नवाब नजर मोहम्मद खान

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नवाब वजीर मोहम्मद खान के 1816 में इंतकाल फरमाने पर इनके बेटे नजर मोहम्मद खान ने भोपाल रियासत की बागडोर संभाली। इस वक्त की बदअम्नी और मराठा सेनाओं के हमले की आशंकाओं को देखते हुए उन्होंने रियासत की रक्षा करने के उद्देश्य से ईस्ट इण्डिया कम्पनी से समझौता करके रियासत की नाम मात्र की स्वतंत्रता पर उनको अपने यहां पाॅलीटिकल एजेंट नियुक्त करने की अनुमति दे दी। सीहोर छावनी में पाॅलीटिकल एजेंन्ट मुकर्रर हुआ।
इसमें कोई शक नहीं कि वो अपने पिता नवाब वजीर मोहम्मद खान की ही तरह बहादुर और रियासत की देखभाल करने की क्षमता रखते थे। परंतु अंग्रेजों के साथ किया गया समझौता इनको रास नहीं आया और इनके परिवार में नाराजगी फैल गई।
नवाब नजर मोहम्मद खान तीन साल हुकूमत नहीं कर पाये थे कि एक रिवायत के अनुसार अपने एक रिश्ते के भाई फौजदार मोहम्मद खान के हाथों शहीद हो गए। इनके इंतकाल से नवाबान भोपाल के संघर्ष पूर्ण और खून से भरे दौर से निकल कर भोपाल रियासत बेगमों के पुर अमन और जर्रीं (सुनहरे) दौर में दाखिल हुई। नवाब गौहर बेगम ने इनकी जगह पर रियासत की बागडोर संभाली। बाद में गौहर बेगम कुदसिया बेगम के नाम से मशहूर हुईं।