(11वीं किश्त)
मदीने में इस्लाम
इस्लाम की आवाज जिस तरह अरब के दूर-दूर इलाकों तक पहुंच रही थी, उसी तरह मदीने में भी पहुंची।
मदीने में बहुत पहले से यहूदी कबीले आ कर आबाद हो गये थे, उन्होंने मदीने के करीब अपने छोटे-छोटे किले भी बना लिए थे।
औस और खजरज दो भाई थे, जिन का असल वतन तो यमन था, लेकिन वे किसी जमाने में यमन से आकर मदीने में आबाद हो गये थे। उन्हीं की नस्ल से वहां दो बडे-बडे खानदान हो गये थे जो औस और खजरज कहलाते थे। यही लोग आगे चल कर मुस्लिम मुहाजिरों की मदद करने की वजह से अन्सार कहलाए।
इन लोगों ने मदीने के आस-पास के इलाकों में अपने छोटे-छोटे बहुत से किले बना रखे थे। ये लोग बुतों की पूजा करते थे, पर यहूदियों से मेल जोल की वजह से रिसालत, बह्य, आसमानों किताब और आखिरत के अकीदे को जान-सुन रखा था। चूंकि इनके पास अपनी कोई चीज नहीं थी, इसलिए मजहब के मामले में ये लोग अक्सर यहूदियों की धौंस खा जाते थे और उनकी बातों को वजन देते थे।
इन लोगों ने यहूदी उलेमा से यह भी सुन रखा था कि दुनिया में एक पैगम्बर और आने वाले है। जो कोई उनका साथ देगा, वहां कामियाब होगा और यह कि इस पैगम्बर का साथ देने वाले ही सारी दुनिया पर छा जाएंगे। यही जानकारी थी जिसकी वजह से नबी सल्ल. की दावत इनके मान लेने में कोई परेशानी की वजह नहीं बनी।
जिन दिनों नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तब्लीगी कोशिशें जोर-शोर से हो रही थीं अबुल हेशर अनस बिन राफअ मक्का आया। उस के साथ बनी अब्दुल अशह्ल के भी कुछ नव-जवान थे, जिन में से अयास बिन मुआज भी था। ये लोग कुरैश के पास अपनी कौम खजरज की तरफ से समझौता करने आए थे।
नबी सल्ल. घूमते-घामते उनके पास भी पहुंचे और जाकर फरमाया-
मेरे पास ऐसी चीज है, जिसमें तुम सब की भलाई है, क्या तुम्हें कुछ चाव है?‘
वे बोले ऐसी क्या चीज है?
फरमाया ’मैं अल्लाह का रसूल हूं, हिदायत के लिए भेजा गया हूं। मैं अल्लाह के बन्दों को दावत देता हूं कि वे अल्लाह ही की इबादत करें, शिर्क न करें। मुझ पर खुदा ने किताब नाजिल की है।
फिर उनके सामने इस्लाम के उसूल बयान फरमाए, कुरआन मजीद भी पढ कर सुनाया।
अयास बिन मुआज, जो अभी नव-जवान थे, सुनते ही बोले, ऐ मेरी कौम! खुदा की कसम! यह तुम्हारे लिए उस मक्सद से ज्यादा बेहतर है, जिसके लिए यहां आए हो।‘
मदीने में इस्लाम
अनस बिन राफअ ने मुट्ठी भर के कंकरियां उठायीं और अयास के मुंह पर फेंक मारीं और कहा, चुप रह, हम इस काम के लिए तो नहीं आए।
अयास वापस जाकर कुछ दिनों के बाद मर गया। मर्हम के दिल में नबी स. के इसी वाज से इस्लाम का बीज बोया गया था, जो मरते वक्त फल-फूल ले आया था।
रसूलुल्लाह सल्लालाहु अलैहि व सल्लम तो उठ कर चले गये।
यह वाकिआ बुआस की तारीखी लडाई से पहले का है। यह लडाई औस व खजरज के दर्मियान हुई थी।
इन्हीें दिनों जमाद अजदी मक्का में आया। यह यमन का रहने वाला था और अरब का मशहूर जादूगर था। जब उस ने सुना कि मुहम्मद पर जिन्नों का असर है, तो उस ने कुरैश से कहा कि मैं मुहम्मद का इलाज मंत्र से कर सकता हूं। यह नबी स. की खिदमत में हाजिर हुआ और बोला ’मोहम्मद ! आओ तुम्हें सुनाऊं। नबी स. ने फरमाया, पहले मुझसे सुन लो, फिर आपने उसे सुनाया-
सब तारीफ अल्लाह के वास्ते हैं। हम उस की नेमतों का शुक्र अदा करते हैं और हर काम में उसी की मदद चाहते हैं। जिसे खुदा राह दिखाता है, उसे कोई गुमराह नहीं कर सकता और जिसे खुदा ही राह न दिखाए उसकी रहबरी कोई नहीं कर सकता। मेरी गवाही यह है कि खुदा के सिवा इबादत के लायक कोई भी नहीं। वह अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं। मैें यह भी जाहिर करता हूं कि मुहम्मद खुदा का बंदा और रसूल है। इसके बाद कहना यह है कि-
जमाद ने इतना ही सुना था, बोल उठा कि इन्हीं कलिमों को फिर सुना दीजिये। दो तीन बार उसने इन्हीं कलिमों को सुना और फिर बे अख्तियार बोल उठा, मैंने बहुतेरे काहिन देखे, जादूगर देखे, शायर सुने, लेकिन ऐसा कलाम तो मैं ने किसी से भी नहीं सुना। ये कलिमे तो अथाह समुन्दर जैसे हैं। मुहम्मद!खुदा के लिए अपना हाथ बढाओ कि मैं इस्लाम की बैअत कर लूं।