हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि.
आप का नाम अब्दुल्लाह था, बाप का नाम अबू कहाफा था, छठी-पीढी में मुर्रा पर आप हजरत मुहम्मद सल्ल. से खानदानी हैसियत से मिल जाते हैं आप की मां का नाम सलमा है, जो अबू कहाफा की चचेरी बहन थीं। उपनाम अबू बक्र और लकब (उपाधि) सिद्दीक था, इसलिए कि आप ने बे-खौफ होकर हजरत मुहम्मद सल्ल. की बे-झिझक तस्दीक फरमायी और सिद्क (सच्चाई) को अपने लिए लाजिम फरमाया।
हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि. बडी खूबियों के मालिक थे। आप सच को पसन्द करते, सच बोलना आप की खूबी थी। यही वजह थी कि जब प्यारे नबी सल्ल. ने आप को इस्लाम की दावत दी तो आप ने जरा भी टाल-मटोल न किया, फौरन कुबूल कर लिया।
हजरत अबूबक्र रजि. सब से पहले हजरत मुहम्मद सल्ल. पर ईमान लाए। जिस शख्स ने सब से पहले हिजरत मुहम्मद सल्ल. के साथ नमाज पढी, वह हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि. ही थे।
हजरत अली रजि. ने एक बार लोगों से पूछा कि तुम्हारे नजदीक सबसे ज्यादा बहादुर शख्स कौन है? सब ने कहा आप। आप ने फरमाया कि मैं हमेशा अपने बराबर के जोडे से लडता हूं यह कोई बहादुरी नहीं, तुम सबसे ज्यादा बहादुर आदमी का नाम लो। सबने कहा, हमें मालूम नहीं। हजरत अली रजि. ने फरमाया कि सबसे बहादुर शख्स हजरत अबूबक्र रजि. हैं। बद्र की लडाई में हमने अल्लाह के रसूल सल्ल. के लिए एक सायबान बनाया था, हमने पूछा कि हजरत मुहम्मद सल्ल. के पास कौन रहेगा कि मुश्रिकों से आप पर हमला करने से बाज रखे। कसम खुदा की हम में से किसी शख्स की हिम्मत न पढी, मगर अबूबक्र सिद्दीक रजि. नंगी तलवार लेकर खडे हो गये और किसी को पास न फटकने दिया और जिस शख्स ने आप पर हमला किया, अबूबक्र सिद्दीक रजि. उस पर हमलावर हुए।
एक बार मक्का मुअज्जमा में मुश्रिकों ने अल्लाह के रसूल सल्ल. को पकड लिया और आप को घसीटने लगे और कहने लगे कि तू ही है, जो एक खुदा को मानता है, अल्लाह की कसम! किसी को दुश्मनों के मुकाबले की हिम्मत न हुई मगर अबूबक्र सिद्दीक रजि. आगे बढे, वे दुश्मनों को मार-मार कर हटाते जाते थे और कहते जाते थे कि हाय अफसोस! तुम ऐसे शख्स को कत्ल करना चाहते हो, जो कहता है मेरा खुदा एक है। यह फरमा कर हजरत अली कर्रमल्लाहु वज्हहू रो पडे और फरमाने लगे, भला यह तो बताओ कि मोमिन आले फिरऔन अच्छे हैं या अबूबक्र रजि. लेकिन जब लोगों ने जवाब न दिया, तो फरमाया कि जवाब क्यों नहीं देते? अल्लाह की कसम! अबूबक्र रजि. की एक घडी उनकी हजार घडियों से बेहतर है, वह तो ईमान को छिपाते थे और हजरत अबूबक्र रजि. ने अपने ईमान के जाहिर किया।
हजरत अबूबक्र रजि. तमाम सहाबा किराम रजि. में सबसे ज्यादा सखी थे। हजरत मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया था कि जितना मुझे अबूबक्र सिद्दीक रजि. के माल से नफा पहुंचा है, किसी के माल से नहीं पहुंचा। हजरत अबूबक्र रजि. रोकर फरमाने लगे कि मैं और मेरा माल क्या चीज है, जो कुछ है, सब आप का ही तुफैल है।
एक दिन हजरत उमर फारूक रजि. तबूक को लडाई के चन्दे का जिक्र करते हुए कहने लगे, हजरत मुहम्मद सल्ल. ने जब हमें माल सदका करने का हुक्म दिया, तो मैंने हजरत अबूबक्र सिद्दीक से बढ कर माल सदका करने का पक्का इरादा कर लिया और अपना आधा माल सदका कर दिया। अल्लाह के रसूल सल्ल. ने मुझ से पूछा कि अपने बाल-बच्चों के लिए भी छोडा है? मैंने कहा, हां बाकी आधा। इतने में हजरत अबूबक्र सिद्दीक रजि. अपना सारा माल लिए हुए आ गये। हजरत मुहम्मद सल्ल. ने उनसे भी वही सवाल किया। उन्होंने जवाब दिया कि बाल-बच्चों के लिए खुदा और रसूले खुदा काफी हैं। मैंने यह देख कर कहा कि मैं कभी अबूबक्र रजि. से किसी बात में न बढ सकूंगा। आप सहाबा किराम रजि. में सबसे बडे आलिम और जहीन थे। हजरत अली रजि. ने कई बार फरमाया है कि इस उम्मत मुस्लिमा में सबसे ज्यादा अफ्जल अबूबक्र सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु हैं।
(क्रमशः)