मामा : कलेक्टर का

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तीसरी कड़ी
कल मामा आये थे, इस जिले के एक गांव में मास्टर हैं, मां बताया करती थीं, कि वे बचपन में ही किसी बात पर नाराज होकर घर से चले गये थे। खुद ही एक शहर में रहकर पढ़े, सुबह शाम एक दुकानदार के यहां काम करते तथा दोपहर कालेज में पढ़ते थे, शिक्षा समाप्त कर इस जिले में अध्यापक हुए। आगे पीछे कोई न था, केवल डिग्रियां थीं, अध्यापकीय पद पर चुनाव तो हो गया किन्तु ऐसे गांव में भेजा गया, जहां कोई जाने को तैयार नहीं होता था। गांव सड़क से दस मील दूर चारों तरफ जंगल से घिरा हुआ था।
मामाजी मूडी तो थे ही, वहां ज्वाइन कर लिया। तब से लगातार पन्द्रह साल से वहीं हैं, कोई दूसरा उस जंगल में जाने को तैयार नहीं होता और मामा निकलने की कोशिश नहीं करते, कहते हैं तपस्या कर रहा हूँ जब पूरी होगी तभी वापिस आऊंगा, बहुत सीधे स्वभाव के हैं मेरे मामा जी, न किसी से लेना और न किसी को देना, उन्होंने विवाह ही नहीं किया। कहते हैं जंगल में मेरे साथ कौन रहेगा।
मैं जब इस जिले में आया तो घर से मां का पत्र आया था कि मैं कभी मामा के गांव जाकर उनसे मिल लूं। मां ने मामा को भी पत्र लिख दिया था कि कभी मुझ से मिल लें। मैंने मामा को बहुत बचपन में देखा था। उस समय मैं मुश्किल से दस बारह वर्ष का रहा हूंगा। मुझे अच्छी तरह याद है कि जब नाना के घर हम लोग नदी नहाने जाते तो मामा रास्ते भर हमें शिक्षा की बातें बताते रहते, शाम को पुराण और उपनिषद की कहानियां सुनाते, उनकी बात सुनते-सुनते कभी तो मैँ भूल में उन्हें मामा जी की जगह मास्साब का संबोधन कर देता था। मां का पत्र आये लगभग तीन माह हो गये थे। किन्तु मामाजी मुलाकात करने जिला मुख्यालय नहीं आये मेरा भी उनके गांव की तरफ जाने का कोई कार्यक्रम नहीं बन पाया था।
शीला ने एक दो बार स्मरण भी दिलाया। पर मैं जानता था मामाजी बिना बुलाये आयेंगे नहीं, बड़े को छोटे के घर जाना चाहिए, इसी में छोटे का सम्मान है। फिर वे रिश्ते में मुझसे बड़े थे। इस कारण मुझे पूरा विश्वास था कि जब तक मैं उनके घर नहीं जाऊंगा, वे आयेंगे नहीं। स्कूल बच्चे और पुस्तकें यही मामाजी की दुनिया थी, वेतन के रूप में उन्हें जो मिलता उसी में गुजारा करते न अधिक चाह न बेकार की दौड़ धूप, प्रतियोगिता भरी दुनियां में कैसे रह लेते हैं मामाजी मैं सोच ही नहीं पाता।
जिले में पंचायतों के चुनाव चल रहे थे, मुझे मामा के गांव जाने का अच्छा अवसर समझ में आया। अपने दौरे कार्यक्रम को इस ढंग से बनाया कि रात्रि विश्राम गांव में हो। संबंधित तहसीलदार को व्यवस्था का भार सौंप दिया गया। दौरे के दौरान मैं जिले के दो-चार अधिकारी मेरे साथ ही रहने थे। मैं नहीं चाहता था कि मामा पर अनावश्यक भार पड़े। मुझे जिले में आये इतने दिन हो गए थे पर कभी मामा ने किसी से कहा भी नहीं था कि मेरा भांजा इसी जिले का कलेक्टर है। यहां तक की उनके गांव के पटेल को भी हमारे रिश्ते का पता नहीं था।
एक बार पटेल किसी काम से मेरे कार्यालय आया था। पहिले तो मैं सोचता रहा कि वह मामा का कोई संदेश देगा, किन्तु जब उसने कोई बात नहीं की तो मैं खुद ही उसके गांव के स्कूल और मास्टर के विषय में पूछा था। उसने भी इसे सामान्य समझ कर साधारण जानकारी दी थी। तहसीलदार खुद चक्कर में था कि कलेक्टर साहब एक छोटे से गांव में रात्रि विश्राम क्यों करना चाह रहे हैं। जहां न विश्राम गृह है और न ही अन्य कोई सुविधा, गांव में रूकने लायक कोई इमारत नहीं थी। मैं किसी के घर रूकता नहीं था। इस कारण स्कूल के एक कमरे में ही मेरे रूकने की व्यवस्था की गई। तहसीलदार ने मामा को मेरे स्वागत सत्कार के बारे में बहुत हिदायतें दीं। उसके मन में डर समा गया इस गांव से संबंधित कोई गलत काम की जानकारी कलेक्टर साहब को हो गई है। इस कारण वे यहां मुकाम कर के वास्तविक स्थिति का पता लगाना चाहते हैं। भ्रष्टï कर्मचारी का दिल चूहे का होता है। उसने गांव के पटेल कोटवार आदि से पूछताछ करके पता भी लगाया था, कि कहीं किसी ग्रामवासी ने उनकी शिकायत तो नहीं कर दी है। उसने उक्त गांव से संबंधित सारे कागजात भी ठीक कर लिये थे। नजराना न पहुंच पाने के कारण जो प्रकरण ठंडे बस्ते में बंधे पड़े थे। उनके विलम्ब की कानूनी बचत सोच ली गई थी। कार्यक्रम के अनुसार मैं शाम साढ़े चार बजे उस गांव में पहुंच गया, गांव के पटेल, पंच, सरपंच तथा मामा के स्कूल के छोटे बच्चे हाथ में झंडियां लिए मेरे स्वागतार्थ पंक्तिबद्घ खड़े किये गये थे। जिलाशिक्षा अधिकारी ने अपने सहायकों को पहले से ही गांव भेज दिया था। वे मेरे साथ थे। तहसीलदार तथा जिला पंचायत अधिकारी भी मेरे साथ थे।
सरपंच ने आगे बढ़कर मुझे माला पहनाई, अन्य सभी खड़े हुए लोगों ने हाथ जोड़कर अभिवादन किया। मैं उनका अभिवादन स्वीकार करते हुए स्कूल के भीतर चला गया। जिला शिक्षा अधिकारी ने स्कूल की इमारत दिखलाई तथा उसके सुधार के कुछ प्रस्ताव रखे। उन्होंने मामा के कार्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि इन मास्साब के कारण ही इस गांव में स्कूल चल रहा है। शहर का कोई लड़का यहां आने को तैयार ही नहीं होता है। मैंने कई बार सोचा भी कि इन मास्साब को यहां से बदल दें, पर कोई विकल्प नहीं मिलता, मास्साब भी पूरी लगन से जिस दिन से नियुक्ति हुई है इस शाला में काम कर रहे हैं। जब स्कूल खुला था तब पांच लड़के थे आज पचास हो गये हैं। अगले वर्ष इन सहायक भी मिल जायेगा। मैं कुछ नहीं बोला केवल मुस्कुरा दिया। मामा भी हलका सा मुस्कुरा उठे।
मैं तहसीलदार, जिला शिक्षा अधिकारी तथा सरपंच भीतर के कमरे में चले गये, चाय नाश्ते के साथ गांव की समस्याओं पर बातेें होने लगीं, कुछ देर बाद मैंने तहसीदलदार से कहा कि मास्साब से अकेले में मिलना चाहता हूँ सब लोग आश्चर्य में थे कि न जाने क्या रहस्य है। क्या मामला है। पर प्रकट रूप में कोई किसी से कुछ कह नहीं पा रहा था। कमरे में एक पलंग बिछा दिया गया था। साथ ही टेबिल रखी थी, जिस पर लालटेन जल रही थी। टेबिल के पास ही पांच छै: कुर्सियां पड़ी थी। मामा जी भीतर आये तो मैंने उठकर उनका अभिवादन किया। जब वे कुर्सी पर बैठ गये, तो मैं बैठा।
आप जिला मुख्यालय नहीं आए मां का पत्र मिल गया था न?
पत्र तो ठीक समय पर मिला था वे बोले पर मैंने सोचा किसी भी दिन आऊंगा, तुम मेरे जिले में आ गऐ हो मुझे कितना गौरव हो रहा है इसका कोई अन्दा$ज नहीं लगा सकता पर सोचता हूँ हम दोनों इस जिले में परदेसी हैं तुम जिले के सर्वोच्च पद पर हो और मैं अदना सा मास्टर कई सालों से इस जिले में हूँ हमारे संबंधों का पता लगते ही न जाने कितने प्रेशर मेरे पास आने लगेंगे, इसलिये मैँ नहीं आया। ‘ यह आपका बोलना सही नहीं था मामा जीÓ मैंने स्पष्टï कहा ‘पद और रिश्ते अलग होते हैं। क्या आपको विश्वास है कि आपका भान्जा रिश्ते के आधार पर पद के कर्तव्यों को प्रभावित करेगा।Ó मामाजी एक क्षण चुप रहे, मुझे लगा कि मेरी बातें सुनकर नाराज तो नहीं हो गए। उन्होंने आंखों पर चढ़ा चश्मा उतारा कुर्ते के एक छोर से उसका कांच साफ किया तथा पुन: आंखों पर चढ़ा लिया। मैं देख रहा था कि कमरे के दरवाजे के पास चिपटा तहसील का चपरासी हमारे वार्तालाप को गौर से सुन रहा है।
वे बोले सही है बेटा उनका गला भर आया-किन्तु आज का माहौल इतना खुदगर्ज हो गया है कि अपना काम निकालने के लिए कहां-कहां से जुगाड़ें लगाई जाती हैं। आज तक शंकाहीन रहकर शिक्षक की दीनहीन $िजन्दगी गुज़ारी है क्यों उसे कुछ समय के लिए अलंकृत किया जाये। आज तक मैं सोर्सहीन बेचारा मास्टर हूँ कल ही कलेक्टर का मामा बन जाऊंगा।
तो क्या होगा, मैं बोला
‘होगा तो कुछ नहीं अनावश्यक रूप से मेरा मान बढ़ेगा जिसका आधार केवल तुमसे अटके काम होंगे।Ó कितना ऊलजलूल सोचना था मामाजी का।
मैंने चपरासी को आवाज दी चपरासी आया। मैंने कहा मैं खाना मामाजी के साथ ही खाऊंगा।
अफसरों में हमारे रिश्ते उजागर हो गए थे। मैं जितने समय मामाजी के गांव में रहा मैंने नोट किया कि मेरे साथ के अफसरों तथा गांव के पटेल का व्यवहार मामा के साथ अचरज उत्पन्न करने वाली स्थिति तक कोमल हो गया था।
थोड़े समय में ही सारे जिले में मेरी अनुशासन प्रियता की बात फैल गई थी। किसी भी प्रकार का प्रभाव प्रेशर या सिफारिश मेरे सामने नहीं आ सकता था। मेरे इस स्वभाव के कारण जिले के वे लोग तो प्रसन्न थे जो निष्पक्ष रहकर नियमों के अनुसार कार्यपसंद करते थे। पन उन की संख्या कम ही थी। आज तो ऐसे लोगों की भरमार हर स्तर पर है जो कि नियमों की व्याख्या अपने पक्ष में चाहते हैं, हर सही गलत तरीके से अपना हित साधना ही जिनका लक्ष्य हो गया है।
मेरे और मामा के संबंध उजागर हुए तो जिले के कई लोग उनके गांव आने लगे, इस आशा से कि मामा उनकी सिफारिश कर दें। मामा ने जब सिफारिश करने से इन्कार किया, तो उन पर प्रेशर डाला जाने लगा तथा धमकियां आने लगीं। वे मामूली से मास्टर थे। कहीं भी उन्हें दबाया जा सकता था। उनके गांव का पटेल एक मामले में उलझा था। उसने मामा से कई बार कहा कि वे मुझ तक उसकी बात पहुंचा दें। परन्तु उन्होंने हां नहीं की। पटेल ने उन्हें तंग करना शुरू कर दिया।
उसी की शिकायत लेकर मामा आये हैं। मामा वर्षों से पटेल की बाखर की एक कोठरी में रह रहे थे। अकेले आदमी थे। वहीं खाना बनाते तथा वहां एक पलंग पड़ा था जो उनके सोने तथा बैठने दोनों के काम आता था। नहाना धोना आदि सारा कार्य गांव के पास से बहने वाली नदी में होते थे। नहाकर लौटते समय वे एक बाल्टी भरकर ले आते जो उनकी रसोई तथा पीने के पानी के लिये पर्याप्त होती थी।
मामा ने जब पटेल की सिफारिश मुझसे न की तो वह उनकी कोठरी के सामने बैल बांधने लगा। बैलों के मल मूत्र से चारों तरफ गंदगी रहने लगी। मामा ने एक दो बार पटेल से कहा तो उसने जगह की तंगी का बहाना बना दिया।
मामा सारी स्थिति समझ गये, उन्होंने फिर पटेल से कुछ नहीं कहा और मुलाकात के बहाने मेरे पास आ गये। मामा की पन्द्रह साल की एकान्त साधना मेरी पन्द्रह मिनिट की मुलाकात से भंग हो गई कितना विचित्र है हमारा समाज, अधिकारी का बदला उसके नियर और डियर लोगों से क्या अधिकारी से संबंधित लोगों की यही नियति है। कि वे भी उस अधिकार का सुख और दुख दोनों उठायें, मामा चाहते तो जरा सा झूठा, आश्वासन देकर सालों तक पटेल से रोज हलुआ-पूड़ी खाते रहते।
मैं कुछ लज्जित सा अनुभव करने लगा और मैंने रिसीवर उठाकर जिला शिक्षा अधिकारी को रिंग किया। मामा का तबादला एक कस्बे को करा दिया।