अल्लामा इकबाल

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हज+रत अल्लामा सर शेख+ मोहम्मद इकबाल 22 फरवरी 1873 ई. को सियालकोट में पैदा हुए। वह कश्मीरी ब्राह्मण थे। उनके पूर्वज कश्मीर से पंजाब आये थे। उनके पिता एक अच्छे सूफी-संत थे और उनके यहां आने वाले दोस्तों की रूचि भी इसी प्रकार की थी। उनकी माता ने ’’मोहम्मद इकबाल‘‘ नाम रखा था। घर पर प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद कुछ समय तक आपने मकतब में पढ़ा, फिर स्कूल में प्रवेश किया।
’’इकबाल‘‘ स्काच मिशन कालेज स्यालकोट से एफ.ए. पास करके लाहौर आए। 1892 ई. में एम.ए. पास किया। ’’इकबाल‘‘ को आरंभ से ही शिक्षा, ज्ञान प्राप्त करने का शौक+ था। अतः आप 1905 ई. में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड गए। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से फलासफी (दर्शनशास्त्र) की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात म्यूनिख विश्वविद्यालय (जर्मनी) से फलासफी आफ ईरान पर एक उच्च श्रेणी का लेख लिख कर पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की और फिर बैरिस्टरी की परीक्षा भी पास की।
विदेश से वापस आने के पश्चात ’’इकबाल‘‘ ने कुछ समय तक प्रोफेसरी करके नौकरी से मुक्ति प्राप्त की और बैरेस्टरी शुरू कर दी। 1926 ई. से आपने राजनीति में भाग लेना शुरू किया। 1931 में दूसरी और 1932 में तीसरी गोल मेज+ कांफ्रेंसों में भाग लेने के लिए इंग्लैण्ड की यात्रा की।
1932 में आप को ’’सर‘‘ की उपाधि से सम्मानित किया गया। 1937 में ’’इकबाल‘‘ को डी.लिट. से सम्मानित डिग्री दी गई। 1885 में पूरब के सब से बड़े शायर और फिलासफर (चिंतक) ’’इकबाल‘‘ की रचनाआंंे के चर्चे भारत के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों और समुद्रों से गुज+र कर इंग्लैण्ड, जर्मनी और ईरान के साहित्यक वर्गों से प्रशंसा प्राप्त करने लगे। ’’इकबाल‘‘ ने भारत की अज+ादी और क्रांतिकारी भावनाओं को भी अपनी कविताओं का एक अंग बना लिया।
अल्लामा ’’इकबाल‘‘ ने जिन स्त्रोतों का लाभ उठाया है उन में सबसे पहले नाम मौलाना ’’रूमी‘‘ का है। ’’ग+ालिब‘‘ और जर्मन शायर ’’गोयटे‘‘ ने भी ’’इकबाल‘‘ को बहुत प्रभावित किया है। उनकी रचनाओं में प्रेम और बुद्धि का प्रयोग अधिकता से हुआ है।
अल्लामा ’’इकबाल‘‘ बहुत खूब व्यक्ति थे। कोमलता, सहनशीलता, फक+ीर दोस्ती और भलाई की भावना उनमें बहुत थी। वे एक रहम दिल और अमन पसंद इंसान थे।
उर्दू फारसी के इस प्रसिद्ध दार्शनिक शायर की मृत्यु 65 वर्ष की आयु में हुई और बादशाही मस्जिद लाहौर के बराबर में दफ्न हुए।