(छठी किश्त)
गन्दा प्रचार
ज्यों-ज्यों विरोध बढ रहा था, इस्लाम की आवाज भी तेजी से फैल रही थी। इस प्रचार को देख कर कुरैश की परेशानी बराबर बढती गयी उन्होेंने दूसरी चालें चलीं। उन्होंने मुहिम चला दी इस्लाम की और मुहम्मद सल्ल. को सोसाइटी से कोई असरदार हिमायत व हमदर्दी न मिले। हिमायत और हमदर्दी से यह महरूमी उन्हें मायूस कर देगी और उन का जोर अपने आप ही टूट जाएगा।
पूरा अरब जानता था कि पैगम्बरे इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्ल. के सर पर अबूतालिब का हाथ है, जो मक्का के सब से ज्यादा असरदार शख्स हैं। सब से पहले उन्हीं पर दबाव डाला गया कि वह अपने भतीजे के सर पर से हाथ खींच लें। उन पर दबाव डालने का सिलसिला चलता रहा, लेकिन हर बार कुरैश की नाकामी होती।
इस बार रबीआ के दोनों बेटे उत्बा और शैबा, अबू सुफियान बिन हर्ब, अबुल बख्तरी, असवद बिन अब्दुल मुत्तलिब, अबू जहल, वलीद बिन मुगीरह, हज्जाज बिन आमिर के दोनों बेटे नबीह और मुनब्बह और आस बिन वाइल जैसे सरदार आंहुजूर सल्ल. के चचा के पास पहुंचे और बोले-
-ऐ अबू तालिब! तेरा भतीजा हमारे खुदाओं और देवी-देवताओं को गालियां देता है, हमारे धर्म में ऐब निकालता है, हमारे बुजुर्गों को मूर्ख कहता है और हमारे बाप-दादों को गुमराह कहता है, अब या तो तुम उस को हमारे खिलाफ ऐसी ज्यादतियां करने से रोको या हमारे और उसके दर्मियान से तुम निकल जाओ, क्योंकि तुम भी (अकीदे और मजहब के लिहाज से) हमारी तरह उस के खिलाफ हो। उस की जगह हम तुम्हारे लिए काफी होंगे।
अबू तालिब ने पूरी बात ठंडे व दिमाग से सुनी और नर्मी से समझा-बुझा कर मामला टाल दिया। ये लोग मायूस होकर चले गये। इसी तरह एक और वफ्द आया, वह भी यही रोना रोने लगा-
’’ऐ अबू तालिब! तुम हमारे दर्मियान उम्र, शराफत और इज्जत, तजुर्बे के लिहाज से एक बडा दर्जा रखते हो। हमने मांग की थी कि अपने भतीजे से हमें बचाओ, लेकिन तुमने यह नहीं किया और खुदा की कसम! जिस तरह हमारे बाप-दादा को गालियां दी जा रही है, जिस तरह हमारे बुजुर्गों को मूर्ख बताया जा रहा है और जिस तरह हमारे देवी-देवताओं की पकड की जा रही हैं, उसे हम बरदाश्त नहीं कर सकते- मगर यह कि तुम उसे रोको या फिर हम उस से भी और तुम से भी लडेंगे, यहां तक कि एक फरीक का खात्मा हो जाए।
अबू तालिब ने आंहुजूर सल्ल. को बुलाया और सारी बात बतायी, फिर नर्मी से कहा कि भतीजे ! मुझ पर ऐसा बोझ न डालो, जिसका उठाना मेरे बस से बाहर हो।
उस वक्त ऐसी शक्ल बन गयी थी कि हुजूर सल्ल. के पांव जमाने के लिए सहारे का जो पत्थर था, वह खिसकता नजर आया, लेकिन पैगम्बरे इस्लाम सल्ल. खूब जानते थे कि हक की आवाज को दबाने के ये सब हथकंडे हैं, कुरैश की अपनी चैधराहट खत्म होती नजर आ रही है, बौखलाहट में झूठे इल्जाम और गलत प्रोपगंडे करके हक की राह से उस के राहियों को हटाने की चालें चल रहे हैं, इसलिए अबूतालिब की जाहिरी फिसलन के बाद भी आप अडिग रहे, जवाब दिया-
‘चचा! खुदा की कसम!! ये लोग अगर मेरे दाहिने हाथ पर सूरज और बाएं हाथ में चांद रख कर चाहें कि इस मिशन को छोड दूं, तो मैं इस से रूक नहीं सकता, यहां तक कि या तो अल्लाह तआला इस मिशन को गालिब कर दे या मैं इसी जद्दोजेहद में खत्म हो जाऊं।’
अबूतालिब को भी आप सल्ल. के इस एलान में सच्चाई नजर आयी, भतीजे की अडिगता देख कर बोले, जाओ, जो कुछ तुम्हें पसन्द है, उसकी ओर लोगों को बुलाओ, मैं किसी चीज की वजह से भी तुम को नहीं छोडूंगा।
एक और वफ्द अम्मारा बिन वलीद को लेकर फिर आया। इस बार ये लोग एक और ही स्कीम लेकर आए थे। अबूतालिब से बोले, देखिए यह अम्मारा बिन वलीद है, जो कुरैश में एक मजबूत और खूबसूरत जवान है, इसे ले लीजिये। इस की अक्ल और इसकी ताकत आपके काम आएगी, इसे अपना बेटा बना लीजिये और इसके बदले में मुहम्मद को हमारे हवाले कर दीजिए, जिसने कि आपके, आपके बाप-दादों के दीन की मुखालफत शुरू की रखी है और आप की कौम बिखरती और टूटती जा रही है। इसे हम कत्ल कर देना चाहते हैं। सीधे-सीधे एक आदमी के बदले में हम एक आदमी आप को देते हैं।
इस बेतुकी मांग से अबूतालिब भी तिलमिला उठे, बोले, तुम लोग यह चाहते हो कि तुम्हारे बेटे को तो मैं लेकर पालूं-पोसूं, मेरे बेटे को तुम लेकर तलवार के नीचे से गुजार दो। ऐसा कभी नहीं हो सकता।‘
वफ्द खिसिया कर चला गया।
आगे चलकर, जब मुखालिफ कैम्प से निकल कर दो जयाले जवान हजरत हमजा और उमर रजि. इस्लामी कैम्प में शामिल हो गये, तो कुरैश में खलबली की नयी लहर दौड गयी, उन्होंने महसूस किया कि मुहम्मद की चलायी हुई हवा, इतनी कोशिशों के बावजूद हर घर में पहुंच गयी, कुछ करना चाहिए। अबुतालिब की बीमारी की हालत में लोग फिर पहुंचे। इस बार समझौते की नीयत से आए थे। वफ्द ने कहा- जो कुछ हो रहा, इसे तो आप जानते हैं। अपने भतीजे को बुलवाइए। उसके बारे में हम से अह्द लीजिए और हमारे बारे में उस का अह्द दिलवाइए। वह इस से बाज रहे हम उस से और उस के मजहब से न वास्ता रखें।
पैगम्बरे इस्लाम सल्ल. बुलवाए गये, बातें हुईं, आपने सारी मांगें सुनने के बाद जवाब दिया, ऐ कुरैश के शरीफ लोगों। मेरे इस एक कलिमे को मान लो, तो अरब व अजम सब तुम्हारो पैरों तले आ जाएंगे।’
कितने यकीन के साथ फरमाया था आंहुजूर सल्ल. ने गोया अंधेरी रात में आप पूरे यकीन के साथ फरमा रहे हो कि अभी सूरज निकलने वाला है।
अबू जह्ल कैसे इसे सह लेता, तुनक कर बोला, हां, तेरे बाप की कसम! एक क्यों, दस कलिमे चलेंगे।
कोई दूसरा बोला, ’यह शख्स तो खुदा की कसम! तुम्हारी मर्जी की कोई बात तो मान कर देने का नहीं?
इसके बाद ये लोग मायूस होकर चले गये।