गतांक से आगे :-

उमा मेरी अनुपस्थिति में वापिस चली गई। कुछ दिन तक उसने मेरे निर्णय का इन्तजार किया। किन्तु जब मैंने नियमानुसार उसके रिश्तेदारों के प्रकरण पर विपक्ष में अपना फैसला दिया तो वह भड़क उठी, उन्होंने मेरे निर्णय के विरूद्घ अपील कर दी। पैसे वाली पार्टी समझती है कि नियमों को पैसों से खरीदा जा सकता है। उमा ने मुझे अप्रत्याशित एक पत्र में लिखा कि अगर वह जानती कि मैं उससे बेरूखी बरतूंगा तो वह मेरे पास आती ही नहीं, उसने व्यंग्यात्मक रूप से लिखा कि अगर मैं काम नहीं करूंगा, तो क्या उसके रिश्तेदारों का काम नहीं होगा? प्रकरण चलाते हुये दस कलेक्टर तो निकल गये हैं….मैं भी चला जाऊंगा पर कोई उसके रिश्तेदारों से सरकारी अवैध कब्जा वापिस नहीं ले सकेगा। पत्र के अन्त में मुझे सीख भी दी थी कि अगर मुझे इतना ही आदर्शवादी बनना था, तो किसी कॉलेज में प्रोफेसरी करनी थी। प्रशासन के इस महत्वपूर्ण पद पर आकर बेकार ही सिरदर्द मोल लिया। मैंने पत्र एक ओर पटक दिया। शीला वापिस आ चुकी थी और उसे उमा के आने की बात मालूम हो चुकी थी।
मेरे कमरों में उमा की पेंटिंग देखकर वह पहले से ही सन्देह करती थी। किन्तु मेरे व्यवहार ने उसे लगातार आश्वस्त किया था, कि मेरा और उमा का वैसा रिश्ता नहीं था, जो अक्सर कोइजुकेशनल कालेजों में लड़के-लड़कियों के बीच हो जाया करता है। पर उस दिन उमा के आने ने उसके मन में पुन: सन्देह का बीज बो दिया था। तभी तो इस बार मायके से लौटने पर मैंने वह गर्मजोशी अनुभव नहीं की जो इसके पूर्व होती रही थी। वह अकारण ही बच्चो को डांटती रही चपरासियों पर भी झल्लाती रही। उसने मुझे ठीक से आफिस के लिए बिदा भी नहीं किया। शाम को मैंने चाहा कि शीला के मायके के हाल चाल पूछ लूं, किन्तु वह मुझे रसाई में व्यस्त दिखी। मैं सोचने लगा कि स्त्री का हृदय कितना कमजोर व नाजुक होता है, जरा सी बात सह नहीं पाता। उसे कैसे समझाऊं वह मेरे लिये नहीं, रिश्तेदारों की खातिर आई थी, पांच लाख की जायदाद के लिए कमीनेपन की हद तक गिरकर आई थी।
शीला क्या-क्या उलटा सीधा सोच रही है। मैं अच्छी तरह समझ रहा था, बात बढ़ाने से क्या फायदा मैंने सोचा। समय आने पर खुद ही समझ जायेगी। मैं और न जाने कितनी देर इसी सोच-विचार में डूबा रहता, कि जिले का एक बड़ा किसान ठाकुर मानसिंह आ गया, मैं ड्राइंग रूम में पहुंचा। उसने बड़े उत्साह से हाथ मिलाया और बिना किसी सूचना के बोला-साहब जी! मन्त्री जी ने यह पत्र दियाहै औरपत्र मेरी ओर मुस्कुराते हुये बढ़ा दिया, जैसे कह रहा हो अब तो मेरा काम करना ही पड़ेगा।
क्यों खैरियत तो है?………. मैंने पत्र खोलते हुए कहा। बात कोई विशेष नहीं, अपना जंगली जमीन के मामले का प्रार्थना पत्र है, मन्त्री जी चाहते हैं कि उसे आप 99 वर्ष की लीज के रूप में बदल दें। मानसिंह की दरख्वास्त पर मंत्री जी ने ‘डू दी नीडफुलÓ लिख दिया था, जिसे यह देहाती नेता मंत्री जी का आदेश समझ रहा था, ‘ठाकुर साहबÓ मैंने कहा इस पत्र में मंत्रीजी ने लिखा है आवश्यक कार्यवाही की जाये। सारे जिले में हमें एक सी नीति बनानी पड़ेगी। मैं शीघ्र इस मामले में कार्यवाही के लिये लिख रहा हूँ ‘साहब जी…..वह प्रार्थना के स्वर में बोला-मुझे दूसरो से क्या लेना-देना…….आप तो मेरा काम निपटाईये……न तो ऊपर वाले आप से कुछ कहेंग और न ही जनता कोई आवाज उठाएगी। सारा जिला मेरी मु_ïी में है। साहब फिर वह जरा रूककर बोला साहब दस लाख का मामला है। आप को भी एक लाख चुनाव का वजन उठाने का वचन मैंने दे ही दिया है। आप को भी एक लाख नकद दे दूंगा, कहिये तो अभी ही इतना सुनते ही मैं चीख पड़ा……… मानसिंह……..मैने कठोर होते हुये कहा……….तुम किससे बात कर रहे हो?Ó
नाराज क्यों होते हैं साहब जी! वह गंभीरता से बोला मुझे तो काम कराना है यह तो सौदा है आपका भी भला-मेरा भी भला, आपको पसन्द नहीं, तो मुझे ही दूसरा कलेक्टर लाना पड़ेगा, उसके इस वाक्य में धमकी भरी थी, ठीक है आप जो चाहें करें, मैं नियम नहीं तोड़ूंगा। मैं उठकर भीतर चला गया, मन मस्तिष्क झनझना रहा था। मैं चुपचाप वेड पर पसर गया। शीला शयन कक्ष में ही थी। बच्चे सो गये थे। उसने मेरी स्थिति भांपते हुये प्रश्र किया ‘क्या कह रहा था ठाकुर?Ó एक लाख दे रहा था- मैं शब्दों को चबाते हुये बोला, जैसे मानसिंह की गर्दन मेरे जबड़े में दबी हो, ‘ले क्यों नहीं लिये- एक लाख बड़ी रकम होती हैÓ यह तुम कह रही हो शीला! मैं गंभीर हो गया। मुझे शीला से इस प्रतिक्रिया की कदापि आशा नहीं थी। कलेक्टर की पत्नी वह भी पुरानी साड़ी में महिला मण्डल की। बैठकों में चली जाती मण्डल की महिलाओं को मेरे पद का ध्यान रहता था, नहीं तो वे शीला पर इतने व्यंग्य कसती, कि शीला महिला मण्डल का नाम लेना भी भूल जाती। मैंने सोचा शायद इसी से त्रस्त हो ऐसा कह रही है। मैं खामोश हो गया मेरी खामोशी उसे खल गई। ‘क्या अपनी भूल पर पछता रहे हो? मानसिंह के ऑफिस को फोन करूं? उसने सहसा प्रश्र किया। मैंने शीला की तरफ देखा, शोख अदा से मुस्करा रही थी मानों कह रही हो, बस एक ही प्रलोभन में चारों खाने चित्त, शीला ने उल्लसित होते हुये कहा- हमें नहीं चाहिए एक लाख, सुख की नींद तो सोते हैं हम लोग, बापट साहब जैसे तो सोते ही नहीं- बिना नींद की गोलियों के रात ही नहीं कटती, लड़के आवारा हो गये हैं। लड़कियों के किस्से तो क्या कहने। मैंने मुस्कराते हुये कहा तुम मेरा साहस हो, मुझे तुमसे यही उम्मीद थी। मैंने बेड स्विच आफ कर दिया।Ó
धीरे-धीरे यह बात सारे जिले में फैल गई कि मुझसे अनुचित काम कराया जाना संभव नहीं, किसी भी प्रकार के दबाव या सिफारिश मुझ पर नहीं चलेगी। ठाकुर मानसिंह भी निराश होकर यहां वहां मेरी बुराई करता रहता था।
मेरे इस व्यवहार से वे लोग तो सन्तुष्टï नजर आ रहे थे जो कि नियम कायदों में जीवन बिताना चाहते हैं पर वे नाराज थे जो नियम कायदों का अपने हित में इस्तेमाल करना चाहते थे। क्रमश: