भोपाल सेन्ट्रल जेल के अधीक्षक गोपाल ताम्रकार जेल और बंदियों के लिए नई-नई योजनाओं को लागू करवाने के लिए जाने जाते हैं, इसीलिए उनको नवाचारी कहा जाता है। प्रस्तुत है रईसा मलिक से उनकी बातचीत के अंश:-
प्र. आपका पूरा नाम क्या है?
उ. मेरा पूरा नाम गोपाल प्रसाद ताम्रकार है और वर्तमान में मैं केंद्रीय जेल, भोपााल के अधीक्षक पद का दायित्व संभाल रहा हूं।
प्र. आप कहां के रहने वाले हैं?
उ. मैं सागर का रहना वाला हूं। मेरे पिताजी का नाम चन्द्र बिहारी ताम्रकार है।
प्र. आप कब नौकरी में आये?
उ. मैने सागर विश्वविद्यालय से सन्ï 1985 में एमए समाज शास्त्र उत्तीर्ण किया। विश्वविद्यालय में सबसे अधिक अंक प्राप्त करके पहला स्थान प्राप्त किया। इतना ही नहीं सागर विश्वविद्यालय म.प्र. का सबसे पुराना विश्वविद्यालय है। मैं उन सौभाग्यशालियों में से हूं जिसने इसकी स्थापना सन्ï 1946 से सन्ï 1985 तक इस विषय में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर एक रिकार्ड बनाया।
प्र. इसके बाद आपने क्या किया?
उ. 85 से 88 तक सागर विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया। इस दौरान कुछ पुस्तकें भी लिखीं जो आज भी चलती हैं।
प्र. आपकी पुस्तकों के नाम क्या हैं?
उ. सामाजिक परिवर्तन, सामाजिक संरचना, सामाज में विज्ञान ये तीन किताबें लिखी हैं। मैंने एक शोध कार्य किया था जो उस समय की बड़ी ज्वलंत समस्या थी और समाज शास्त्र से जुड़ी हुई थी। वो एक किताब के रूप में प्रकाशित हुई। उसका नाम था, प्रेम विवाह एक समाज शास्त्रीय अध्ययन। यह इस विषय पर हिन्दुस्तान की पहली शोध पुस्तक थी। प्रेम विवाह को लेकर तो आज भी बहुत बातें होती हैं, फिल्में बनती हैं, कहानियां लिखी जाती हैं। लेकिन प्र्रेम विवाह विषय को लेकर कोई शोध कार्य नहीं किया गया था। सन्ï 1985 में वो मेरा पहला शोध कार्य और पुस्तक थी जिसे दिल्ली से प्रकाशित किया गया और कई भाषा में उसका अनुवाद भी हुआ और वह अन्तर्राष्टï्रीय स्तर पर यह पुस्तक बिकी।
प्र. जेल विभाग की सेवा में आप कब आये?
उ. अध्यापन कार्य के दौरान लोक सेवा आयोग से जेल अधीक्षक के पद निकले तो मैंने भी फार्म भरा और 7 फरवरी 1989 को मैंने जिला जेल रतलाम में जेल अधीक्षक के रूप मैंने पहला पदभार ग्रहण किया।
प्र. जेल विभाग की सेवा को ही आपने क्यों चुना?
उ. वो इसलिए क्योंकि इसका जो विज्ञापन निकला था उसमें लिखा था कि केवल समाजशास्त्र, अपराधशास्त्र और मनोविज्ञान में एमए पास प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण अभ्यार्थी ही इस पद के लिए आवेदन दें। मुझे लगा कि यह तो मेरे विषय से संबंधित नौकरी है और जेल विभाग के माध्यम से ही मैं अपने ज्ञान का सही उपयोग कर पाऊंगा।
प्र. महात्मा गांधी जी का वचन है कि ‘अपराध से घृणा करो अपराधी से नहींÓ इस विषय में आपका क्या मानना है?
उ. महात्मा गांधी का कहा गया यह अमर वाक्य पूरी तरह सत्य है और मैं भी इसे सत्य ही मानता हूँ क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपनी माँ की कोख से अपराधी पैदा नहीं होता और न कोई अधिकारी ही माँ की कोख से पैदा होता है। उसे जैसी परिस्थिति समाज में मिलती है वह तो वैसा ही बन जाता है।
मेरा मानना है कि व्यक्ति के अंदर जो भी बुराईयां आती हैं वह समाज और उसके आस-पास की परिस्थिति के कारण आती हैं इसलिए उन परिस्थिति को दूर करने का प्रयास करना चाहिये जिन कारण से वो अपराध जगत में संलग्र हुआ है। हम इसे ऐसा भी कह सकते हैं कि अपराधी को हमें एक बीमार व्यक्ति के रूप में देखना चाहिए जैसे उसे किसी बीमारी ने घेर लिया हो। जिस प्रकार अन्य बीमारियों के लिए हम चिकित्सकों के पास जाते हैं उसी प्रकार समाज शास्त्रियों, समाज सेवियों का भी दायित्व है कि वो अपराधियों को उचित मार्गदर्शन दें।
प्र. जेल सेवा के दौरान आपको कैदियों की तरफ से कभी कोई परेशानी तो नहीं आई?
उ. मेरे 17 वर्ष के कार्यकाल में कभी कोई परेशानी नहीं आई। म. प्र. के जेलों में अभी इतनी खराब परिस्थिति नहीं हुई है जिस प्रकार की स्थिति हम अखबारों और टीवी चैनलों के माध्यम से बिहार और यूपी की देखते और पढ़ते हैं। हमारे यहां प्रशासन बहुत संवेदनशील है, संवेदनशील से आशय है कि हम सुरक्षा के प्रति भी बहुत संवेदनशील हैं और बंदियों की जो मानवीय आवश्यकताएं हैं हम उनके प्रति भी संवेदनशील हैं। ऐसी कोई विषम परिस्थिति मेरे सामने नहीं आई। प्र. आप भोपाल जेल में कब से पदस्थ हैं?
उ. मैं एक साल तीन महीने से भोपाल केंद्रीय जेल में पदस्थ हूँ।
प्र. इससे पहले आप कहां-कहां पदस्थ रहे?
उ. सबसे पहले मैं रतलाम जिला जेल उसके बाद दुर्ग जिला जेल होशंगाबाद फिर पदोन्नत होकर केंद्रीय जेल सागर गया। इसके बाद मैं उज्जैन, केंद्रीय जेल सतना, केंद्रीय जेल ग्वालियर रहा, इसके बाद मैं केंद्रीय जेल भोपाल में 11 अप्रैल 2005 से हँू।
प्र. भोपाल जेल में आने के बाद आपने क्या-क्या सुधार किये?
उ. जबसे मैं इस पद पर आया हूँ ऐसा माना जाता है कि लोग मुझे नवाचारी कहते हैं। हमने बहुत कुछ नया विभाग में करने की कोशिशि की है और उसी का परिणाम रहा कि मध्यप्रदेश के पहले एवं हिन्दुस्तान से 14 सदस्यीय वरिष्ठï अधिकारियों का एक दल मानव अधिकार एवं जेल प्रबंधन विषय पर उच्च स्तरीय प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए
लन्दन भेजा गया था। इस योजना के तहत 14 उत्कृष्टï कार्य वाले अधिकारियों को चुना गया जिसमें म.प्र. से मैं अकेला था। इनमें आई जी जेल भी थे डीआईजी जेल भी थे। और सभी व्यक्ति मुझसे बड़े पदों पर भी थे और उम्र में भी बड़े थे सबसे छोटे पद और उम्र का अधिकारी मैं ही था। वहां लगभग एक महीने हम लोगों ने प्रशिक्षक के रूप में प्रशिक्षण लिया।
वहां से आने के बाद मैंने सम्पूर्णानन्द कारागार प्रशिक्षण संस्थान लखनऊ में रहकर 14 राज्यों के वरिष्ठï जेल अधिकारियों को जेल प्रबंधन एवं शोध प्रतिष्ठïान विषय पर प्रशिक्षण दिया। इन्हीं नवाचारों के कारण यह कार्य हमको भारत सरकार ने सौंपा।
प्र. ब्रिटेन और भारत की जेलों में आपने क्या अंतर देखा?
उ. वहां की जेलों और यहां की जेलों में हम केवल अंतर की बात करेंगे तो हम भ्रमित हो जाएंगे। हमें पहले यह देखना होगा कि ब्रिटेन और भारत में क्या अंतर है। ब्रिटेन में प्रति व्यक्ति आमदनी का औसत भारत के प्रति व्यक्ति औसत से काफी ऊंचा है। निश्चित रूप से जैसी समाज की स्थिति होती है वैसी ही स्थिति जेल की भी होती है, क्योंकि जेल समाज से अलग नहीं होता। लंदन में चूंकि ठंड बहुत पड़ती है तो वहां सभी लोग एयरकंडीशन में ही रहते हैं इसी कारण वहां की जेलें भी एयरकंडीशन होती हैं।
लेकिन हिन्दुस्तान की जेलें एयरकंडीशन नहीं होतीं। अगर कोई कहे कि हिन्दुस्तान की जेलें भी एयरकंडीशन होना चाहिए तो बेईमानी हो जाएगी। क्योंकि यहां का वातावरण नहीं कहता की जेलें एयर कंडीशन हों। लंदन की जेलों की सुविधाएं वहां के जीवन स्तर के हिसाब से कम हैं क्योंकि लंदन में जो सभ्य समाज के लोग रह रहे हैं उनके जीवन स्तर से जेल का जीवन स्तर ऊंचा नहीं है। वही ची$ज हमारे हिन्दुस्तान में भी है जेल में रहने वाले लोगों का जीवन स्तर बाहर की तुलना में रहने वाले लोगों की तुलना में कम ही होना चाहिए। क्योंकि अगर ऐसा नहीं होगा अर्थात्ï जेलों में जीवन स्तर अच्छा होगा तो अपराध एवं न्याय व्यवस्था के लिए उचित नहीं होगा।
प्र. लंदन के जेल में बंद अपराधियों की मानसिकता और भारत के जेल में बंद अपराधियों की मानसिकता में आपको क्या अंतर दिखाई दिया?
उ. भारत का सामाजिक ढांचा अलग है हमारे यहां रिश्तों को महत्व दिया जाता है। हम माता-पिता, भाई-बहन, या पड़ाेिसयों आदि का सम्मान करते हैं, उनकी बात मानते हैं किन्तु ब्रिटेन का समाज ऐसा नहीं है वो रिश्तों को महत्व नहीं देता। वहां पर अपराध जीवन को खुशहाल बनाने के लिए किए जाते हैं। लेकिन हमारे यहां अपराध अशिक्षा के कारण, बेरो$जगारी के कारण, रिश्तों के कारण घटित् होते हैं।
प्र.ऐसा ज्ञात हुआ है कि आपने शिक्षा के प्रचार-प्रसार को भी बहुत बढ़ावा दिया है?
उ. मैं शिक्षा को बहुत अहम मानता हूँ और चूंकि मेरा बैकग्राउंड भी शिक्षा से जुड़ा रहा है तो मैंने यहां आकर शिक्षा के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण कार्य किये। एक प्रयास यह किया कि जेल के अन्दर जो भी व्यक्ति आते वक्त अंगूठा लगाता है और अगर वो 15 दिन भी जेल में रह जाता है तो मेरा यह प्रयास होगा कि जाते समय वह हस्ताक्षर करके जाये।
दूसरे हमने जेल में सर्वे कराया कि जो व्यक्ति पांचवीं पास हैं और जेल में बंद हैं तो उन सब को हमने आठवीं की परीक्षा दिलाने का प्रयास किया। इसी प्रकार से जो आठवीं पास थे उनको दसवीं और दसवीं पास थे उनको बारहवीं, और बारहवीं पास थे उनको प्रथम वर्ष और जो प्रथम वर्ष को उन्हें बी.ए.बी.काम की परीक्षा दिलाने का भी प्रयास किया। जो स्नातक थे उनको मास्टर डिग्री दिलाने का अभियान चलाया। काफी बड़ी संख्या बंदियों की हमारे सामने आई जो विश्वविद्यालय की परीक्षा देना चाहते थे। विद्यार्थियों को जेल से बाहर परीक्षा दिलाने ले जाने में गार्ड आदि की असुविधा होती थी। अन्य दिक्कतें भी सामने आती थीं तो इस संबंध में हमने बरकत उल्ला विश्वविद्यालय को एक पत्र लिखा और जेल में ही परीक्षा केंद्र केंद्रीय जेल भोपाल में बनाये जाने की अनुमति मांगी तो उन्होंने हमारी इस मांग की सराहना की और जेल में ही परीक्षा केंद्र बना दिया।
प्र. विश्वविद्यालय की परीक्षा में कितने बंदी बैठे और कितने पास हुए?
उ. 18 बंदी परीक्षा में बैठे और आपको जानकर आश्चर्य होगा कि परीक्षा का परिणाम भी 100 प्रतिशत रहा। कोई भी बंदी फेल नहीं हुआ। एक महिला बंदी ने तो 72प्रतिशत अंकों के साथ समाजशास्त्र से एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की। कुल मिलाकर बहुत अच्छा रि$जल्ट रहा।
कुछ बंदी ऐसे भी थे जो एम.ए., एम.काम., एम.एस.सी. आदि कर चुके थे उनके लिए भोज मुक्त विश्वविद्यालय के वाइसचांसलर डॉ. कमलाकर सिंह और रजिस्ट्रार डॉ. गोस्वामी से चर्चा की और एक योजना बनाई की हम लोग कुछ ऐसे कोर्सेस चालू करेंगे जो यह बंदी कर पायें। हमने भोजमुक्त विश्वविद्यालय के माध्यम से 18 बंदियों का चयन किया जो मास्टर ऑफ बिजनिस एडमिस्टे्रशन (एमबीए) तथा डीसीए की दो वर्ष की डिग्री जेल में रहकर ले रहे हैं।
इसी प्रकार हमने एक मॉ सरस्वती कला एवं संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना की जो प्राचीन कला केन्द्र चंडीगढ़ से मान्यता प्राप्त है। आज लगभग 40 बंदी उसके माध्यम से तबला, हारर्मोनियम, गायन, नृत्य आदि में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इनकी परीक्षा भी हुई और सभी बंदी बहुत अच्छे नम्बरों से पास भी हुए हैं। कल जब ये डिग्री लेकर जेल से बाहर जाएंगे तो निश्चित रूप से उन्हें कोई न कोई नौकरी मिल ही जाएगी।
प्र. आप कैदियों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उ. मैं एक बात कहना चाहूँगा कि अगर गलती हुई या नहीं हुई लेकिन वो जेल में आये हैं तो जेल जीवन जीना ही पड़ेगा। इससे अच्छा समय आपको नहीं मिल सकता की आपको कहीं जाना नहीं है। इसलिए इस समय का सदुपयोग ही क्यों न किया जाए। हमें अच्छी किताबें पढऩा चाहिए जो भी अच्छी गतिविधिां जेल में हो रही हों उनमें भाग लेना चाहिए। इस बात को निष्पक्ष होकर सोचना चाहिए कि गलती कहां पर हुई क्यों हुई, आगे गलती न हो इसका भी प्रयास करना चाहिए।
प्र. आपका साहित्य लेखन जारी है या बंद हो गया?
उ. यह थोड़ा कम हो गया समय के अभाव के कारण लेकिन प्रयास जारी है।
प्र. अभी कौन सी नई किताब लिख रहे हैं?
उ. अभी तो मैं जेल के ऊपर ही पीएचडी कर रहा हूँ।
प्र. जेल विभाग के कर्मचारियों के लिए आपका क्या संदेश हैï?
उ. जेल मेें प्रहरी से लेकर सुपरीटेंडेंट का जो काम है वह दोहरी जवाबदारी है। सर्वप्रथम हमको सुरक्षा भी रखना है, दूसरे बंदियों सुधारना भी है। हालांकि ये दोनों विरोधाभाषी बातें हैं। एक तरफ हम शक्ति की बातें करते हैं और दूसरी तरफ सुधार की बातें करते हैं। सुधार हमेशा सहमति से होता है और नियंत्रण हमेशा आदेश से होता है तो ये दो विरोधाभाषी बातें हमें एक साथ लेकर चलना है इसलिए हमें बहुत संयम, धैर्य और समझदारी की आवश्यकता है।
प्र. भविष्य के लिए आपने क्या योजनाएं बनाई हैं?
उ. हम जैसे लोगों की जो मध्यम वर्ग के लोग होते हैं, वो बीच की कड़ी होते हैं। हमारा काम आदेश पालन करने का होता है योजनाएं ऊपर से बनती हैं लागू हम करते हैं।
प्र. क्या कोई सोचा हुआ काम बाकी रह गया है?
उ. आपने अखबारों में पढ़ा होगा कि हमनेभोपाल में हमने क्षेत्रीय जेल प्रबंधन एवं शोध संस्थान स्थापित किया है। ये संस्थान हिन्दुस्तान का चौथा है। यह इसलिए किया है कि जबसे भारत स्वतंत्र हुआ है और म.प्र. अस्तित्व में आया है उसके बाद से जेल के वरिष्ठï अधिकारी अपने आधारभूत प्रशिक्षण के लिए लखनऊ जाया करते थे। यानि अभी तक हमारा प्रदेश आत्मनिर्भर नहीं था प्रशिक्षण के मामले में। हमने यह काम पिछले वर्ष यहां चालू किया और अभी तक दो बैच पास आउट कर चुके हैं। अभी तक हमारे यहां से 50 अधिकारी प्रशिक्षित हो चुके हैं। यह बड़ा काम था जो हुआ। बंदियों से संबंधित कुछ योजनाएं हैं तथा कर्मचारियों से संबंधित योजनाएं भी हैं। ये योहना विचाराधीन है इन पर शासन विचार कर रहा है। भगवान ने चाहा तो एक आध साल में और कुछ नई योजनाएं जेल में आयेंगी जो म.प्र. में ही नहीं बल्कि भारत में भी पहली होंगी।
प्र. ये योजनाएं कौन सी हैं?
उ. जैसे मैंने आपको बताया जेल प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान स्थापित तो हो गया है लेकिन अभी इसे और व्यवस्थित होना है। दूसरी हम ऐसी संस्था का निर्माण करना चाहते हैं जो कि जेल में सुधार कार्य किये जा रहे हैं और एक लंबा जेल जीवन काटने के बाद कैदी बाहर जाता है तो उसको समाज की परिस्थितियां बदली हुई मिलती हैं। समाज उसे स्वीकार करने की स्थिति में नहीं होता है। तो उसको एक ठिकाना मिले जहां वो यहां सीखे हुए काम के आधार पर अपनी जीविका चला सके इसको हम नाम दे रहे हैं ‘मिडवेहोमÓ। जहां रहकर वो अपने और अपने परिवार का भरण पोषण कर सके।
एक और योजना चल रही है जिसे हमने कम्युनिटी सर्विस सेंटर नाम दिया है। यह हिन्दुस्तान में अभी कहीं नहीं है। बिना टिकिट कई लोग पकड़े जाते हैं जिनमें लड़के होते हैं गरीब, सभी वर्ग के लोग होते हैं जो किसी विशेष कारण वश टिकिट नहीं ले पाते हैं। वहां पुलिस होती है मजिस्ट्रेट साहब होते हैं उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि आपने किन परिस्थितियों के कारण टिकिट नहीं लिया। वो कहते हैं या तो जुर्माना भरो या फिर 15 दिन के लिए जेल जाओ। आज की तारीख में लगभग तीस चालीस लोग रेज आते हैं जो बिना टिकिट यात्रा करते हुए पकड़ जाते हैं।
मेरी ऐसी मान्यता है कि बिना टिकिट यदि कोई पकड़ा गया तो उसने कोई ऐसा अपराध नहीं किया कि उसको उस जगह पर रखा जाए जहां पर हत्यारे, डकैत को बंद किया गया है। मेरी ऐसी मान्यता है कि ऐसी कोई नई संस्था बनाई जाना चाहिए जहां ऐसे छोटे अपराध जिन्हें परिस्थितिजन्य छोटी-मोटी भूल भी कह सकते हैं। ऐसी गल्तियां पाये जाने पर उन्हें जेल न भेजा जाए और कम्यूनिटी सर्विस सेंटर में रखा जाए। उसके पीछे एक कारण और है हमने पांच सौ रूपये का टिकिट न लेने वाले व्यक्ति को 15 दिन के लिए जेल में भेज दिया तो क्या फायदा हुआ सरकार को? हमने उसके ऊपर 15 दिन में पांच हजार रूपया और खर्च कर दिया। उसके भोजन वस्त्र और उसकी दवाईयों पर। इससे क्या लाभ हुआ? उस पर एक दा$ग अलग लग गया कि जेल से आया है। तीसरा जिसे हम कहने में कोई संकोच नहीं करते कि वो आदमी अंदर आया और उसे यहां बड़े अपराधी मिले। कहीं उनसे उनका संपर्क हो गया तो उसे एक लाईन मिल गई। इन सभी चीज़ों से बचाव के लिए आवश्यक है कि एक कम्यूनिटी सेंटर बनाये जाएं। जहां छोटे-छोटे उत्पादक यूनिट्ïस लगाए जाएं। 15 दिन के लिए आप उस सेंटर में जाइये और छोटे-छोटे काम करिये और 15 दिन बाद अपने घर जाइये।
प्र. अभी भोपाल केंद्रीय जेल में कितने कैदी हैं।
उ. हमारी जेल में आज की तारीख में 2622 कुल कैदी हैं। जिनमें से 92 महिलायें हैं।
प्र. क्या महिला कैदियों को कोई विशेष सुविधाएं दी गई हैं?
उ. हां महिलाओं के लिए शासन स्तर पर, महिला आयोग के स्तर पर विभिन्न विशेष सुविधाएं दी गई हैं। वो सब यहां दी जा रही हैं।