(उन्तीसवीं किश्त)
मुसलमानों के लिए उस वक्त किसी जंगी तैयारी के लिए तैयार हो जाना एक बडा सख्त इम्तिहान था, मुल्क में सूखा पडा हुआ था, सख्त गर्मी का मौसम था, फस्ले पकने की करीब थीं और लडाई का सामान भी पूरा न था। इस हालात के बावजूद नबी करीम सल्ल. ने मौके की नजाकत का अन्दाजा फरमाने के बाद लडाई का आम एलान कर दिया और साफ-साफ बता दिया कि कहां जाना है और किस लिए जाना है।
गरज आप तीस हजार की फौज के साथ मदीने से तबूक के लिए निकले। आपने अपने पीछे मदीने में सबाअ बिन अर्तफा को खलीफा बनाया और हजरत अली मुर्तजा रजि. को मदीने में अहलेबैत की जरूरतों के लिए रोक दिया।
फौज में सवारियों की बडी कमी थी। 18 आदमियों के लिए एक ऊंट मुकर्रर था। रसद के न होने की वजह से अक्सर जगह पेडों के पत्ते खाने पडे, जिस से होंठ सूज गये थे। पानी कहीं-कहीं तो मिला ही नहीं। (ऊंट को, अगरचे वे सवारी के लिए पहले ही कम थे) जिब्ह करके उसकी आंतों का पानी पिया करते थे।
गरज यह कि पूरे सब्र और जमाव के साथ, तमाम तक्लीफों को सहते हुए ये लोग तबूक पहुंच गए।
तबूक पहुंच कर नबी सल्ल. ने एक महीने कियाम फरमाया। शाम वालों पर इस हरकत का असर यह हुआ कि उन्होंने अरब पर हमलावर होने का ख्याल उस वक्त छोड दिया और इस हमलावरी का बेहतरीन मौका आंहजरत सल्ल. की वफात के बाद फौरन करार किया।
अभी आंहजरत सल्ल. तबूक से मदीना वापस तश्रीफ नहीं लाए थे कि रास्ते ही में सूरः तौबा नाजिल हुई और अल्लाह तआला ने अपने नबी सल्ल. की बहुत सी ऐसी हिदायतें दीं, जिन पर आप को मदीना वापस आने के बाद अमल करना थ।
अब तक मुनाफिकों के साथ जिस नर्म पालिसी पर अमल किया गया था और जिस के मातहत उनके वे उज्र कुबूल कर लिए गये थे, जो उन्होंने लडाई से जान बचाने के लिए तबूक के सफर के वक्त आहंुजूर सल्ल. की खिदमत में पेश किए थे, उस को बिल्कुल बदल देने की हिदायत की गयी और साफ-साफ कह दिया गया कि उनके साथ मामला सख्ती का किया जाए। ये अगर ईमान के अपने झूठे दावे को सही साबित करने के लिए माली इम्दाद पेश करें, तो वह कुबूल न की जाए। उनमें से कोई मर जाए तो नबी सल्ल. उसके जनाजे की नमाज न पढाएं। मुसलमान उनसे शख्सी और खानदानी ताल्लुकात की वजह से खुलूस और दोस्ती का मामला न रखें।
आखिरी हज
हज इस्लाम की एक बडे दर्जे की बुनियादी इबादत है।
हज के फर्ज किए जाने का हुक्म सन् 05 हि. में नाजिल हुआ।
इसी साल हुजूर सल्ल. ने हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि. को अमीरे हज बना कर तीन सौ साथियों के साथ मक्का रवाना फरमाया कि उनको अपनी सरदारी में हज कराएं।
हजरत अबूबक्र रजि. की सरदारी के साथ हजरत अली रजि. को एक दूसरी जिम्मेदारी सौंपी कि वह सूरः बरात (पहली 40 आयतें) हज के इज्तिमाअ में सुनाएं और अल्लाह के हुक्म के मुताबिक जरूरी एलान लोगों तक पहुंचा दें। जिन बातों का एलान किया गया, वे यह थीं-
0 एक तो पिछले जाहिलाना शिर्क पर कायम रह कर जिन लोगों ने हुजूर या इस्लामी रियासत से समझौते करके अपने को महफूज कर रखा था, उनके सामने एलान कर दिया गया कि चार महीने की मोहलत है, इसके बाद तमाम ऐसे समझौते अल्लाह के हुक्म से खत्म समझे जाएंगे इस बीच वे अपने लिए रास्ते का चुनाव कर लें कि उन्हें क्या करना है। यह उन मुश्रिकों के लिए एलान था जिन्होंने समझौतों के खिलाफ काम किए थे और इस्लाम के खिलाफ दुश्मनी और लडाई के खतरनाक मोर्चे बनाए थे।
0 रहे वे मुश्रिक, जिन्होंने ईमानदारी के साथ समझौते का ख्याल रखा था, उनके समझौतों को उनकी मुकर्रर मुद्दों तक बहाल रखा गया।
0 एक एलान यह किया गया कि आगे से हरम पाक और मस्जिद के मुतवल्ली मुश्रिक न रहने पाएंगे।
0 आगे कोई मुश्रिक हरम की हद में दाखिल न हो सकेगा, न कोई शिर्क भरी रस्म अदा की जाएगी।
0 मुश्रिकों के तरीके पर कोई भी शख्स नंगे होकर बैतुल्लाह का तवाफ न कर सकेगा।
0 इसी मौके पर खुदा की तरफ से चार महीनों के हराम किए जाने का एलान भी किया गया और इन महीनों में मनमानी तब्दीलियों का दरवाजा बन्द कर दिया गया।
सन् 10 हिजरी में नबी सल्ल. ने हज का इरादा फरमाया और हर तरफ इत्तिला भेज दी गयी कि नबी सल्ल. हज के लिए तश्रीफ ले जाने वाले हैंं इस इत्तिला के बाद गिरोह-गिरोह करके लोग मदीना में जमा होने लगे। इस में हर दर्जे और हर तबके के लोग थे।
जुल हुलैफा में नबी सल्ल. ने एहराम बांधा और यहीं से लब्बैक अल्लाहुम्म-म लब्बैक शरी-क ल-क लब्बैक इन्नलहम-द वन्निअ-म-त व-ल-कलमुल-क ला शरी-क ल-क का तराना बुलन्द किया और मक्का मुअज्ज्मा को एहराम के साथ रवाना हो गये।
इस मुकद्दस कारवां के साथ रास्ते में हर-हर जगह से जत्थे के जत्थे लोग शामिल हो जाते थे। नबी सल्ल. का राह में जब किसी टीले से गुजर होता था, तीन-तीन बार तक्बीर ऊंची आवाज से कहते थे।
जब मक्का के करीब पहुंचे, तो जीतुवा में थोडी देर के लिए ठहरे और फिर मक्का के ऊपरी हिस्से से इंसानों की इस भीड को लेकर मकका में दाखिल हुए और दिन में उजाले में काबे का तवाफ किया।
काबे की जियारत से फारिग होने के बाद सफा और मर्वः पहाडों पर तश्रीफ ले गये, उनकी चोटियों पर चढ कर और काबे की तरफ रूख करके तक्बीर कही और-
लाइला-ह इल्लाल्लाहु वहदहू लाशरी-क लहू-लहुल मूल्कु व लहुल हम्दु व हु-व अला कुल्लि शेइन कदीर. लाइला-ह इल्लल्लाहु वहदहू अंजज वअद-हू व न-स-र अब्दहू व ह-ज-मल अहजा-ब वहदहू. के तराने गाए।
आठवीं जिलहिज्जा को मक्का की कियामगाह में रवाना होकर मिना ठहरे। जुहर, अस्स्र, मग्रिब, इशा, सुबह की नमाजें मिना में अदा फरमायीं।
नबी जिलहिज्जा को आंहजरत सल्ल. अलैहि व सल्लम सूरज निकलने के बाद नमरा की घाटी में आकर उतरे। उस घाटी के एक तरफ अरफात में तश्रीफ लाये, जो तमाम आदमियों से भरा हुआ था और हर शख्स तक्बीर व तहलील, तहमीद व तक्दीस में लगा हुआ था। उस वक्त एक लाख चवालीस हजार (या चैबीस हजार) का मज्मा अल्लाह के हुक्मों को पूरा करने के लिए हाजिर था।
(तीसवीं किश्त)
नबी सल्ल. ने पहाडी पर चढ कर और कसवा पर सवार हो कर खुत्बा फरमाया-
0 लोगो! मैं ख्याल करता हूं कि मैं और तुम फिर कभी इस मज्लिस में इकट्ठे नहीं होंगे।
0 लोगों! तुम्हारे खून, तुम्हारे माल और तुम्हारी इज्जतें एक दूसरे पर ऐसी ही हराम हैं, जैसा कि तुम आज के दिन की, इस शहर की, इस महीने की हुर्मत करते हो। लोगा! तुम्हें बहुत जल्द खुदा के सामने हाजिर होना है, और वह तुम से तुम्हारे आमाल के बारे में सवाल फरमाएगा।
0 लोगांे! जाहिलियत की हर एक बात में अपने कदमों के नीचे पामाल करता हूं। जाहिलियत के कत्लों के तमाम झगडे मिटाता हूं। पहला खून, जो मेरे खानदान का है यानी इब्ने रबीआ बिन हारिस का खून, जो बनी साद में दूध पीता था और हुजैल ने उसे मार डाला था, मैं छोडता हूं। जाहिलियत के जमाने का सूद मिटा दिया गया। पहला सूद अपने खानदान का, जो मैं मिटाता हूं, वह अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब का सूद है, वह सारे का सारा छोड दिया गया।
0 लोगांे! अपनी बीवियों के बारे में अल्लाह से डरते रहो। खुदा के नाम की जिम्मेदारी से तुम ने उनको बीवी बनाया और खुदा के कलमात से तुम ने उनका जिस्म अपने लिये हलाल बनाया है। तुम्हारा हक औरतों पर इतना है कि वह तुम्हारे बिस्तर पर किसी गैर को (कि उस का आना तुम को नागवार है) न आने दें, लेकिन अगर ये ऐसा करें तो उन को ऐसी मार मारो जो जाहिर न हो। औरतों का हक तुम पर यह है कि तुम उन को अच्छी तरह खिलाओ, अच्छी तरह पहनाओ।
0 लोगो! मैं तुम में वह चीज छोड चला हूं कि अगर उसे मजबूत कर लोगे, तो कभी गुमराह न होगे। वह कुरआन अल्लाह की किताब है।
0 लोगों! न तो मेरे बाद कोई पैगम्बर है और न कोई नयी उम्मत पैदा होने वाली है। खूब सुन लो कि अपने परवरदिगार की इबादत करो और पांच वक्त की नमाज अदा करो। साल भर में एक महीना रमजान के रोजे रखो, अपने मालों की जकात निहायत खुशदिली के साथ दिया करो। खाना-ए-खुदा का हज करो और अपने जिम्मेदारों और हाकिमों की इताअत करो, जिस का बदला यह है कि तुम लोग यह पूरा करके परवरदिगार की जन्नत फिरदौस में दाखिल होंगे।
0 लोगो! कियामत के दिन तुम से मेरे बारे में भी पूछा जाएगा। मुझे जरा बता दो कि तुम क्या जवाब दोगे?
सब ने कहा, हम इस की गवाही देते हैं कि आप ने अल्लाह के हुक्म हम को पहुंचा दिए। आप ने रिसालत व नुबूवत का हक अदा कर दिया। आपने हम को खोटे-खरे के बारे में अच्छी तरह बता दिया। (उस वक्त) नबी सल्ल. ने शहादत की उंगली को उठाया। आसमान की तरफ उंगली को उठाते थे और फिर लोगों की तरफ झुकाते थे। (फरमाते थे) ऐ खुदा! सुन ले, (तेरे बन्दे क्या कह रहे हैं) ऐ खुदा गवाह रहना कि (ये लोग क्या गवाही दे रहे हैं) ऐ खुदा! गवाह रह (कि ये सब कैसा साफ इकरार कर रहे हैं)