तारीखे इस्लाम

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(सत्ताइसवीं किश्त)
मक्का जीत लिया गया
खाना काबा खालिस तौहीद का वह मर्कज था, जिसे हजरत इब्राहीम अलैहि. ने खालिस खुदा की इबादत के लिए तामीर फरमाया था, लेकिन वह अभी तक मुश्रिकों के कब्जे में था और शिर्क का सब से बडा गढ बना हुआ था।
आंहजरत सल्ल. हजरत इब्राहीम अलैयहिस्सलाम के दीन की दावत देते थे और खालिस तौहीद के परस्तार थे। इस एतबार से जरूरी था कि तौहीद के इस पाक मर्कज को तमाम गंदगियों से जल्द से जल्द पाक किया जाए, लेकिन अभी तक हालात ने इसकी इजाजत नहीं दी थी, मगर अब आंहजरत सल्ल. ने यह अन्दाजा फरमा लिया कि अब वक्त आ गया है कि अल्लाह के इस मुकद्दस घर को सिर्फ उसी की इबादत के लिए खास कर लिया जाए और बुतपरस्ती की तमाम ना-पाकियों से इस घर को पाक कर दिया जाए, चुनांचे आंहजरत, सल्ल. ने उन तमाम कबीलों के पास पैगाम भेजे, जिनसे समझौते थे और इस बात की एहतियात फरमायी कि मक्के वालों की इस तैयारी की खबर न होने पाये।
जब सब तैयारियां मुकम्मल हो गयीं, तो आंहजरत सल्ल. ने 20 रमजानुल मुबारक को मक्के की तरफ कूच फरमाया लगभग दस हजार जां-निसारों का निहायत शानदार लश्कर साथ था और रास्ते में अरब के दूसरे कबीले भी मिलते जा रहे थे।
इस्लामी लश्कर जब मक्के के पास पहुंचा, तो अबू सुफियान,जो लश्कर का अन्दाजा कर रहे थे, गिरफ्तार कर के आंहजरत सल्ल. की खिदमत में पेश किये गये।
यह वही अबू सुफियान है, जो अब तक इस्लाम की मुखालफत में बहुत पेश-पेश थे, उन्होंने ही बार-बार मदीने पर हमले की साजिशें की थीं, यहां तक कि आंहजरत सल्ल. को कत्ल कराने की खुफिया तद्बीरें भी की थीं। ये सब बातें ऐसी थीं कि अबू सुफियान को फौरन ही कत्ल करा देना चाहिये था, लेकिन आंहजरत सल्ल. ने उन पर मेहरबानी की नजर डाली और फरमाया कि-
’जाओ, आज तुम से कोई पूछ-गछ न की जाएगी। अल्लाह तुम्हें माफ करे। वह सब रहम करने वालों से बढकर रहम करने वाला है।
अबू सुफियान के साथ यह मामला बिल्कुल ही अनोखा मामला था, आप सल्ल. की इस मेहरबानी ने अबू सुफियान के दिल की आंखें खोल दीं और उन्हें यह मालूम हो गया कि मक्के पर फौज लेकर आने वाला तो अपने दुश्मनों से बदला लेने के लिए उनके खून का प्यासा है और न दुनिया के बादशाहों की तरह घमंड और गुरूर में पडा हुआ है, यही वजह थी कि अगरचे आंहजरत सल्ल. ने अबू सुफियान को आजाद कर दिया, लेकिन वह मक्का वापस न गये, बल्कि इस्लाम कुबूल करके आंहजरत सल्ल. के जां-निसारों में शामिल हो गये।
नबी सल्ल. की ख्वाहिश यह थी कि मक्के वालों को इस वाकिए की खबर न होने पाये, चुनांचे ऐसा ही हुआ कि जब आंहजरत सल्ल. ने मक्का तक पहुंच कर पडाव डाला और मक्का वालों को खबरदार करने के लिए लश्कर में अलाव रोशन करने का हुक्म दिया, तब उनको खबर हुई।
दूसरी सुबह नबी सल्ल. ने हुक्म दिया कि फौज मुख्तलिफ रास्तों से शहर में दाखिल हो,और इन हुक्मों की पाबन्दी करो-
1. जो कोई शख्स हथियार फेंक दे, उसे कत्ल न किया जाए,
2. जो कोई शख्स खाना-काबा के अन्दर पहुंच जाए, उसे कत्ल न किया जाए,
3. जो कोई शख्स अपने घर में बैठा रहे, उसे कत्ल न किया जाए,
4. जो कोई शख्स अबू सुफियान के घर जा रहे, उसे कत्ल न किया जाए।
5. जो कोई शख्स हकीम बिन हिजाम के घर जा रहे, कत्ल न किया जाए,
6. भागने वाले का पीछा न किया जाए,
7. जख्मी को कत्ल न किया जाए,
8. कैदी को कत्ल न किया जाए।
शहर में दाखिल होने वाले दस्तों में से सिर्फ उस दस्ते का जो खालिद बिन वलीद रजि. के मातहत था, कुछ मुकाबला हुआ, जिसमें मक्के वालों को भागना पडा बाकी सब दस्ते बे-रोक-टोक शहर में दाखिल हो गये।
अल्लाह के रसूल सल्ल. जिस वक्त 20 रमजान को शहर में दाखिल हुए, उस वक्त सर झुकाए कुरआन मजीद (सूरः फत्ह) की तिलावत फरमा रहे थे। ऊंट की सवारी पर बैतुल्लाह को जा रहे थे और ऊंट पर अपने आजाद किए हुए गुलाम जैद के बेटे उमामा रजियल्लाहु अन्हु को सवार कर रखा था। वहां पहुंच कर पहले खुदा के घर को बुतों से पाक किया, उस वक्त बैतुल्लाह के आस-पास 360 बुत रखे हुए थे। नबी सल्ल. धनुष के कोने (या छडी की नोक से) हर एक बुत को गिराते जा रहे थे और मुबारक जुबान से यह पढ रहे थे-
हक आ गया और बातिल चला गया। बेशक बातिल जाने के लिए है। बनी इस्राईल, रूकूअ 9
हुनैन के मैदान में
मक्का की जीत और कुरैश के लगभग सभी लोगों के इस्लाम कुबूल कर लेने की खबर सुन कर अरब के उन कबीलों में ज्यादा खलबली और परेशानी पैदा हुई जो मुसलमानों के साथ न थे, उन्हीं में हवाजिन और सकीफ के कबीले थे, जो तायफ और मक्का के दर्मियान रहते थे और कुरैश के दुश्मन समझे जाते थे। ये कबीले न मुसलमानों के साथ थे, न मक्का के कुरैश के, उनको यह चिन्ता हो गयी कि मुसलमान मक्का के बाद अब हमारे ऊपर हमलावर होंगे। इसी डर ने उन्हें एक भारी तायदाद में फौज की शक्ल में जमा कर दिया।
नबी सल्ल. को जब इस की खबर पहुंची, तो आप ने भी लडाई की तैयारी शुरू कर दी। दस हजार मुहाजिर व अंसार आपके साथ मदीने से आए थे, वे सब और दो हजार मक्का के लोग, इस तरह कुल बारह हजाार की फौज आप के साथ मक्का से रवाना हुई। जब यह फौज हुनैन की घाटी में पहुंची तो दुश्मनों ने इस्लामी फौज के करीब पहुंचने की खबर सुन कर हुनैन की घाटी के दोनों तरफ घातों मंे छिप कर मुसलमानों की फौज का इन्तिजार किया।
मुसलमान अभी ढलान पर ढलती रात की तारीकी में उतर ही रहे थे कि अचानक दुश्मनों ने निशाने पर आ कर तीरंदाजी शुरू कर दी। इस अचानक हमले से मुसलमान घबडा गये, वे बिखर गए, हुजूर सल्ल. ने इस मौके पर भी हिम्मत और जुरात से काम लिया। आपके आस-पास कुछ गिनती के साथियों को छोड कर मुसलमानों में बिखराव पैदा हो चुका था। आपने एलान करा के मुसलमानों को जमने और हुजूर सल्ल. के पास आ जाने पर जोर दिया। मुसलमानों में ढांढस बंधी, फिर उन्होंने संभल कर ऐसा जोरदार हमला किया कि लडाई का नक्शा ही बदल गया। दुश्मन मैदान छोडकर भागे, वे दो हिस्सों मंे बंट गये-
0 उनका सरदार मालिक बिन औफ लडने वाले मर्दों को लेकर तायफ के किले में जा ठहरा।
0 दूसरा गिरोह, जिसमें उनके बाल-बच्चे थे और माल व दौलत थी, औतास की घाटी में जा छिपा।
(क्रमशः)
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