(तीसवीं किश्त)
नबी सल्ल. ने पहाडी पर चढ कर और कसवा पर सवार हो कर खुत्बा फरमाया-
0 लोगो! मैं ख्याल करता हूं कि मैं और तुम फिर कभी इस मज्लिस में इकट्ठे नहीं होंगे।
0 लोगों! तुम्हारे खून, तुम्हारे माल और तुम्हारी इज्जतें एक दूसरे पर ऐसी ही हराम हैं, जैसा कि तुम आज के दिन की, इस शहर की, इस महीने की हुर्मत करते हो। लोगा! तुम्हें बहुत जल्द खुदा के सामने हाजिर होना है, और वह तुम से तुम्हारे आमाल के बारे में सवाल फरमाएगा।
0 लोगांे! जाहिलियत की हर एक बात में अपने कदमों के नीचे पामाल करता हूं। जाहिलियत के कत्लों के तमाम झगडे मिटाता हूं। पहला खून, जो मेरे खानदान का है यानी इब्ने रबीआ बिन हारिस का खून, जो बनी साद में दूध पीता था और हुजैल ने उसे मार डाला था, मैं छोडता हूं। जाहिलियत के जमाने का सूद मिटा दिया गया। पहला सूद अपने खानदान का, जो मैं मिटाता हूं, वह अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब का सूद है, वह सारे का सारा छोड दिया गया।
0 लोगांे! अपनी बीवियों के बारे में अल्लाह से डरते रहो। खुदा के नाम की जिम्मेदारी से तुम ने उनको बीवी बनाया और खुदा के कलमात से तुम ने उनका जिस्म अपने लिये हलाल बनाया है। तुम्हारा हक औरतों पर इतना है कि वह तुम्हारे बिस्तर पर किसी गैर को (कि उस का आना तुम को नागवार है) न आने दें, लेकिन अगर ये ऐसा करें तो उन को ऐसी मार मारो जो जाहिर न हो। औरतों का हक तुम पर यह है कि तुम उन को अच्छी तरह खिलाओ, अच्छी तरह पहनाओ।
0 लोगो! मैं तुम में वह चीज छोड चला हूं कि अगर उसे मजबूत कर लोगे, तो कभी गुमराह न होगे। वह कुरआन अल्लाह की किताब है।
0 लोगों! न तो मेरे बाद कोई पैगम्बर है और न कोई नयी उम्मत पैदा होने वाली है। खूब सुन लो कि अपने परवरदिगार की इबादत करो और पांच वक्त की नमाज अदा करो। साल भर में एक महीना रमजान के रोजे रखो, अपने मालों की जकात निहायत खुशदिली के साथ दिया करो। खाना-ए-खुदा का हज करो और अपने जिम्मेदारों और हाकिमों की इताअत करो, जिस का बदला यह है कि तुम लोग यह पूरा करके परवरदिगार की जन्नत फिरदौस में दाखिल होंगे।
0 लोगो! कियामत के दिन तुम से मेरे बारे में भी पूछा जाएगा। मुझे जरा बता दो कि तुम क्या जवाब दोगे?
सब ने कहा, हम इस की गवाही देते हैं कि आप ने अल्लाह के हुक्म हम को पहुंचा दिए। आप ने रिसालत व नुबूवत का हक अदा कर दिया। आपने हम को खोटे-खरे के बारे में अच्छी तरह बता दिया। (उस वक्त) नबी सल्ल. ने शहादत की उंगली को उठाया। आसमान की तरफ उंगली को उठाते थे और फिर लोगों की तरफ झुकाते थे। (फरमाते थे) ऐ खुदा! सुन ले, (तेरे बन्दे क्या कह रहे हैं) ऐ खुदा गवाह रहना कि (ये लोग क्या गवाही दे रहे हैं) ऐ खुदा! गवाह रह (कि ये सब कैसा साफ इकरार कर रहे हैं)