तारीखे इस्लाम

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(इक्तीसवीं किश्त)
हुजूर सल्ल. की बीमारी और वफात
29 सफर, सोमवार का दिन था, नबी सल्ल. एक जनाजे से वापस आ रहे थे, रास्ते में दर्द शुरू हो गया, फिर तेज बुखार आ गया।
हजरत अबू सईद खुदरी रजि. का बयान है कि जो रूमाल हुजूर सल्ल. ने अपने मुबारक सर पर डाल रखा था, मैंने उसे हाथ लगाया, तो सेंक आता था, बदन ऐसा गर्म था कि मेरे हाथ से सहा न गया। मैंने ताज्जुब जाहिर किया, फरमाया, नबियों से बढकर किसी को तकलीफ नहीं होती, इसी लिए उन का बदला सब से बढा हुआ होता है।
बीमारी की हालत में 11 दिनों तक मस्जिद में आ कर खुद नमाज पढाते रहे! कुल 13 या 14 दिन आप बीमार रहे थे।
आखिरी हफ्ता नबी सल्ल. ने हजरत आइशा रजि. के घर में पूरा फरमाया था।
उम्मुलमोमिनीन हजरत आइशा रजि. फरमाती हैं कि जब कभी नबी सल्ल. बीमार हुआ करते, तो यह दुआ पढा करते और अपने जिस्म पर हाथ फेर लिया करते-
अज्हिबिल वा-स रब्विन्नासि वश्फि अन्तश्शाफी ला शिफा अ इल्ला शिफाउ-क शिफाअल्ला युगादिरू सुक्मन.
तर्जुमा ऐ इन्सानी नस्ल के पालने वाले! खतरे को दूर फरमा दे और सेहत अता कर। शिफा देने वाला तू ही है और उसी शिफा का नाम शिफा है, जो तू इनायत करता है, ऐसी सेहत दे कि कोई तकलीफ बाकी न छोडें।
इन दिनों मैंने यह दुआ पढी थी और नबी सल्ल. के हाथों पर दम कर के चाहा कि जिस्मे अत्हर पर मुबारक हाथों को फेरूं, आंहजरत सल्ल. ने हाथ हटा लिए और फरमाया-
अल्लाहुम-मग्फिरली व अल्हिक्नी विर्रफीकिल अअला.
सनीचर या इतवार का जिक्र है कि हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि. की इमामत में जुहर की नमाज कायम हो चुकी थी नबी सल्ल. हजरत अब्बास व हजरत अली मुर्तजा रजि. के कंधों पर सहारा दिए हुए नमाज के लिए आए। हजरत अबूबक्र रजि. पीछे हटने लगे तो नबी सल्ल. ने इशारे से फरमाया कि पीछे मत हटो। फिर हजरत अबूबक्र रजि. के बराबर बैठ कर नमाज में शरीक हो गये। अब अबूबक्र सिद्दीक रजि. तो आंहजरत सल्ल. की इक्तिदा करते थे और बाकी सब लोग हजरत अबूबक्र रजि. की तक्बीरों पर नमाज अदा कर रहे थे।
दोशंबा के दिन सुबह की नमाज के वक्त नबी सल्ल. ने वह पर्दा उठाया जो हजरत आइशा रजि. और मस्जिदे तय्यिबा के दर्मियान पडा हुआ था। उस वक्त नमाज हो रही थी। थोडी देर तक नबी सल्ल. उस पाक नजारे को जो हुजूर सल्ल. की पाक तालीम का नतीजा था, देख रहे थे। इस नजारे से आप के मुबारक चेहरे पर खुशी और होंठों पर मुस्कुराहट थी।
सहाबा रजि. का शौक और बे-करारी से यह हाल हो गया था कि आप के चेहरे की तरफ ही तवज्जोह रखे रहे हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि. यह समझे की अल्लाह के नबी का इरादा नमाज में आने का है। वह पीछे हटने लगे तो अल्नाह के रसूल सल्ल. ने हाथ के इशारे से फरमाया कि नमाज पढाते रहो। यही इशारा सब की तस्कीन की वजह बना। फिर हुजूर सल्ल. ने परदा छोड दिया। यह नमाज हजरत अबूबक्र रजि. ही ने मुकम्मल फरमायी।
इसके बाद हुजूर सल्ल. पर किसी दूसरी नमाज का वक्त नहीं आया।
दिन चढा तो प्यारी बेटी हजरत फातिमा रजि. को दुनिया को औरतों की सरदार होने की खुशखबरी सुनायी। हजरत फातिमा रजि. ने हुजूर सल्ल. की हालत को देख कर कहा, आह! कितनी बेचैनी है? फरमाया कि तेरे बाप को आज के बाद कोई बेचैनी न होगी।
फिर हजरत हसन व हुसैन रजि. को बुलाया। दोनों को चूमा और उनके एहतराम की वसीयत फरमायी।
फिर पाक बीवियों रजि. को बुलाया और उनको नसीहतें फरमायीं।
फिर हजरत अली रजि. को बुलाया। उन्होंने मुबारक सर अपनी गोद में रख लिया। उनको भी नसीहत फरमायी, इसी मौके पर फरमाया,
अस्सलातु अस्सलातु व मा म-ल-कत ऐमानुकुम
तर्जुमा-(ख्याल रखो) नमाज, नमाज और बांदियां।
हजरत अनस रजि. कहते हैं कि नबी सल्ल. की आखिरी वसीयत यही थी।
हजरत आइशा रजि. फरमाती हैं कि इसी इर्शाद को हुजूर सल्ल. कई बार दोहराते रहे।
अब नजअ की हालत पैदा हो गयी। उस वक्त प्यारे नबी सल्ल.को हजरत आइशा रजि. सहारा दिए हुए पीठ के पीछे बैठी थीं। पानी का प्याला हुजूर सल्ल. के सिरहाने रखा हुआ था, नबी सल्ल. प्याले में हाथ डालते और चेहरे पर फेर लेते थे। मुबारक चेहरा कभी लाल होता, कभी पीला पड जाता था। जुबाने मुबारक से फरमाते थे-
लाइला-ह-इल्लल्लाहु इन-न लिल मोति स-क-रात.
यानी अल्लाह के सिवा और कोई माबूद नहीं। मौत कडवाहट हुआ ही करती है।
इतने में अब्दुर्रहमान बिन अबूबक्र रजि. आ गये। उनके हाथ में ताजा मिस्वाक को अपने दांतों से नर्म बना दिया। हुजूर सल्ल. ने मिस्वाक की, फिर हाथ को बुलन्द फरमाया और फरमाया-
अल्लहुम्मार्रफीकल अअला।
उस वक्त हाथ लटक गया। पुतली ऊपर को उठ गयी।
12 रबीउल अव्वल सन् 11 हि. दोशंबा के दिन, चाश्त का वक्त था मुबारक जिस्म से रूह परवाज कर गयी। उस वक्त मुबारक उम्र 63 साल कमरी हिसाब से 4 दिन थी।
इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन अ-फ इम मित-त फ हुमुल खलिदून.
नबी सल्ल. को तीन कपडों में कफ्नाया गया, मय्यत उसी जगह रखी रही, जहां इंतिकाल हुआ था।
नमाज जनाजा पहले कुंबे वालों ने, फिर मुहाजिरों ने फिर अंसार के मर्दों ने और औरतों ने, फिर बच्चों ने अदा की। इस नमाज में इमाम कोई न था। मुबारक हुज्रा तंग था, इसलिए दस-दस शख्स, अन्दर जाते थे, जब वे नमाज से फारिग होकर बाहर आते, तब और दस अन्दर जाते। यह सिलसिला लगातार रात-दिन जारी रहा। इस लिए बुधवार की रात में, यानी वफात से लगभग 32 घंटे बाद आप को दफन फरमाया गया।