तारीखे इस्लाम

0
208

(20 वीं किश्त)
ऐसे ही हजरत जैद को सफवान बिन उमैया रजि. ने कत्ल करने के लिए खरीदा और खरीद कर शहीद कर डाला। अल्लाहु अक्बर! इन दोनों का दिल इस्लाम पर कितना मुत्मईन था, उनको दीने हक पर कितनी इस्तिकामत थी, इन को हमेशा की निजात और खुदा की खुशनूदी का कितना यकीन था कि इन तमाम तक्लीफों और घावों को बर्दाश्त करते हुए जरा उफ तक न की।
4. सफर सन् 04 हि. में किलाब कबीले का सरदार बूबरा आंहजरत सल्ल. की खिदमत में हाजिर हुआ और कहा कि लोगों को मेरे साथ भेज दीजिये। मेरी कौम के लोग इस्लाम की दावत सुनना चाहते हैं। आंहजरत सल्ल. ने सत्तर सहाबी उनके साथ कर दिए। उनमें से बहुत से अस्हाबे सुफ्फा में से थे। इन लोगों को कबीले के रईस आमिर बिन तुफैल ने घेर कर कत्ल करा दिया। इस वाकिए से आंहजरत सल्ल. को बेइंतिहा सद्मा हुआ, महीने भर तक फज्र की नमाज में आपने इन जालिमों के लिए बद-दुआ फरमायी। इन सत्तर सहाबियों में से सिर्फ एक सहाबी हजरत अम्र बिन उमैया को आमिर ने यह कह कर छोड दिया था कि मेरी मां ने एक गुलाम आजाद करने की मन्नत मानी थी, जा, मैं तुुझे इस मन्नत में आजाद करता हूं।
जब हजरत अम्र बिन उमैया वापस आ रहे थे तो रास्ते में उन्हें आमिर के कबीले के दो आदमी मिले। आपने उन्हें कत्ल कर दिया और यह समझे कि हमने आमिर कबीले के लोगों की बे-वफाई का कुछ तो बदला ले लिया।
जब आंहजरत सल्ल. को इस वाकिए का इल्म हुआ तो आपने सख्त ना पसंद फरमाया, क्योंकि आप उस कबीले के लोगों को जबान दे चुके थे और यह बात इस इकरार के खिलाफ थी। चुनांचे आपने इन दोनों के खूंबहा अदा कर देने का एलान फरमा दिया।
यहूदी अगरचे हिजरत के पहले ही साल अम्न व शान्ति का अहद मुसलमानों से कर चुके थे, लेकिन उनकी शरारत पसन्दी ने उन्हें ज्यादा दिनों तक छिपा रहना पसन्द न किया। अह्द करने के डेढ साल बाद ही शरारतों की शुरूआत हो गयी।
0 जब मुसलमान नबी सल्ल. के साथ बद्र की तरफ गए हुये थे, उन्हीं दिनों का जिक्र है कि एक मुसलमान औरत जो केनुकाअ के मुहल्ले में दूध बेचने गयी, कुछ यहूदियों ने शरारत की और उसे भरे बाजार में नंगा कर दिया। औरत की चीख पुकार सुन कर एक मुसलमान मौके पर जा पहुंचा। उसने गुस्से में आकर फसादी यहूदी को कत्ल दिया। इस पर सब यहूदी जमा हो गये, उस मुसलमान को भी मार डाला और बलवा भी किया। नबी सल्ल. ने बद्र से वापस आकर यहूदियों को इस बलवा के बारे में मालूम करने के लिए बुलाया, उन्हांेने समझौते का कागज भेज दिया और लडाई पर तैयार हो गये।
यह हरकत अब बगावत तक पहुंच गयी थी, इसलिए उनको यह सजा दी गयी कि मदीना छोड दें और खैबर में जाकर आबाद हों।
हम पहले लिख चुके हैं कि कुरैश ने मदीने के बुतपरस्तों को नबी सल्ल. के खिलाफ लडाई लडने के बारे में खत लिखा था, मगर हजरत मुहम्मद सल्ल. की मुस्तैदी ने उनकी चाल न चलने दी। फिर बद्र में हार जाने के बाद कुरैश ने यहूदियांे को लिखा कि ‘तुम जायदादों और किलों के मालिक हो, तुम मुहम्मद सल्ल. से लडो, वरना हम तुम्हारे साथ ऐसा और ऐसा करेंगे, तुम्हारी औरतों के पाजेब तक उतार लेंगे।’ इस खत के मिलने पर बनू नजीर ने अहद तोडने और रसूलुल्लाह सल्ल. को धोखा देने का इरादा कर लिया।
सन0 4हि. का जिक्र है कि नबी सल्ल. एक कौमी चन्दा हासिल करने के लिए बनू नजीर के मुहल्ले में तश्रीफ ले गये। उन्होंने आंहजरत सल्ल. को एक दीवार के नीचे बिठा दिया और तद्बीर यह की कि इब्ने जह्हाश दीवार के उपर जाकर एक भारी पत्थर नबी सल्ल. पर गिरा दे और हुजूर सल्ल. की जिंदगी का खात्मा कर दे।
प्यारे नबी सल्ल. को इस शरारत का इल्म हो गया और सही-सालिम चले आए।
आखिरकार मजबूर होकर प्यारे नबी सल्ल. ने उनके किले को घेर लिया। यह घेरा 15 दिन तक चलता रहा, यहां तक कि बनू नजीर इस शर्त पर राजी हो गये कि वे अपना जितना माल व अस्बाब ऊंटों पर लाद कर ले जा सकें, ले जाएं और अपने घरों को छोड कर निकल जाएं। उन्होंने छः सौ ऊंटों पर सामान लादा, अपने घरों को अपने हाथों से गिराया, बाजे बजाते हुए निकले और खैबर जा बसे।