(नवीं किश्त)
दो बडे सहारे छूटे
नजरबंदी और बाईकाट का दौर खत्म हुआ। लेकिन इससे यह न समझिए कि हालात सुधर गये थे, बल्कि हालात तो और भी सख्त हो गये, सख्त से सख्त!
यह नुबूवत का दसवां साल था। इस साल सब से पहला हादसा तो यह हुआ कि हजरत अली रजि. के वालिद अबू तालिब की वफात हो गयी। इस तरह वह एक जाहिरी सहारा भी छिन गया, जो हुजूर सल्ल. को अपनी पनाह में दुश्मनों के लिए आखिर दम तक आप पर हाथ उठाने में रूकावट बना रहा।
इसी साल हुजूर सल्ल. को दूसरा सदमा हजरत खदीजा रजि. के इंतिकाल का उठाना पडा। हजरत खदीजा रजि. सिर्फ आप की बीवी ही नहीं थीं, बल्कि सबसे पहले ईमान लाने वालों में से भी थीं। उन्होंने इस्लाम से पहले भी और इस्लाम की दावत व तब्लीग के हर मरहले में भी हुजूर सल्ल. का पूरा-पूरा साथ देकर जीवन साथी होने का वाकई हक अदा कर दिया। माल भी खर्च किया, तसल्लियां भी दीं, मश्विरे भी दिए और भरपूर मदद भी की। सही ही कहा गया है कि-
व कानन लहू बजीरा. (वह हुजूर सल्ल. के लिए वजीर थीं।)
एक ओर एक के बाद एक दो सदमे हुजूर सल्ल. को सहने पडे और दूसरी तरफ इन जाहिरी सहारों के हट जाने से मुखलफत का तूफान और ज्यादा चढाव पर आ गया। अब तो गोया मौजें सर से गुजरने लगी। पर शायद अल्लाह यही चाहता था कि सच्चाई अपना रास्ता आप बनाए, सच्चाई अपनी हिफाजत आप करे, सच्चाई अपने लिए खुद ही एक सहारा साबित हो और वही हुआ।
अब कुरैश इंतिहाई जलील हरकतों पर उतर आए थे। लौंडी के झुंड के झुंड पीछे लगा दिए जाते जो शोर मचाते और हुजूर सल्ल. नमाज पढते तो वे तालियां पीटते। रास्ता चलते हुए हुजूर सल्ल. पर गन्दगी फेंक दी जाती, दरवाजे के सामने कांटे बिछाए जाते। खुल्लम-खुल्ला गालियां दी जातीं, फब्तियां कसी जातीं। आप के मुबारक चेहरे पर मिट्टी फेंक दी जाती, बल्कि कुछ दुष्ट बद-किस्मती की इस इंतिहा को पहुंच गये थे कि आप के मुबारक रोशन चेहरे पर थूक देते।
एक बार अबू लहब की बीवी उम्मे जमील पत्थर लिए-लिए हुजूर सल्ल. की खोज में हरम तक इस इरादे से आयी की एक ही वार में काम तमाम कर दे, पर हुजूर सल्ल. अगरचे हरम में सामने ही मौजूद थे, लेकिन खुदा ने उस की निगाह वहां तक पहुंचने न दी और वह हजरत अबू बक्र सिद्दीक रजि. के सामने अपने दिल का बुखार निकाल कर चली आयी।
ऐसे ही एक बार अबू जह्ल ने पत्थर से हुजूर सल्ल. को हलाल कर देने का इरादा किया और इसी इरादे से हुजूर सल्ल. तक पहुंचा भी, पर अल्लाह ने अबू जह्ल पर ऐसा रौब डाल दिया कि वह कुछ न कर सका।
एक बार तो दुश्मनों का झुंड का झुंड टूट पडा और आप को सख्त तकलीफ पहुंचायी। वाकिआ यों हुआ कि दुश्मन बैठे यही जिक्र कर रहे थे कि इस शख्स (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के मामले मे हमने जो कुछ बरदाश्त किया है, उसकी मिसाल नहीं मिलती। इसी बीच हुजूर सल्ल. तश्रीफ लाए। उन लोगों ने पूछा कि क्या तुम ऐसा और ऐसा कहते हो? हुजूर सल्ल. ने पूरी हिम्मत के साथ फरमाया, हां मैं हूं जो यह और यह कहता है।‘ बस यह कहना था कि चारों ओर से धावा बोल दिया गया।
अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस का बयान है कि कुरैश की तरफ से इससे बढ कर हुजूर सल्ल. पर कोई बडा जुल्म मैंने नहीं देखा।
हमलावर रूक गये, तो खुदा के रसूल ने फिर उसी हिम्मत से काम लेकर उनको इन लफ्जों में चेतावनी दी कि, मैं तुम्हारे सामने यह पैगाम लाया हूं कि तुम जिब्ह होने वाले हो।‘‘ यानी जुल्म की यह छुरी जो तुम मुझ पर तेज कर रहे हो, तारीख गवाह है कि कानूने इलाही आखिरकार इसी से खुद तुम को जिब्ह कर डालेगा। तुम्हारा यह जोर और यह ताकत जो जुल्म के रूख पर मुड गयी है। यह यकीनी तौर पर खत्म होने वाली है।
हजरत उस्मान बिन अफ्फान रजि. एक वाकिआ बयान करते हैं कि प्यारे नबी सल्ल. बैतुल्लाह का तवाफ कर रहे थे। उक्बा बिन मुईन, अबू जह्ल और उमय्या बिन खल्फ हतीम में बैठे हुए थे। जब हुजूर सल्ल. उनके सामने से गुजरते तो वे बुरे कलिमें जफबान से निकालते। तीन बार ऐसा हुआ। आखिरी बार हुजूर सल्ल. के चेहरे का रंग बदल गया, फरमाया, खुदा की कसम! तुम बगैर इसके बाज न आओगे कि खुदा का अजाब जल्द तुम पर टूट पडे।
हजरत उस्मान रजि. कहते हैं कि यह हक का रौब था कि यह सुनकर उन में से कोई न था, जो कांप न रहा हो। यह फरमा कर हुजूर अपने घर को चले तो हजरत उस्मान और दूसरे लोग साथ हो लिए। इस मौके पर हुजूर सल्ल. ने हम से खिताब कर के फरमाया।
तुम लोगों को खुशखबरी हो। अल्लाह तआला यकीनन अपने दीन को गालिब करेगा और अपने कलिमे की तक्मील करेगा ओर अपने दीन की मदद करेगा और ये लोग जिन्हें तुम देखते हो, अल्लाह तआला उन को बहुत जल्द तुम्हारे हाथों से जिब्ह कराएगा।
गौर कीजिए, मायूसी के माहौल में यह खुशखबरी सुनायी जा रही थी और फिर किस शान से यह बहुत ही जल्द पूरी हुई, गोया हक के इस आन्दोलन ने हथेली पर सरसों जमा दी।