(19 वीं किश्त)
दूसरी तरफ इब्ने नज्र (हजरत अनस अन्सारी के चचा) ने यह सुना तो कहा, रसूलुल्लाह के बाद हम जिंदा रह कर क्या करेंगे? और फिर इस बे जिगरी से लडे कि कुछ ही देर में अस्सी से ज्यादा घावों की लज्ज्त समेट कर शहदत का प्याला लबों से लगा लिया।
फिर हालत पलटना शुरू हुई। हर मुस्लिम सिपाही अपनी-अपनी जगह तलवारों में घिरा था और हुजूर सल्ल. को देखने के लिए बेताब। सबसे पहले काब बिन मालिक ने हुजूर सल्ल. को देख लिया और पुकार कर कहा कि, मुसलमानों! यह रहे खुदा के रसूल!‘
फिर ज्यों-ज्यों यह खबर फैलती गयी, मुस्लिम फौजियों में नया जोश फैलने लगा, जांबाज हर तरफ से मर्कज की तरफ दौडने लगे, दुश्मनों का हल्ला कम हुआ, तो हुजूर सल्ल. पहाड की चोटी पर चले गये। अबू सुफिया ने उधर का रूख किया, तो सहाबियों ने बुलन्दी से पत्थर बरसा कर उसे लौटा दिया। अब दुश्मन को डर हुआ कि उसे जो इत्तिफाक से जीत मिल गयी है, कहीं वह हाथ से जाती न रहे, इसलिए मक्की फौज की टुकडियां भी सिमटने लगीं।
अबू सुफियान ने सामने की एक पहाडी पर चढकर हुजूर के बारे में यकीनी जानकारियां हासिल करनी चाहीं, आखिर उस ने बुलंद आवाज में हुजूर सल्ल. और अबूबक्र और उमर रजि. का नाम ले लेकर पुकारा कि कोई है। उधर से जान-बूझ कर कोई जवाब न दिया गया, तो कहने लगा, सब मारे गये।
हजरत उमर रजि. तडप कर बोल उठे, ओ खुदा के दुश्मन! हम सब जिन्दा व सलामत हैं।
अबू सुफियान ने नारा लगाया, ऐं हुबल! तू सर बुलंद रहे।
ृ जवाब मिला, अल्लाह ही की जात बुलन्द व बरतर है।
अबू सूफियान ने फिर हांक लगायी, हमारे साथ उज्जा है, तुम्हारे साथ उज्जा नहीं।
इधर से कहा गया, अल्लाह हमारा आका है, तुम्हारा कोई आका नहीे।
इस लडाई में 70 मुसलमान शहीद हुए और 40 घायल। दूसरी तरफ दुश्मन फौज के सिर्फ 30 आदमी मौत के घाट उतारे जा सके।
उहुद के बाद
दो-एक कबीलों को छोड कर अरब के लगभग तमाम ही कबीले इस नयी उठती ताकत के मुखालिफ थे। लेकिन बद्र की जीत के बाद इन कबीलों की हिम्मतें कुछ पस्त हो गयीं थीं और ये एक तरह से तरद्दुद में पड गए थे कि अब क्या रवैया अपनाया जाए, लेकिन उहुद की लडाई के बाद हालात बदल गये और अरब के बहुत-से कबीले इस्लाम के खिलाफ उठ खडे हुए। ऐसे कुछ कबीलों के वाकिए नीचे लिखे जाते हैं-
1. मुहर्रम सन् 04 हि. में कफत्न इलाके के तल्हा बिन खुवैलद और सलमा बिन खुवैलद ने बनी असद बिन खुजैमा को मदीना के खिलाफ बगावत पर तैयार किया। इत्तिला मिलते ही हजरत मुहम्मद सल्ल. अबू सलमा मरूजूमी को डेढ सौ आदमियों के साथ इन के मुकाबले के लिए रवाना फरमाया। ये लोग कुत्बा पहुंचे तो दुश्मन भाग निकले।
2. इस के बाद उसी महीने में असा पहाडियों के एक कबीले लेहमान ने मदीने पर चढाई का इरादा किया। हजरत अब्दुल्लाह बिन अनीस, उनके मुकाबले के लिए भेजे गए और उनका सरदार सुफियान कत्ल किया गया और हमला करने वाले वापस हो गए।
3. कुरैश ने कौम अज्ल और कारा के सात शख्सों को गांठ कर मदीना में नबी सल्ल. के पास भेजा कि हमारे कबीले इस्लाम लाने को तैयार है, उनको सिखाने-पढाने के लिए अपने कुछ लोगों को भेज दीजिये। रसूलुल्लाह सल्ल्. ने दस बुजुर्ग सहाबियों को, जिन के सरदार आसिम बिन साबित थे, उनके साथ कर दिया। जब ये सहाबी उनके कब्जे में हो गए तो उनके दो सौ नव-जवान आए कि उन्हें जिन्दा गिरफ्तार कर लें। आठ सहाबी मुकाबला करते हुए शहीद हुए और दो बुजुर्ग हजरत खुबैब और हजरत जैद रजि. गिरफ्तार कर लिए गए।
सुफियान हजली मक्का में ले गया कुरैश के हाथ बेच दिया, हजरत खुबैब ने उहूद की लडाई में एक शख्स हारिस बिन आमिर को कत्ल किया था। हारिस के बेटों ने हजरत खुबैब को इस लिए खरीद लिया कि वे उन्हें अपने बाप के बदले में कत्ल करेंगे। हारिस के बेटों ने उन्हें कुछ दिनों तक भूखा प्यासा कैद रखा।
फिर जालिमों ने खुबैब रजि. के फांसी को तख्ते के नीचे ले जाकर खडा कर दिया और कहा, अगर इस्लाम छोड दो तो तुम्हारी जान-बख्शी हो सकती है। उन्होंने जवाब दिया कि जब इस्लाम बाकी न रहा तो जान को बचा कर क्या करेंगे।
अब काफिरों ने पूछा कि कोई तमन्ना हो तो बयान करो।
हजरत खुबैब रजि. ने कहा, दो रक्अत नमाज पढ लेने की हमें मोहलत दी जाए। मोहलत दी गयी, उन्होंने नमाज अदा की। हजरत खुबैब रजि. ने कहा, मैं नमाज में ज्यादा वक्त लगाता, मगर सोचा कि दुश्मन यह न कहें कि मौत से डर गया है। फिर उन जालिमों ने हजरत खुबैब को फांसी पर लटका दिया और उनके जिस्म के एक-एक हिस्से पर चरके लगाए।