तारीखे इस्लाम

0
196

(पांचवी किश्त)
कुरैश की मुखालफत
आप का खुल कर इस्लाम की तब्लीग करना कोई मामूली बात न थी। इसने कुरैश और दूसरे लोगों में एक आग लगा दी और हर तरफ इस दावत के बारे में एतराज होने लगे।
एक बार आंहजरत सल्लालाहु अलैहि व सल्लम ने हरमे काबा में जाकर तौहीद का एलान फरमाया। मुश्रिकों के नजदीक यह हरमे काबा की सब से बडी तौहीन थी। इस एलान के करते ही एक हंगामा उठ खडा हुआ। हर तरफ से लोग आप पर टूट पडे। हजरत हारिस बिन अबी हाला आप की मदद के लिए दौडे, लेकिन उन पर चारों तरफ से इतनी तलवारें पडीं कि वे शहीद हो गये। इस्लाम की राह में यह पहली शहादत थी। अल्लाह के फजल से हजरत मुहम्मद सल्ल. हिफाजत से रहे और किसी न किसी तरह हंगामा खत्म हुआ।
इसी तरह जुल्म व सितम की चक्की चलानी उस वक्त और तेज कर दी गयी, जब लोग इस्लाम की तरफ लपकने लगे। इस्लाम और मुसलमानों को दबाने और कुचलने की पहली तद्बीर उन्होंने यह अख्तियार की कि इस्लाम लाने वालों को ज्यादा से ज्यादा तकलीफ दी जाए। उन्हें डराया-धमकाया जाए, ताकि जो मुसलमान हो चुके हैं, वे वापस आ जाएं और दूसरे लोग इस तकलीफ और परेशानी को देखकर इस ओर बढने न पाएं। जैसे, हजरत बिलाल रजियल्लाहु अन्हु हब्शी थे, उमय्या बिन खल्फ के गुलाम थे। जब उमय्या ने सुना कि बिलाल रजि. मुसलमान हो गये, तो उन्हें तकलीफ पहुंचाने के उसने नये-नये तरीके ईजाद किये-
0 गरदन में रस्सी डाल कर लडकों के हाथ में दी जाती और वे मक्के की पहाडियों में उन्हें लिए फिरते, यहां तक कि रस्सी का निशान पड जाता।
0 मक्का की घाटी की गर्म रेत में उन्हें लिटा दिया जाता और गर्म-गर्म पत्थर उन की छाती पर रख दिया जाता।
0 मश्कें बांध कर लकडियों से पीटा जाता।
0 धूप में बिठाया जाता।
0 भूखा रखा जाता।
हजरत बिलाल रजि. इन सब हालतों में, तकलीफ ओर बेचैनी को इंतिहा के बावजूद ’अहद-अहद (अल्लाह एक है, अल्लाह एक है) के नारे लगाते रहते। हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि. से हजरत बिलाल रजि की यह सूरत देखी न गयी, यहां तक कि उन्हें खरीद लिया और अल्लाह के नाम पर आजाद कर दिया।
हजरत अम्मार रजि. और उनके वालिद हजरत यासिर रजि. उनकी वालिदा हजरत सुमय्या रजि. मुसलमान हो गये थे। अबुजहल ने उन्हें तरह-तरह की तकलीफें पहुंचायीं। वह उन्हें जलती हुई रेत पर लिटा कर इतना मारता कि ये बे-होश हो जाते।
एक दिन नबी सल्लालल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इन्हें तकलीफ उठाते देख लिया, फरमाया-
’इस्बिरू या आ-ल यासिर फ इन-नल्ला-ह यअि-द-कुमुल जन्ना‘
’यासिर वालो, सब्र करो, तुम्हारी जगह जन्नत है।)
कमबख्त अबु जहल ने बीबी सुमय्या की शर्मगाह में इस बेदर्दी से नेजा मारा वह इसी में शहीद हो गईं।
हुजूर सल्ल. के साथियों पर जुल्म व सितम के तो पहाड तोडे ही जा रहे थे, खुद पैगम्बरे इस्लाम सल्ल. भी इस से बचे न थे-
नबी सल्लाल्लाहु अलैहि व सल्लम के रास्ते में कांटे बिछाए जाते, ताकि रात के अंधेरे में आप के पांव जख्मी हों।
घर के दरवाजे पर गन्दगी फेंक दी जाती, ताकि सेहत खराब हो और सुकून भी खत्म हो। इन बातों पर पैगम्बरे इस्लाम सल्ल. सिर्फ इतना फरमा दिया करते कि ऐ अब्दे मुनाफ की औलाद। पडोस का हक खूब अदा करते हो।
इब्ने अम्र आस रजि. का आंखों देखा बयान है कि एक दिन नबी सल्ल. खाना-काबा में नमाज पढ रहे थे। उक्बा बिन अली मुअीत आया। उसने अपनी चादर को ऐंठ कर रस्सी जैसा बना दिया और जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सज्दे में गये तो चादर को हुजूर सल्ल. की गरदन में डाल दिया और ऐंठना शुरू किया। मुबारक गरदन बडी हद तक कस-सी गयी थी, फिर भी आप दिल के पूरे इत्मीनान के साथ सज्दे में पडे हुए थे। इतने में हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि. आए। उन्होंने धक्के देकर उक्बा को हटाया और जफबान से यह आयत भी पढ कर सुनायी-
’क्या तुम एक ऐसे आदमी को मारते हो और सिर्फ इस जुर्म में कि वह अल्लाह के अपना परवरदिगार कहता है, तुम्हारे पास अपनी रोशन दलीलें भी लेकर आया है।‘
कुछ बदमाश हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि. से लिपट गये और उन्हें मारा-पीटा।
एक और वाकिआ है कि पैगम्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम खाना काबा में नमाज पढने लगे। कुरैश भी खाना काबा में जा बैठे। अबू जहल बोला कि आज शहर में फलां जगह ऊंट जिब्ह हुआ है, ओझडी पडी हुई है, कोई जाए, उठा लाए और इस (नबी स.) के ऊपर धर दे। बदबख्त उक्बा उठा, नजासत भरी ओझडी उठा लाया और जब नबी सल्ल. सज्दे में गये, तो मुबारक पीठ पर रख दी। पैगम्बरे इस्लाम सल्ल. तो नमाज में अपने रब की तरफ ध्यान लगाए हुए थे, कुछ खबर न हुई, जबकि काफिर हंसी के मारे लोट-पोट हुए जाते थे और एक दूसरे पर गिरे जाते थे।
इब्ने मसऊद सहाबी भी मौजूद थे, काफिरों की भीड देख कर उन का तो हौसला न पडा, पर बेचारी सय्यदा जोहरा रजि. आ गयीं। उन्होंने बाप की पीठ पर से ओझडी को फेंक दिया और इन बद-बख्तों को बहुत कुछ कहा-सुना भी।