देवमूर्ति सजाने से पहले जरा जान लें

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देवमूर्ति प्रतीक है समृद्घि की। उन्हें घर में सुख-शांति के लिए विराजमान करें, न कि सजावट के लिए। इसको समझते हैं वास्तु की नजर से …
मुख्य द्वार पर पूजा- अर्चना के बाद ही इष्टï देवता या देवी की मूर्ति लगाएं। फिर उसे स्थान की पवित्रता का विशेष ध्यान रखें। मूर्ति की नियमित सफाई करते रहें।
सुंदर, सुसज्जित घर हर व्यक्ति का स्वप्न होता है और अपनी कल्पना के आधार पर ही इसे सजाया जाता है, पर आजकल घर की सजावट का मुख्य हिस्सा बनने लगी हैं देव प्रतिमाएं। अब इसे ईश्वर के प्रति हमारा स्नेह कहा जाए या सौंदर्य-प्रेम? यूं तो दुर्गा, काली, सरस्वती, शिव, नटराज, राम, कृष्ण आदि देवता सजे दिखाई देते हैं, पर गणपति इन सबमें सबसे ज्यादा मिलते हैं।
दक्षिण दिशा के स्वामी गणेश किसी भी भवन में सुख समृद्घि और शांति का आशीर्वाद देते हैं। वास्तु-शास्त्र के अनुसार मुख्य द्वार पर गणपति की मूर्ति या तस्वीर शुभ फलदायी होती है, पर गणपति को अंदर-बाहर दोनों ओर लगाना श्रेयस्कर है। गणपति के सामने का हिस्सा अगर परिचायक है सुख-समृद्घि का, तो उनकी पीठ दरिद्रता दर्शाती है। इसलिए दरवाजे के दोनों ओर लगाने से उनकी पीठ का अशुभ असर नहीं रहता।
राधा-कृष्ण, गजलक्ष्मी, कुबेर आदि के चित्र या मूर्तियों से भी सुसज्जित किया जाता है घर का मुख्य द्वार। इन देवी-देवताओं को घर में एक विशिष्टï एवं सर्वोत्तम स्थान देना अति आवश्यक है और इसीलिए घर छोटा हो या बड़ा, पूजा गृह या पूजा का स्थान बनाना अनिवार्य हो जाता है। पर आज के इस युग में जब आंतरिक साज-सज्जा में हम उन्नति के शिखर पर पहुंच रहे हैं, हमने अपने इष्टï को भी सजावट का सामान बना लिया है।
ड्रॉइंग रूम में गणेश प्रतिमाएं विभिन्न आकारों और रूपों में दिखाई देती हैं। मिट्टïी, टैराकोटा, कांच एवं अन्य कई धातुओं से बनी इन मूर्तियों में कहीं हमारे सर्वप्रथम पूज्य देव लेटे हैं, तो कहीं नृत्य कर रहे हैं, कहीं मोदक खा रहे हैं, तो कहीं एक पैर पर ही खड़े हैं। मेज पर एक तरफ गणपति विराजमान हैं, तो वहीं जूठे कप और प्लेट भी रखे हैं।
सिगरेट की राख झाड़ी जा रही है, गणपति के पास ही रखी ऐश ट्रे में। ड्रॉइंग रूम स्थान है मेहमानों के स्वागत का और इस स्वागत का हिस्सा बन रहे हैं हमारे इष्टï, जो न केवल वास्तु-शास्त्र के अनुसार गलत है, बल्कि किसी भी शास्त्र के अनुसार सही नहीं है। इन देव प्रतिमाओं, तस्वीरों का आदान-प्रदान भी अब कुछ ज्यादा हो गया है।
गृह-प्रवेश, दीपावली, जन्मदिन या अन्य कोई उत्सव हो, हमारे प्रियजन हमें उपहार स्वरूप देते हैं कोई भी इष्टï की मूर्ति और कार्ड, जिनमें बने हैं हमारे इष्टï। अब तो किसी भी पैकेट पर आप इन देवों की तस्वीर देख सकते हैं और ये पैकेट, ग्रीटिंग कार्ड या अन्य कागज कुछ ही देर में कचरे का ढेर बन जाते हैं। ऐसे कागज या ग्रीटिंग कार्ड वगैरह जल प्रवाहित कर देना ही सही है। कचरे में डालना अपने इष्टï के अपमान के बराबर है।
कुछ मुख्य बातें हैं, जिनका हमें विशेष ध्यान रखना चाहिए-मंदिर या पूजा कक्ष में भी शुद्घता का ध्यान रखकर पूरे मान, श्रृद्घा से किसी भी मूर्ति को रखें और फिर उनकी पूजा नियमित रूप से करें। सजावट के रूप में देव प्रतिमाएं रखना शास्त्र-सम्मत नहीं है। कोई भी देव मूर्ति का भयावह या अश्लील स्वरूप बनाना या रखना हानिकारक सिद्घ होता है।
इष्टï, देव-देवी की मूर्ति का अगर कोई भी अंग भंग हो गया हो, तो उसे अतिशीघ्र ही साफ जल में प्रवाहित करें। किसी भी देव-देवी का खाली सिर रखना शास्त्रानुसार निषेध है। ऐसी मूर्तियां जल में प्रवाहित कर देना ही बेहतर है। कोई भी मूर्ति (देवी-देवता) अगर पूजित न की जा रही हो, तो जल-प्रवाहित कर देना चाहिए। आशीर्वाद पाने के लिए एक ही देव या देवी की मूर्ति काफी है, अगर श्रद्घायुक्त चित्त से उनकी पूजा की जाए। नटराज, प्रतीक है प्रलय का, इसलिए ऐसे रूप घर में रखना ठीक नहीं है। वे लोग, जिनके घरों में नृत्यशालाएं हैं या जो नृत्य करते हैं, वे नटराज की मूर्तियां रख सकते हैं, मगर आमतौर पर घर में नटराज की मूर्तियां नहीं रखी जानी चाहिए। दीवार की जिस तरफ गणेश की प्रतिमा लगाएं, उसके पीछे वाली दीवार पर ठीक उसी जगह गणेश जी की दूसरी प्रतिमा भी लगाएं, ताकि दोनों गणेश की प्रतिमाओं की पीठ एक-दूसरे से मिले।
आप चाहें तो देवी-देवताओं के पोस्टर भी लगा सकते हैं। मगर पोस्टर को प्रतिमाओं की तरह ही पूजा-अर्चना करनी चाहिए और उनके खंडित होते ही उन्हें जल को प्रवाहित कर देना चाहिए।