(12वीं किश्त)
यसरिब की छैः पाक रूहें
नुबूवत के ग्यारहवें साल के हज के मौसम का जिक्र है कि नबी स. ने रात की तारीकी में मक्का शहर से कुछ मील दूर उक्बा नामी जगह पर लोगों को बातें करते ुसुना। इस आवाज पर खुदा का नबी स. उन लोगांे के पास पहुंचा। ये छैः आदमी यसरिब (मदीना) से आए थे।
उनके सामने नबी स. ने खुदा की बडाई और उसके जलाल का जिक्र शुरू किया। उनकी मुहब्बत को खुदा के साथ गरमाया, बुतों से उनको नफरत दिलायी, नेकी और पाकीजगी की तालीम देकर गुनाहों और बुराईयों से मना फरमाया। कफरआन मजीद की तिलावत फरमा कर उनके दिलों को रोशन फरमाया। ये लोग अगरचे बुत परस्त थे, लेकिन उन्होंने अपने शहर के यहूदियो को बार-बार यह कहते सुना था कि एक नबी बहुत जल्द आने वाला है। इस तालीम से वे उसी वक्त ईमान ले आए और जब अपने वतन को लौट कर गए तो दीने हक के सच्चे मुबल्लिग बन गये। वे हर एक को यही खुशखबरी सुनाते थे कि वह नबी जिसका तमाम दुनिया का इन्तिजार था, आ गया, हमारे कानों ने उस कलाम को सुना हमारी आंखों ने उस का दीदार किया और उसने हम को उस जिंदा रहने वाले खुदा से मिला दिया है कि दुनिया की जिन्दगी और मौत अब हमारे सामने कोई कीमत नहीं रखती।
उक्बा की पहली बैअत
इन लोगों के प्रचार का नतीजा यह निकला कि यसरिब के घर-घर में आंहजरत स. का जिक्र होने लगा और अगले साल सन् 11 न. में यसरिब के 12 आदमी मक्का में हाजिर हुए और नबी स. के हाथ पर बैअत की।
इन लोगों ने जिन बातों पर नबी स. से बैअत की थी, वे यह थीं-
1. हम एक खुदा की इबादत किया करेंगे और किसी की उसको शरीक नहीं बनाएं।
2. हम चोरी और जिनाकारी नहीं करेंगे।
3. हम अपनी औलाद (लडकियों) को कत्ल नहीं करेंगे,
4. हम किसी पर झूठी तोहमत नहीं लगाएंगे और न किसी की चुगली किया करेंगे।
5. हम नबी स. की इताअत हर अच्छी बात में किया करेंगे।
चलते वक्त इन लोगों ने इस बात की ख्वाहिश जाहिर की कि इस्लाम की तालीम के लिए कोई साहब उनके साथ भेज दिये जाएं। चुनांचे हजरत मुस्अब बिन उमैर रजि. को उनके साथ मदीना भेज दिया गया।
हजरत मस्अब बिन उमैर रजि. अमीर घराने के लाडले बेटे थे। जब घोडे पर सवार होकर निकलते, तो आगे-पीछे गफलाम चला करते थे। बदन पर दो सौ रू से कम की पोशाक कभी न पहनते, पर जब इस्लाम कुबूल किया, तो इन चीजों से महरूमी उन्होंने पसन्द कर ली। जिन दिनों यह मदीने से दीन की तब्लीग कर रहे थे, उन दिनों उनके कंधे पर सिर्फ कम्बल का एक छोटा-सा टुकडा होता था।
हजरत मुस्अब बिन उमैर रजि. के खुलूस और मेहनत का नतीजा यह निकला कि कुछ ही दिनो में पूरे मदीने में इस्लाम की चर्चा आम हो गई।
उक्बा की दूसरी बैअत
हजरत मुस्अब रजि. की तालीम से इस्लाम की चर्चा मदीने के तमाम कबीलों में फैल गयी और उसका नतीजा यह हुआ कि अगले साल 73 मर्द, दो औरते यस्रिब के काफिले में मिल कर मक्का आए, उनको यस्रिब के मुसलमानों ने इसलिए भोजा था कि रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम को अपने शहर में आने की दावत दें और नबी स. से मंजूरी हासिल करें।
सच्चे ईमान वालों का यह गिरोह उसी मुबारक जगह पर जहां दो साल पहले इस शहर यस्रिब के मुश्ताक हाजिर हुआ करते थे, रात के अंधेरे में पहुंच गया और अल्लाह का प्यारा रसूल स. अपने चचा अब्बास को लिए हुए वहां जा पहुंचा।
चचा अब्बास ने (जो अभी मुसलमान न हुये थे) उस वक्त एक बडे काम की बात कही। उन्होंने कहा, लोगो! तुम्हें मालूम है कि मक्का के कुरैश मोहम्मद (.सल्ल.) की जान के दुश्मन हैं। अगर तुम इनसे कोई अहद व करार करने लगो, तो पहले समझ लेना कि ये नाजफक और मुश्किल काम है। मोहम्मद से अहद व पैमान करना लाल और काली लडाईयों (यानि बडी भयानक लडाईयों) को दावत देना है। जो कुछ करो सोच-समझ कर करों वरना बेहतर है कि कुछ भी न करो।
इन सच्चे ईमान वालों ने अब्बास को कोई जवाब न दिया, हां रसूलल्लाह सल्ल. से अर्ज किया कि हुजूर कुछ इर्शाद फरमायें।
फिर रसूलल्लाह सल्ल. ने उनको खुदा का कलाम पढकर सुनाया, जिसके सुनने से वे ईमान व यकीन के नूर से भर उठे।
अब सब लोगों ने अर्ज किया खुदा का नबी सल्ल. हमारे शहर में चलकर बसें, ताकि हमें पूरे का पूरा फैज हासिल हो सके
नबी सल्ल. ने मालूम फरमाया-
1. क्यों तुम दीन हक के फैलाने में मेरी पूरी-पूरी मदद करोगे?
2. और जब मैं तुम्हारे शहर में जा बसूं, क्या तुम मेरी और मेरे साथियों की हिमायत अपने बाल बच्चों की तरह करोगे।
ईमान वालों ने पूछा-
‘ऐसा करने का हमको मुआवजा क्या मिलेगा?
नबी सल्ल0 ने फरमाया, बहिश्त, ‘जो निजात और खुदा की खुशी की जगह है।’
ईमान वालों ने अर्ज किया, ऐ खुदा के रसूल ! यह तो हमारी तसल्ली फरमा दीजिए कि हुजूर सल्ल. हम को कभी छोड तो नहीं देंगे ।
नबी सल्ल0 ने फरमाया, नहीं, मेरा जीना, मेरा मरना, तुम्हारे साथ होगा।
इस आखिरी जुम्ले का सुनना था कि सच्चाई के शैदाई खुश हो-हो इस्लाम पर बैअत करने लगे। बरा बिन मारूर वह पहले बुजुर्ग हैं, जिन्होंने उस रात सबसे पहले बैअत ली थी।