(पहली किश्त)
इस्लाम से पहले का अरब
अरब के लोग आमतौर से कबीलों की आजाद जिन्दगी गुजारते थे, उन में जिहालत आम थी। बुतपरस्ती इसी जिहालत का नाम थी। बुतपरस्ती ने उनके दिल व दिमाग पर कब्जा कर के उन्हें वहमपरस्त बना दिया था। दुनिया की हर चीज को, चाहे वह फायदा देने वाली हो या नुक्सान पहुंचाने वाली, उनके लिए माबूद बन गयी थी। इस तरह पत्थर पेड, पौधे, चांद, सूरज, पहाड, दरिया सभी की पूजा आम हो गयी थी। अरबों ने फरिश्तों, रूहों और गैर-महसूस ताकतों के बुत बनाने के अलावा अपने बुजुर्गों के बुत भी गढ रखे थे, जिन की वे पूजा करते थे।
अपनी इस बुतपरस्ती के बावजूद अरब बहरहाल इन बुतों को ही असल माबूद न मानते थे, बल्कि उनका एतकाद यह था कि उन बुजुर्गों की रूहानी ताकतों को, जिन के ये बुत, यादगार के तौर पर बनाए गए हैं, दुनिया में कुछ इस तरह के अख्तियार हासिल है कि वे हमारी हर जरूरत मुराद और दख्र्वास्त की सिफारिश खुदा के यहां कर सकते हैं और मरने के बाद की जिन्दगी के बारे में इन का ख्याल यह था कि उनकी रूहानी ताकतें खुदा से उन के गुनाहों को माफ कराएंगी।
मजहब के बिगाड और अकीदों की खराबी के साथ-साथ आपस की लडाई उनके यहां आम बात थी। मामूली-मामूली बातों पर लडाई ठन जाती और फिर उस का सिलसिला पीढियों तक चलता रहता। जुआ खेलना, शराब पीना इतना आम था कि शायद ही कोई कौम इस मामले में उनका मुकाबला कर सकती। शराब की तारीफ और उसके ताल्लुक से होने वाले बद-कारियों के जिक्र से उनकी शायरी भरी पडी थी। इसके अलावा सूद का चलन आम था। लूट-मार, चोरी, बे-मुरव्वती, खून-खराबा जिना और दूसरे गन्दे कामों ने उनको गोया इन्सानी शक्ल में जानवर बना दिया था। वे अपनी लडकियों को जिन्दा ही कब्रों में गाड दिया करते थे। बेशर्मी और बे-हयाई का यह हाल था कि मर्द और औरतें नंगे हो कर खाना-काबा का तवाफ करते थे और उसे एक मजहबी काम समझते थे, गरज मजहब, अकीदा, अख्लाक, रहन-सहन समाज वगैरह हर एतबार से अरब बुत परस्ती की इन्तिहा को पहुंच चुके थे।
दुनिया की हालत
इस्लाम से पहले अरब ही क्यों पूरी दुनिया उन बुराईयों का शिकार थी, जिन के शिकार अरब खुद थे।
ईरान और रूम उस वक्त की सब से बडी ताकतें थीं। रूम में ईसाई धर्म के मानने वाले ज्यादा थे, लेकिन अकीदे के लिहाज से वे अपने असल मजहब से बहुत दूर जा चुके थे। अख्लाकी एतबार से भी उन में पस्ती और गिरावट आ चुकी थी।
ईरान में तो सितारों की पूजा आम थी। इसके अलावा वहां के बादशाह, दरबारी सरदार अपने दर्जों के लिहाज से जनता के लिए खुदा ही समझे जाते थे। अख्लाकी पस्ती वहां भी आम थी।
खुद अपने देश भारत में देवताओं को तायदाद बढते-बढते 33 करोड तक पहुंच चुकी थी। बद-अख्लाकी आम बात थी। छूत-छात और भेद-भाव की वजह से इन्सान इन्सानों का खुदा बना बैठा था। पूरा समाज गिरावट का शिकार था। शराब, जुआ को मजहबी रंग दे दिया गया था।
गरज पूरी दुनिया इसी तरह बिगाड का शिकार थी।
जब हालात ऐसे हों, तो पूरी दुनिया में सुधार लाने के लिए एक ऐसे पैगम्बर को भेजा जाना जरूरी था, जो रहती दुनिया तक के लिए पूरी दुनिया की हिदायत का रास्ता बताता।
दुनिया के नक्शे पर नजर डालिए तो अरब ऐसी जगह वाकेअ है, जिसे एशिया, यूरोप और अफ्रीका का संगम कहा जा सकता है। गोया अरब पूरी दुनिया को खुश्की और तरी दोनों रास्तों से अपने दाएं और बाएं हाथ से मिलाकर एक कर रहा है, इसलिए अगर तमाम दुनिया की हिदायत के लिए एक मर्कज कायम करना हो और उस के लिए हम जगह चुनना चाहें, तो अरब ही का चुनाव सब से ज्यादा मुनासिब होगा।
अल्लाह ने इसी लिए पैगम्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अरब में पैदा किया और उनको अरबों के साथ-साथ पूरी दुनिया की हिदायत का काम सुपुर्द किया।
हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नबियों के सिलसिले की आखिरी कडी है।