्दी दिखाई है। वह स्वतंत्र प्रकृति के व्यक्ति थे और भाग्य-दुर्भाग्य के बीच भेद नहींï करते।ÓÓ
कविवर नज़ीर अकबराबादी के जन्म के सम्बन्ध मेंï विभिन्न मत हैïं, लेकिन प्राय: उनका जन्म 12 जून 1735 को दिल्ली मेंï माना गया है। उनके पिता का नाम मोहम्मद फारुक था। नज़ीर अपनी माँ और दादी के साथ आगरा मेïं रहने लगे। उनका बचपन खेलकूद मेंï मौजमस्ती भरा रहा। किशोरावस्था मेंï पठन-पाठन का कार्य भी निर्बाध था लेकिन शीघ्र ही वे अपनी वाणी और कलम से लोगोïं के प्रिय पात्र बन गए। सरल स्वभाव के नज़ीर जब घर से निकलते तो लोग रास्ता रोक खड़े हो जाते और कहते कि पहले कविता सुनाएं तब आगे जाने देंïगे नज़ीर वहींï बैठकर घंटों कविताएं सुनाते। नज़ीर मेंï ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा और लोकजीवन को आत्मसात करने की अदभुत क्षमता थी। उनके उर्दू काव्य संग्रह-कुल्लियाते नज़ीर, चमने नज़ीर, दीवाने नज़ीर अकबराबादी, गुलज़ारे नज़ीर और हिंदी काव्य संग्रह, अशआर-ए-नज़ीर, नज़ीर के शेर, दीवान-ए-नज़ीर, नज़ीर बानी, महाकवि नज़ीर, नज़ीर काव्य संग्रह, कविवर नज़ीर आदि प्रमुख हैï। सभी धर्मों के प्रति उनमेंï श्रद्धा भाव था।
मानव धर्म की स्थापना में नज़ीर की रचनाएं सहायक सिद्ध हुईं। उन्होïंने खुदा की बातेंï, दुनिया के तमाशे, बंजारानामा आदि आध्यात्मिक अनुभव की उत्कृष्टï कविताओïं की रचना की। भारतीय जनमानस मेंï उनके मानव प्रेम का आध्यात्मिक दर्शन सदैव जीवित रहेगा।
– डॉ.राघवेन्द्र शु1ल