माँ शब्द हर व्यक्ति के मन को छू जाता है, माँ शब्द कानों में पड़ते ही मन प्रसन्न हो जाता है, माँ सुनते ही मनुष्य प्रफुल्लित हो उठता है, उसे लगता है जैसे कानों में किसी ने रस घोल दिया हो मन में एक अजीब सी खुशी का संचार होने लगता है उदास व्यक्ति जो अपने जीवन से निराश हो जाता जिसे जीवन में आशा की कहीं कोई किरन दिखाई नहीं देती, जब वह बिल्कुल हताश होकर अर्थात् हारकर बैठ जाता है तब माँ शब्द ही उसके मन में एक नई ऊर्जा का संचार करता है उसके मन में उत्साह की तरंगे दौडऩे लगती हैं। उसका जीवन आशावादी होने लगता है और अन्त में उसे माँ शब्द से इतनी प्रेरणा मिलती है कि वह जीवन में कुछ अच्छा करने अर्थात् अपने लक्ष्य को पाने के लिए दोबारा तैयार हो जाता है।
खासतौर से भारत में माँ शब्द का बड़ा महत्व है। भारत में जन्म देने वाली माँ को माँ तो मानते ही हैं उसे जन्म देने के कारण प्रेम, सम्मान आदि भावनाओं से सराबोर तो करते हुए जीवन भर उसके ऋणी होने का एहसास भी अपने मन में रखते हैं, और यही कारण है कि वे अपने जीवन पर्यन्त तक माँ को अपने पास, अपने साथ ही रखना चाहते हैं। लेकिन आज ज़रूर कुछ लोग अपनी गिरी हुई मानसिकता के कारण या कुछ लोग अपनी आर्थिक तंगी आदि कारणों से माँ को अपने साथ नहीं रख पाते हैं किन्तु जो लोग अपनी मजबूरीवश अगर माँ को अपने से दूर करते हैं तो वे अपने मन ही मन में इस मजबूरी को कोसते भी हैं और दुखी भी रहते हैं।
हमारे देश में माँ को देवी के रूप में भी देखा जाता है। पूरे भारत में ही नहीं दुनिया के किसी भी देश में रहने वाला हिन्दू हिन्दुस्तानी वर्ग के लोग उसकी पूजा-अर्चना करते हैं और कठिन परिस्थितियों में, दुविधा की स्थिति में, बुरे समय में देवी माँ की शरण में जाकर अपनी समस्याओं से भरे समय को भी आसानी से काट देते हैं। हमारे भारत देश में सिर्फ जन्म देने वाली माँ को ही माँ नहीं माना जाता बल्कि भारत की भूमि को भी माँ ही के रूप में देखते हैं और यही कारण है कि लाखों लोगों ने अपने जान पर खेलकर अपनी जानों की कुर्बानी देकर, अपनी जीवन को देश की जन्मभूमि के अर्पित कर, अर्थात् अपने जीवन का बलिदान देकर, प्राणों की आहूति भी देकर भी भारत देश को अंग्रेजों की गुलामी रूपी जंज़ीरों से आज़ाद कराया।
यह बात यहीं समाप्त नहीं होती है बात निकली है तो दूर तक जानी ही चाहिए । इसी कड़ी में एक और बहुत अच्छी बात मैं आप लोगों को बताना चाहती हूँ वैसे यह बात देश के सभी लोग जानते भी हैं और अधिकांश लोग इसे मानते भी हैं। हो सकता है जितना मैं जानती हूँ ये उससे भी कहीं ज्यादा और अच्छी तरह से जानते हों लेकिन मेरे मन मैं इक टीस सी उठी है तो उसे मैं आप लोगों तक पहुंचाना जरूर चाहती हूँ।
हमारे देश की सबसे अच्छी और बड़ी खासियत यह भी है कि दूसरे देशों में जिसे एक बे जु़बान जानवर माना जाता है जिसके साथ जानवरों जैसा सुलूक़ किया जाता है, जिसको कोई मान-सम्मान नहीं दिया जाता जिसे कोई दर्जा नहीं दिया जाता है, बल्कि उसे सिर्फ उपयोग की वस्तु समझ उसका उपयोग कर उसकी तरफ से मुंह मोड़ अपनी जि़म्मेदारियों से मुक्त हो जाते हंै। किन्तु भारत ही एक ऐसा देश है जहां उस बेजु़बान गाय को भी माँ का दर्जा दिया गया है, और आज भी गाय की माँ के रूप में पूजा-अर्चना की जाती है। यहां तक की कोई मिट्टी तो कोई गोबर में उसके रूप को उतार कर पूरे साजो सामान के साथ उसकी पूजा-अर्चना कर अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है। सच्चे मन और सच्ची श्रृद्वा से पूरी आस्था के साथ वह उसे अपने मन में बिठा कर भी रखता है और हर समय उसकी सेवा करने के लिए तत्पर भी रहता है वह स्वयं तो कठिनाईयों से जूझता है लेकिन गौमाता को कभी कोई दुख नहीं देता है, बल्कि सच्चे मन से उसकी सेवा ही करता है। यह सेवा भाव भी भारत की संस्कृति का ही एक हिस्सा भी है। यही कारण है कि यदि कोई भारतीय व्यक्ति विदेशों में लाखों-करोड़ों लोगों के बीच में भी रहता है तो वह भारत की संस्कृति और अपने आचरण से पहचान लिया जाता है कि यह भारतीय है। यह हम भारतवासियों के लिये बड़े ही गर्व की बात है।
लेकिन आज कलयुग में कुछ ऐसे भी कलयुगी लोग समाज में पैदा हो चुके हैं जो गाय को सिर्फ अपने लाभ के लिए ही उपयोग करना जानते हैं। वो गौशालाएं तो बना लेते हैं किन्तु ये गौशालाएं केवल दिखावे मात्र की होती हैं, क्योंकि गौ स्वामी के द्वारा इनके दूध को दोहने के बाद उन्हें सड़कों पर बेसहारा छोड़ दिया जाता है। जिन्हें आवारा पशु का नाम भी दिया जाता है।
आज आप कहीं भी चले जायें, चाहे शहर की गलियां या सड़कें हों अथवा गांव-कस्बे के रास्ते, हर जगह गायें आपको सड़क पर बैठी मिल जायेंगी। लोगों को द्वारा गाय को अपने इस्तेमाल के बाद लावारिस छोड़ देने की प्रवृत्ति के कारण ही आज सड़कों पर, राष्ट्रीय राजमार्गों पर गायें ही गायें दिखाई देती है। इन हालात में हम कह सकते हैं कि
सड़क मेरी माँ की।
सड़क मेरी माँ की इसलिए कि जहां देखो वहीं कभी सड़क के किनारे कभी सड़क के बीच में, कभी चलती फिरती तो कभी बैठी हुई गाय आपको नज़र आ ही जाती हैं।
सड़कों, रास्तों में बेतरतीब ढंग से बैठी हुई गायें अक्सर अपनी धुन में तेज गति से बाइक, चार पहिया गाडिय़ां चलाने वाले गायों से टकरा कर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं।
एक चीज और सामने आई है कि अक्सर राजमार्गों पर सड़क किनारे पडऩे वाले कस्बों, गावों में लोग सड़क किनारे खड़ी गाय या बछड़ों को हुस्कार कर, कभी उन पर पानी डालकर अचानक गाड़ी के आगे दौड़ा देते हैं और जरा सी चोट लगने या टकराने पर वाहन चालकों से दुव्र्यवहार करते हुए उनसे पैसे वसूलते हैं। ये हो गई दिन की बात रात के अंधेरे में तो यह दृश्य और भी ज्यादा भयानक हो जाता है। सड़कों के गड्ढों से बचता-बचाता आदमी निकल नहीं पाता की अचानक कभी पांच, कभी पच्चीस तो कभी पचास आदि की संख्या में गायों का झुंड बड़ी ही बेतरतीबी से सड़क के बीचो बीच में बैठा रहता है और आये दिन इनकी वजह से बहुत ही भयानक, दिल को दहला देने वाली दुर्घटनायें सामने आती हैं। और न जाने कितने अनजान और मासूम लोगों को इसका शिकार होना पड़ता है। किन्तु इस तरफ न तो सरकार का ही ध्यान जाता है न उन लोगों का जिन्होंने इनको पालने, इनकी सेवा करने और इनकी रक्षा करने का ठेका ले रखा ।
जहां आज एक तरफ गौरक्षा की बात की जा रही है, गौरक्षक गौरक्षा के नाम पर अल्पख्यकों एवं दलितों पर आये दिन अत्याचार कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ गौशाला चलाने वाले लोग गाय को पालते तो हैं, गौशाला में रखने का ढोंग तो करते हैं लेकिन वास्तविक तौर पर उनकी रक्षा ही नहीं कर रहे हैं बल्कि उन्हें उल्टा सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।
एक के बाद एक देश के अलग-अलग प्रदेशों में हो रहे अल्पसंख्यकों और दलितों के साथ अत्याचारों को देखकर भी अनदेखा कर देने वाली सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुप्पी तो तोड़ी, लेकिन भारत देश के इतिहास में आज तक किसी प्रधानमंत्री ने इतना अक्षम और निरीह होकर कभी ऐसा बयान नहीं दिया कि ‘दलितों अल्पसंख्यकों को मत मारो बल्कि मुझे गोली मार दोÓ भारत के आज तक के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ की कोई प्रधानमंत्री प्रशासनिक तौर पर इतना कमजोर हो गया, इतना बेबस हो गया कि वह देश में रहने वाले अल्पसंख्यकों और दलितों पर अत्याचार करने वाले गौरक्षकों के ऊपर कोई कड़ी कार्यवाही करवाने के आदेश न देकर प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार न कर पाने के कारण अपने समर्थकों और गौरक्षा का ढोंग करने वालों पर अंकुश न लगा पाने पर स्वयं गोली खाने का बयान देता है। ये तो वही बात हुई की ‘साहूकार से कहो जागते रहो और चोर से कहो की चोरी करोÓ। क्योंकि देश का प्रधानमंत्री इतना कमज़ोर होगा यह जनता मानने को तैयार ही नहीं है।
आज समय की मांग है कि सड़कों पर बेतरतीबी से छोड़े गये पशुओं की देखभाल के लिए सरकार कोई कदम उठाये और इन निरीह पशुओं को सड़कों पर, रास्तों पर आवारा घूमने के लिए छोड़ देने वाले पशु मालिकों के विरुद्ध भी कठोर दण्डात्मक कार्यवाही किये जाने की आवश्यकता है, ताकि इस प्रकार से सड़कों पर घूम रहे पशुओं से राहगीरों, वाहन चालकों एवं आम नागरिकों को हो रही परेशानी से मुक्ति मिल सके। गौशाला चलाने वालों पर भी नजर रखे जाने की आवश्यकता है कि वह वास्तव में गौशाला में गायों की देखभाल कर रहे हैं अथवा केवल कागजों पर ही गौशाला का संचालन दिखा कर सरकार से पैसा वसूल रहे हैं। आज देश के जागरुक नागरिकों, बुद्धिजीवियों को इस ओर ध्यान देकर व्यवस्था में सुधार लाने के प्रयास करना होंगे। क्योंकि आज कोई अन्य व्यक्ति इससे पीडि़त हो सकता है, लेकिन कल हमारा-आपका नंबर आ सकता है। यह सोचने और फिर इस पर ठोस कार्यवाही किये जाने की मांग उठाने का विषय है। ज़रा सोचें और इसको आम जनता की आवाज बनायें। – रईसा मलिक