तारीखे इस्लाम

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(चैथी किश्त)
इस्लाम की तब्लीग
हिरा के गार में पहली बह्य के नाजिल होने के बाद कुछ दिनों तक कोई बाह्य नहीं आयी। इसके बाद सूरः मुद्दस्सिर की शुरू की कुछ आयतें नाजिल हुईं-
या ऐ युहल मुद्दस्सिर 0 कूम फ अन्जिर 0 व रब्ब-क फकब्बिर 0 व सिया-ब-क फ तह्हिर0 वर्रूज-ज फह्जुर 0 ब ला तम्नुन तस्तक्सिर 0 व लिरब्बि-क फस्बिर0
तर्जुमा- ’ऐ कमली ओढने वाले! उठ (लोगों को गुमराही के अंजाम से) डरा और अपने रब की बुजुर्गी और बडाई बयान कर, और लिबास को पाक कर और बुतों से अलग रह और ज्यादा हासिल करने की नीयत से किसी के साथ एहसान मत कर और अपने रब के मामले में (तक्लीफ और मुसीबत पर) सब्र अख्तियार कर।‘
नुबूवत के काम पर लगाये जाने की यह शुरूआत थी। अब बाकायदा हुक्म मिल गया कि उठो और भटकी हुई इन्सानियत को उसकी कामियाबी और निजात का रास्ता दिखाओ और लोगों को खबरदार कर दो कि कामियाबी की राह सिर्फ एक ही है यानी एक अल्लाह की बंदगी‘‘ जो कोई इस राह को अपनाएगा, वही कामयाब होगा और जो कोई इसके अलावा कोई और राह अपनाए, उसे आखिरत के बुरे अंजाम से डराओ।
यहां से हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तब्लीगी जिन्दगी की शुरूआत होती है।
नुबूवत के काम पर लगा दिए जाने के बाद सबसे पहला मरहला यह था कि सिर्फ एक खुदा की बंदगी करने और बाकी सैकडों खुदाओं का इंकार कर देने की यानी इस्लाम की दावत दी जाए।
चुनांचे हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सबसे पहले उन लोगों को दावत व तब्लीग के लिए चुना जो आप से अब तक बहुत करीब रहे थे और जो आप के अख्लाक, आपकी सच्चाई और आप की ईमानदारी को खूब अच्छी तरह जानते-समझते थे। इन लोगों को आप की जात पर इतना यकीन था कि आपकी फरमायी हुई बात का आसानी से इंकार कर देना उनके लिए मुश्किल न था।
इन लोगों में सब से ज्यादा आप के अच्छे बुरे हर वक्त की साथी हजरत खदीजा थी। फिर इसके बाद हजरत अली, हजरत जैद और हजरत अबूवक्र रजि. थे। हजरत अली रजि. साए की तरह साथ रहने वाले आप के चचेरे भाई थे, हजरत जैद आपके चहेते गुलाम थे. हजरत अबूबक्र रजि. आपके साथ के हर वक्त के उठने-बैठने वाले दोस्त थे।
आपने जब इन लोगों तक अपना पैगाम पहुंचाया तो इन लोगों ने इस तरह मान लिया, जैसे इन्तिजार में हों कि आप कहें और वे ईमान लाएं।
हजरत बिलाल रजि. अम्र बिन अबसा, खालिद बिन साद बिन आस रजियल्लाहु अन्हुम भी कुछ दिनों के बाद ही मुसलमान हो गये।
हजरत अबुबक्र रजि. काफी मालदार थे, तिजारत करते थे, मक्का में उनकी बजाजी की दुकान भी थी। लोगों से उनका मेल-मिलाप था, उनका असर भी बहुत था, उनकी तब्लीग से हजरत उस्मान रजि., जफबैर, अब्दुर्रहमान बिन औफ, तलहा, साद बिन अबी वक्कास रजियल्लाहु अन्हुम मुसलमान हुए। अब्दुल्लाह बिन जर्राह हैं (जिन का लकब बाद में ’अमीनुल उम्मत‘ हुआ) अब्दुल असद बिन हिलाल, उस्मान बिन मजऊन, आमिर बिन फहैरा अज्दी, अबू हुजैफा बिन उत्बा, साइब बिन उस्मान और अर्कम मुसलमान हो गये।
औरतों में खदीजा रजि. उम्मूल मोमिनीन के बाद नबी सल्ल. के चचा अब्बास की बीवी उम्मुल रजि, अस्मा बिन्त अबूबक्र और उमर फारूक की बहन फातमा रजि. ने इस्लाम कुबूल किया।
खुफिया दावत
यह सब कुछ अभी छिप-छिप कर हो रहा था। पूरी सावधानी बरती जाती कि भरोसे के लोगों के अलावा बात कहीं बाहर न जाए। फिर खुल कर प्रचार करने का हुक्म आ गया।
चुनांचे नबी सल्ल. ने अल्लाह के हुक्म के मुताबिक आम तब्लीग का काम शुरू फरमा दिया गया।
आपने एक दिन सब को खाने पर जमा किया। जब सब लोग खाना खा चुके, तब सल्ल. ने फरमाया-’ऐ लोगो! मैं तुम सब के लिए दुनिया और आखिरत की भलाई लेकर आया हूं और मैं नहीं जानता कि अरब भर में कोई भी शख्स अपनी कौम के लिए इससे बेहतर और बडी कोई चीज लाया हो। मुझे अल्लाह तआला ने हुक्म दिया है कि मैं आप लोगों को उसकी ओर बुलाऊं। बताओ तुम में से कौन मेरा साथ देगा?
यह सुन कर सब के सब चुप रहे। हजरत अली रजि. ने उठ कर कहा ’’ऐ अल्लाह के रसूल! अगरचे मेरी आंखें आयी हुई हैं (उस वक्त आप की आंखें दुख रही थींं), गो मेरी टांगें पतली हैं और मैं सब से कम उम्र भी हूं फिर भी मैं आप का साथ दूंगा।‘ कुरैश के लिए यह मंजर भी अजीब था कि एक तेरह साल का नवउम्र, बिला कुछ सोचे समझे कितना बडा फैसला कर रहा है।
अब नबी सल्ल. का सब को समझाना मुस्तकिल काम था। इसके लिए हर मेले में जाते, हर एक गली-कूचे में जा-जा कर लोगों को तौहीद की खूबी बताते, बुतों-पत्थरों, पेडों की पूजा से रोकते। बेटियों को मार डालने से हटाते, जिना से मना करते, जुआ खेलने से लोगों को रोकते थे।
आप फरमाया करते थे कि अपने जिस्म को गन्दगी से, कपडों को मैल-कुचैल से, जफबान को गन्दी बातों से, दिल को झूठे अकीदों से पाक व साफ रखें, वायदे और इकरार की सख्त पाबंदी करें, लेन-देन में किसी से धोखादेही न करें, खुदा की जात को किसी कमी से, खराबी से, ऐब से पाक छोटे बडे सब खुदा के पैदा किए हुए हैं सब उसी के मुहताज हैं, दुआ का कुबूल करना, बीमार की सेहत व तन्दरूस्ती देना, मुरादें पूरी करना अल्लाह के अख्तियार में है। अल्लाह की मर्जी और हुक्म के बगैर कोई भी कुछ नहीं कर सकता। फरिश्ते और नबी भी उसके हुक्म के खिलाफ कुछ नहीं करते।
अरब में उकाज और बुऐना और जिलमजाज के मेले बहुत मशहूर थे। दूर-दूर से लोग वहां आया करते थे। नबी सल्ल. उन जगहों पर जाते और मेले में आए हुए लोगों की इस्लाम और तौहीद की दावत दिया करते थे।